14B. इंटीरियर - गायत्री का कमरा - सेम टाइम
गायत्री के बेड पर कपड़ों का ढेर लगा हुआ है और वह कपड़ों की तह लगा रही है।
उसके कमरे में श्रुति के कमरे में चल रहे टीवी की थोड़ी-थोड़ी आवाज़ आ रही है।
गायत्री अपने कमरे से ही श्रुति को आवाज़ लगाकर कहती है।
गायत्री
मैडम जी, अगर आपने टीवी देख लिया है तो घर के बाकी कामों की ओर भी ध्यान करिए।
गायत्री अपने आप से
और ले आओ पढ़ी-लिखी बहू। इन पढ़ी-लिखी लड़कियों को टीवी और फोन चलाने के सिवाए और कुछ नहीं आता।
सीन 14A कंटिन्यू
अर्चना की आवाज सुनकर, श्रुति रिमोट उठाकर टीवी बंद कर देती है और रसोई में जाकर झाड़ू लगाने लगती है।
16. इंटीरियर - रसोई के सामने - इवनिंग
आसमान में सूरज डूब रहा है और चारों ओर थोड़ा-थोड़ा अंधेरा छा रहा है।
रसोई के सामने एक टेबल रखा हुआ है, जिसके चारों ओर कुर्सियां लगी हुई हैं।
गायत्री अपने कमरे से आकर कुर्सी पर बैठ जाती है और श्रुति से कहती है।
श्रुति
खाना बना या नहीं?
श्रुति खाने का बर्तन उठाकर ला रही है और बर्तन को टेबल पर रखकर कहती है।
श्रुति
जी मम्मी, खाना बन गया है। बस टेबल पर लगाने वाला रहता है, वो मैं कर रही हूं।
गायत्री
ठीक है, जल्दी करो।
श्रुति
मम्मी जी, वरुण नहीं आया अभी?
गायत्री
कोई बात नहीं, तू खाना लगा, वो आ जाएगा। बिचारे ने बस से आना है, उसके पास कौन सा मोटरसाइकिल है जो किक मारी और कुछ ही घंटों में घर पहुंच गया।
श्रुति
मम्मी जी, आप हर बार मुझे मोटरसाइकिल का ताना क्यों मारती हो?
मैंने सिंपल बात की है कि वरुण के पास मोटरसाइकिल नहीं है। अगर तुझे लग रहा है कि मैं तुझे ताना मार रही हूं, तो मैं इसमें कुछ नहीं कर सकती।
श्रुति
मम्मी जी, अगर एक औरत ही दूसरी औरत का दुःख न समझे, तो इससे बुरा और कुछ नहीं हो सकता।
गायत्री
अच्छा अब अपना ये भाषण देना बंद कर और मुझे खाना दे।
इतने में वरुण भी काम से वापस आ जाता है।
वरुण
क्या हुआ मम्मी किस बात पर बहस चल रही है?
गायत्री
कुछ नहीं बेटा तुम जाकर हाथ मुँह धो लो और आकर खाना खा लो।
वरुण
पापा कहां हैं? दिखाई नहीं दे रहे।
गायत्री
वो किसी काम से बाहर गए हैं, आते ही होंगे।
तभी नरेश आ जाता है।
गायत्री
ये लो तुम्हारे पापा भी आ गए।
नरेश
क्या हुआ?
गायत्री
कुछ नहीं। बहुत लंबी उम्र है आपकी, हम अभी आपके बारे में ही बात कर रहे थे।
नरेश
अच्छा.. खाना बन गया?
गायत्री
हां, बन गया। आप दोनों हाथ मुँह धो आओ।
नरेश और वरुण हाथ मुँह धोकर आ जाते हैं और खाना खाने टेबल के पास बैठ जाते हैं।
श्रुति एक-एक करके उनको खाना देती है। वरुण को खाना देते वक्त श्रुति कहती है।
श्रुति
मैं आप सब से कुछ कहना चाहती हूं।
वरुण
आज क्या हुआ? घर का राशन खत्म हो गया या कुछ और?
श्रुति
ऐसा कुछ नहीं है। दरअसल मैंने एक फैसला लिया है कि मैं अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करूंगी।
वरुण
तुम्हें कॉलेज जाने की परमिशन दे कौन रहा है? ना ही मेरे पास इतने फालतू पैसे हैं, जिनसे मैं तुम्हारी पढ़ाई का खर्चा उठा सकूं।
श्रुति
लेकिन मैं किसी से अपनी पढ़ाई के लिए कोई पैसा नहीं मांग रही। मैं अपनी पढ़ाई का खर्चा खुद निकाल लूंगी।
वरुण
वो कैसे?
श्रुति
पार्ट टाइम जॉब करके।
गायत्री
क्या! तुम घर से बाहर काम करोगी। देखो मुझे तो ये बिलकुल भी मंजूर नहीं है। इसीलिए मैंने शादी से पहले ही सारी बातें क्लियर कर दी थीं, कि शादी के बाद तुम घर पर ही रहोगी और जितनी पढ़ाई करनी थी कर ली। हम तुझे आगे नहीं पढ़ाएंगे।
वरुण
मां बिलकुल सही कह रही हैं। जब हम तुझे घर पर बैठाकर खिला रहे हैं तो तुझे काम करने की क्या जरूरत है?
श्रुति
इसीलिए तो मैं आगे पढ़ना चाहती हूं। पढ़-लिखकर कुछ बनना चाहती हूं ताकि मैं अपने पैरों पर खड़ी हो सकूं। किसी पर निर्भर न रहूं। और सबसे बड़ी बात, कोई मुझे ताना न मार सके कि वो मुझे फ्री बैठाकर खिला रहे हैं।
नरेश
बस बहुत हो गया। सभी चुप कर जाओ, घर का मुखिया मैं हूं और मैं ये तय करूंगा कि घर में क्या होगा और क्या नहीं। और मेरा ये फैसला है कि श्रूति आगे नहीं पढ़ेगी, जितना पढ़ना था उतना अपने मायके में पढ़ लिया।
श्रूति
लेकिन?
नरेश
ये मेरा आखिरी फैसला है। इसके बाद मुझे कुछ नहीं सुनना। देखो जब तुम्हारा पति मना कर रहा है तो तुम्हें क्या पढ़ाई करनी है आगे पढ़ाई करने की और इसके लिए काम करने की। एक बात और, औरत को अपने पति के होते हुए फैसले लेना शोभा नहीं देता। अब कोई कुछ नहीं बोलेगा, सभी चुपचाप खाना खाओ।
कट टू
17. इंटीरियर- श्रुति का कमरा- नाइट
श्रुति बेड पर चादर बिछा रही है। तभी वरुण कमरे में आता है और श्रूति से कहता है।
वरुण
क्या जरूरत थी बाहर इतना तमाशा करने की?
श्रुति
मैंने क्या किया है? मैं तो बस अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हूं ताकि मुझे मेरी छोटी-छोटी जरूरतों के लिए किसी के आगे हाथ न फैलाने पड़े।
वरुण
तुम जानती भी हो अगर तुम बाहर काम करोगी तो लोग क्या कहेंगे? वो कहेंगे कि हम तुम्हें दो वक्त की रोटी नहीं खिला सकते।
श्रुति
मुझे कुछ नहीं जानती और न ही मुझे इस बात से कोई फर्क पड़ता है कि लोग क्या कहेंगे या सोचेंगे। और हां, फिर तुम्हें मोटरसाइकिल भी तो लेकर देना है।
वरुण
मैंने मोटरसाइकिल तुम्हारे घर वालों से मांगा था न कि तुमसे। लेकिन अब मुझे कुछ नहीं चाहिए, बस तुम अपना फैसला बदल दो।
श्रुति
अच्छा तो तुम चाहते हो कि मैं जिंदगी भर ऐसे ही कैद होकर रह जाऊं।
वरुण
कैद? हमने कौन सी तुम्हारे बेड़ियां डाल रखी हैं?
श्रुति
मैं अपनी मर्जी से बाहर अंदर नहीं जा सकती। अपनी मर्जी के कपड़े नहीं पहन सकती। यहां तक कि अपने लिए एक फैसला तक नहीं ले सकती। इन सब के बाद अपने आप को कैद नहीं तो और क्या समझूं? लेकिन अब मैंने सोच लिया है कि चाहे कुछ भी हो जाए, मैं अपना फैसला नहीं बदलूंगी।
वरुण
तो ठीक है, अगर तुमने इस घर में नहीं रहना तो तुम अपना फैसला मत बदलो। सुबह होते ही अपने घर चली जाना।
डिस्सोल्व टू
17A. इंटीरियर - वरुण का कमरा - मॉर्निंग
श्रुति अपना बैग पैक कर रही है।
और वरुण ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रहा है।
तभी वहां गायत्री आती है।
गायत्री
ये तुम क्या कर रही हो? आज खाना नहीं बनाना क्या? ये सब काम तो बाद में भी हो जाएंगे।
वरूण
मां, आज खाना आप बना लो। क्योंकि श्रूति अपने घर जा रही है।
गायत्री
लेकिन अचानक?
वरूण
इसे अपनी आगे की पढ़ाई करनी है। तो मैंने सोचा इसे घर के कामों से आजाद कर दूं।
वरुण और गायत्री की बातें सुनकर श्रूति कमरे से बाहर चली जाती है। तभी गायत्री, वरुण से
गायत्री
बेटा वरुण, ये तुम क्या कर रहे हो? अगर श्रूति सच में वापस न आई तो?
वरूण
मां, ऐसा कुछ नहीं होगा। देखना, एक दो दिन बाद यहीं होगी। आप ही बताओ, भला कौन सा मां-बाप अपनी बेटी को इतने दिन घर पर बैठाकर रखेगा।
गायत्री
हां, बात तो तुम सही कह रहे हो।
शिफ्ट टू
18. एक्सटीरियर - मार्केट - ऑन रोड - आफ्टरनून
श्रुति के हाथ में कपड़ों से भरा बैग है और वो रोड के किनारे जा रही है। श्रुति गर्मी के कारण चक्कर खाकर नीचे गिर जाती है।
उसे देखकर वहां मौजूद सभी लोग उसके इर्द-गिर्द खड़े जाते हैं।
तभी वहां से आस्था गुजर रही होती है, जो भीड़ को देखकर देखने जाती है कि वहां क्या चल रहा है।
आस्था
(श्रुति को देखकर)
अरे, ये तो श्रुति है।
आइरिस इन
श्रुति
(श्रुति की आंखें बंद होने लगती हैं और उसे धुंधला-धुंधला दिखाई देता है) आस्था और बाकी लोग इसके आस-पास घेरा बनाकर खड़े हुए हैं।
18A. इंटीरियर - आस्था का घर - रूम - कुछ मिनट बाद
आइरिस आउट
जब श्रुति की आंखें खुलती हैं, तो वो देखती है कि वो एक कमरे में बेड पर लेटी हुई है और आस्था उसके पास बैठी हुई है।
आस्था
अब तुम कैसी हो?
श्रुति
मै ठीक हूं। मै यहां?
आस्था
हां, वो तुम रोड की साइड पे बेहोश पड़ी थी, मै वहां से गुजर रही थी और तुम्हे यहां ले आई। वैसे तुम या कहां रही थी?
श्रुति
पता नहीं।
आस्था
पता नहीं? मतलब?
श्रुति
हां, दरअसल मै अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करना चाहती थी लेकिन मेरे ससुराल वाले मेरे इस फैसले के खिलाफ हैं। इसीलिए मैं घर से आ गई।
आस्था
अगर तुम चाहो तो तुम यहां रह सकती हो। वैसे भी यहां मै अकेली ही रहती हूं।
श्रुति
तुम भी अपनी स्टडी कर रही हो?
आस्था
नहीं, वो तो कब की छोड़ दी। अब तो मैं एक कैफे में काम करती हूं और इस मकान का किराया और बाकी का खर्चा निकालती हूं।
श्रुति
लेकिन तुमने अपनी स्टडी क्यों छोड़ दी? तुम्हारे पैरेंट्स तो तुम्हे पढ़ा रहे थे ना?
आस्था
हां, पढ़ा तो रहे थे लेकिन पापा को काम में लॉस हो गया और मुझे अपनी स्टडी छोड़कर काम करना पड़ गया।
श्रुति
अच्छा, ऐसा है।
आस्था
ये सब छोड़ो। अगर तुम कहो तो मै कैफे में तुम्हारे लिए कोई काम पूछूं।
श्रुति
नहीं, उसकी कोई जरूरत नहीं है। तुमने मुझे यहां रहने दिया, मेरे लिए यही काफी है। काम मै खुद ढूंढ लूंगी।
आस्था
ठीक है, जैसी तुम्हारी मर्जी। फिलहाल तुम अभी आराम करो।
श्रुति
ठीक है।
डिस्सोल्व तो
18B. इंटीरियर - आस्था का घर - बरामदा - नेक्स्ट मॉर्निंग
श्रुति कुर्सी पे बैठकर अखबार पढ़ रही है।
तभी वहां आस्था आती है।
आस्था
श्रुति, मै काम पे जा रही हूं। अगर तुम्हे किसी चीज़ की जरूरत पड़े तो मुझे फोन कर देना।
श्रुति
ठीक है।
आस्था इतना कहकर वहां से चली जाती है और श्रुति अखबार पढ़ती रहती है।
श्रूति को अखबार में एक आर्टिकल मिलता है जिसमें लिखा होता है:
अखबार घरों तक पहुंचाने के लिए एक वर्कर की जरूरत है। और साथ ही एड्रेस भी दिया होता है।
श्रूति इस आर्टिकल को पढ़ती है और दिए गए एड्रेस पर जाने का निर्णय बनाती है।
कट टू
19. इंटीरियर - ऑफिस - अवर्स लेटर
श्रूति दिए गए एड्रेस पर पहुंच जाती है। यहां उसे काउंटर पर एक आदमी खड़ा मिलता है।
श्रुति
(उस आदमी को अख़बार दिखाते हुए)
अंकल जी, मैं इस ऐड को देखकर यहां आई हूं।
आदमी
जी, ये ऐड हमने ही दिया है। (इधर-उधर देखकर) लेकिन इसके लिए काम कौन करना चाहता है?
श्रुति
जी... मैं।
आदमी
तुम! देखो, इसके लिए तुम्हें कोई व्हीकल चलाना आना चाहिए।
श्रुति
जी, चला लूंगी।
आदमी
देखो, हम तुम्हारी सेफ्टी की जिम्मेदारी नहीं ले सकते।
श्रुति
अंकल जी, चलेगा।
आदमी
एक बार सोच लो।
श्रुति
अंकल, सोचकर ही इतनी दूर यहां आई हूं।
इसके बाद श्रुति अख़बार बांटने का काम करने लग जाती है। वो दिन भर अख़बार बांटती है और रात को पढ़ाई करती है। ऐसे ही लंबे समय तक चलता है और श्रुति अपनी BA की पढ़ाई पूरी करके UPSC का एग्जाम दे देती है, जिसमें उसकी सिलेक्शन हो जाती है।