संत रविदास
संत शिरोमणि कवि रविदास का जन्म माघ पूर्णिमा को 1376 ईस्वी को उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के गोबर्धनपुर गांव में हुआ था। उनकी माता का नाम कर्मा देवी (कलसा) तथा पिता का नाम संतोख दास (रग्घु) था। उनके दादा का नाम श्री कालूराम जी, दादी का नाम श्रीमती लखपती जी, पत्नी का नाम श्रीमती लोनाजी और पुत्र का नाम श्रीविजय दास जी है। गुरु संत रविदास 15 वीं शताब्दी के एक महान संत, दार्शनिक, कवि और समाज सुधारक थे. वह निर्गुण भक्ति धारा के सबसे प्रसिद्ध और प्रमुख संत में से एक थे और उत्तर भारतीय भक्ति आंदोलन का नेतृत्व करते थे. उन्होंने अपने प्रेमियों, अनुयायियों, समुदाय के लोगों, समाज के लोगों को कविता लेखन के माध्यम से आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश दिए हैं. लोगों की दृष्टि में वह सामाजिक और आध्यात्मिक ज़रूरतों को पूरा कराने वाले एक मसीहा के रूप थे. वह आध्यात्मिक रूप से समृद्ध व्यक्ति थे. उन्हें दुनियाभर में प्यार और सम्मान दिया जाता है लेकिन इनकी सबसे ज्यादा प्रसिद्धि उत्तरप्रदेश, पंजाब और महाराष्ट्र राज्यों में हैं. इन राज्यों में उनके भक्ति आंदोलन और भक्ति गीत प्रचलित हैं. विदास बचपन से ही बुद्धिमान, बहादुर, होनहार और भगवान के प्रति चाह रखने वाले थे। रविदास जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गुरू पंडित शारदा नन्द की पाठशाला से शुरू की थी। लेकिन कुछ समय पश्चात उच्च कुल के छात्रों ने रविदास जी को पाठशाला में आने का विरोध किया। हालाँकि उनके गुरू को पहले से ही आभास हो गया था कि रविदास को भगवान ने भेजा है। रविदास जी के गुरू इन उंच-नीच में विश्वास नहीं रखते थे। इसलिए उन्होंने रविदास को अपनी एक अलग पाठशाला में शिक्षा के लिए बुलाना शुरू कर दिया और वहीं पर ही शिक्षा देने लगे। गुरू रविदास जी पढ़ने में और समझने में बहुत ही तेज थे, उन्हें उनके गुरू जो भी पढ़ाते थे वो उन्हें एक बार में ही याद हो जाता था
संत रविदास जी से संबंधित कहानियाँ
आज माघ महीने की पूर्णिमा है। शास्त्रों में इस दिन को बड़ा ही उत्तम कहा गया है इसी उत्तम दिन को 1398 ई. में धर्म की नगरी काशी में संत रविदास जी का जन्म हुआ था। रविदास जी को रैदास जी के नाम से भी जाना जाता है। इनके माता-पिता चर्मकार थे। इन्होंने अपनी
संत रविदास जी से संबंधित कहानियाँ
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संत रविदास जी की पदावली
जिस प्रकार चंदन की सुगंध पानी के बूँद-बूँद में समा जाती है उसी प्रकार प्रभु की भक्ति भक्त के अंग-अंग में समा जाती है। यदि प्रभु बादल है तो भक्त मोर के समान है जो बादल को देखते ही नाचने लगता है। यदि प्रभु चाँद है तो भक्त उस चकोर पक्षी की तरह है जो बिन
संत रविदास जी की पदावली
जिस प्रकार चंदन की सुगंध पानी के बूँद-बूँद में समा जाती है उसी प्रकार प्रभु की भक्ति भक्त के अंग-अंग में समा जाती है। यदि प्रभु बादल है तो भक्त मोर के समान है जो बादल को देखते ही नाचने लगता है। यदि प्रभु चाँद है तो भक्त उस चकोर पक्षी की तरह है जो बिन
संत रविदास जी के शब्द
गुरु रविदासजी का जन्म जन्म काशी में माघ पूर्णिमा दिन रविवार को संवत 1388 को हुआ था। रविदास जी जिन्हें संत रविदास, गुरु रविदास, रैदास, रूहिदास और रोहिदास जैसे अनेको नाम से भी जाना जाता है उनके अनुसार यदि आपके मन में किसी प्रकार का बेर, लालच या द्वेष न
संत रविदास जी के शब्द
गुरु रविदासजी का जन्म जन्म काशी में माघ पूर्णिमा दिन रविवार को संवत 1388 को हुआ था। रविदास जी जिन्हें संत रविदास, गुरु रविदास, रैदास, रूहिदास और रोहिदास जैसे अनेको नाम से भी जाना जाता है उनके अनुसार यदि आपके मन में किसी प्रकार का बेर, लालच या द्वेष न