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चमड़े का खरगोश

17 जून 2022

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एक बार गुरु रविदास की बुआ जब उनसे मिलने के लिए आईं तो उनके लिए एक सुंदर चमड़े का खरगोश ले आईं। उस खिलौने को पकड़कर, चारपाई पर बैठकर, बालक रविदास खेल रहे थे। खेलते-खेलते अपने चरण कमलों से वे उस खरगोश को दूर धकेलने लगे, जैसे उसे दौड़ने का संकेत दे रहे हों। इस दृश्य को देखकर बुआ और घर के सदस्य बहुत प्रसन्‍न हो रहे थे। जब बालक ने तीसरी बार पुन: उस चमड़े के बेजान खरगोश को अपने चरणों से दूर धकेला तो वह जीवंत हो उठा और वह सचमुच खरगोश बनकर आगे की ओर भागा। बालक को यह दृश्य देखकर अत्यंत प्रसन्‍नता हुई, परंतु उनके घरवाले इस दृश्य को देखकर अत्यंत आश्चर्यचकित हुए, फिर वह खरगोश उछल-कूद करते हुए गुरु रविदास के समीप ही बैठ गया।

बालक रविदास उस खरगोश को देखकर बहुत प्रसन्न हो रहे थे। उन्होंने पुन: उसे अपने चरण कमलों से धकेला, परंतु फिर वह खरगोश घरवालों के सामने से उछलते हुए बाहर की ओर दौड़ गया। इस बीच बालक रविदास के फूफा जब बाहर से आए तो सारा वृत्तांत सुनकर आश्चर्यचकित रह गए उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था, क्योंकि उन्होंने स्वयं अपने हाथों से गुरुजी के लिए वह चमड़े का खिलौना बनाया था।

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रचनाएँ
संत रविदास जी से संबंधित कहानियाँ
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आज माघ महीने की पूर्णिमा है। शास्‍त्रों में इस दिन को बड़ा ही उत्तम कहा गया है इसी उत्तम दिन को 1398 ई. में धर्म की नगरी काशी में संत रविदास जी का जन्म हुआ था। रविदास जी को रैदास जी के नाम से भी जाना जाता है। इनके माता-पिता चर्मकार थे। इन्होंने अपनी आजीविका के लिए पैतृक कार्य को अपनाया लेकिन इनके मन में भगवान की भक्ति पूर्व जन्म के पुण्य से ऐसी रची बसी थी कि, आजीविका को धन कमाने का साधन बनाने की बजाय संत सेवा का माध्यम बना लिया। संत और फकीर जो भी इनके द्वार पर आते उन्हें बिना पैसे लिये अपने हाथों से बने जूते पहनाते। रैदास की वाणी भक्ति की सच्ची भावना, समाज के व्यापक हित की कामना तथा मानव प्रेम से ओत-प्रोत होती थी। इसलिए उसका श्रोताओं के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता था। उनके भजनों तथा उपदेशों से लोगों को ऐसी शिक्षा मिलती थी जिससे उनकी शंकाओं का सन्तोषजनक समाधान हो जाता था और लोग स्वत: उनके अनुयायी बन जाते थे।
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पीरां दित्ता मरासी की ईर्ष्या

17 जून 2022
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गुरु रविदास सबका भला चाहनेवाले महापुरुष थे। उनके हृदय में सबके लिए प्यार था। व्यक्ति चाहे किसी भी जाति का क्‍यों न हो, वे सबको सत्य का उपदेश देते थे। बुराइयों से हटाकर सत्य मार्ग पर जीवों को लगाना ही

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सेठ ने किया अमृत का तिरस्कार

17 जून 2022
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संत महापुरुष समस्त समाज के लिए होते हैं। उनका संबंध केवल एक जाति या वर्ण के साथ नहीं होता। वे सर्वहित के लिए और सबको सही राह पर चलने के लिए प्रेरणा देते हैं। गुरु रविदास के पवित्र जीवन और साधुता को दे

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पारस भेंट करने की कथा

17 जून 2022
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बरस सात को भयौं है जबही, नौधा भक्ति चलाई तब ही। अस भगवन की सेवा करई, सतगुरु कहो सो सीव न तरई॥ गुरु रविदास जब सात वर्ष के हुए तो श्रदूधालु जन उनके पास आकर भक्ति का आनंद प्राप्त करने लगे। बरस सात औ

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मन चंगा तो कठौती में गंगा

17 जून 2022
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अवर कहो इतिहास को भगवनजस सुख दानि। हरिद्वार यात्री मिल आए, तिन दर्शन जन केरे पाए। तिनको पूछा लखि रविदासा, जाहु कहाँ तुमहीं सुख रासा। ब्रह्मकुंड गंगा इस्नाना। नहावन चल तहाँ हम जाना। तब रविदास बचन अ

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गंगाजी की कथा

17 जून 2022
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कन्या के रूप में गंगाजी का आना एक बार गुरु रविदास ने एक भंडारा किया। इस भंडारे में कन्या के रूप में स्वयं गंगाजी आईं। कन्या के अलौकिक रूप पर एक राजा मोहित हो गया। उसने गुरु रविदास के पास संदेश भेजा क

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मीराबाई की कथा

17 जून 2022
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मीराबाई के जन्मस्थान मेड़तियों के इतिहास एवं राठौरों के भाटों की बहियों द्वारा मीराजी का जन्म श्रावण सुदी एकम शुक्रवार संवत्‌ 1561 माना गया है। बचपन में मीरा की माता का देहांत हो गया था। मीरा इकलौती स

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करमावती

17 जून 2022
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करमावती नाम की 60-65 वर्ष की महिला सीर गोवर्धनपुर में रहती थी। उसका बालक रविदास की दादी लखपती के साथ बहुत प्रेम था। दादी लखपती प्राय: अपने प्रिय पौत्र को लेकर उससे मिलने जाया करती थीं। करमावती स्वयं ल

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17 जून 2022
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गुरु रविदास अपने पवित्र कार्यों एवं पावन चरित्र के प्रभाव से उस काल में अद्वितीय ख्याति प्राप्त कर चुके थे। एक छोटी समझी जानेवाली जाति के महापुरुष का समाज में ऐसा प्रभाव देखकर कुछ लोग उनसे ईर्ष्या करन

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हिरनी की रक्षा

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गुरु रविदास कोमल हृदय के महापुरुष थे। एक बार लहरतारा तालाब जो कि कबीर की प्रकटस्थली है, उन दिनों वहाँ पर घना जंगल था, वहाँ एकांत रमणीय स्थान पर गुरु रविदास ध्यान की अवस्था में बैठे थे। आसपास प्रकृति क

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बालक को जीवनदान

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काशी में एक विधवा सेठानी रहती थी। उस सेठानी का पहले बड़ा परिवार था। एक बार वे लोग तीर्थयात्रा को गए। दैवयोग से वहाँ नाव दुर्घटना हो गई, जिससे सारा परिवार पानी में डूब गया। केवल एक बहू बची रही, जो गर्भ

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कर्माबाई की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई थी। दूर-दूर से संत उनसे मिलने के लिए आते थे। ऐसे ही एक रोज एक महापुरुष आए और कहने लगे कि कर्माबाई, हर रोज भगवान्‌ तुम्हारे घर भोजन करने के लिए आते हैं। तुम कै

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