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शेख की विनती

17 जून 2022

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गुरु रविदास प्रतिदिन सत्संग किया करते थे। उनके भेदभाव रहित विचारों का संगत पर बहुत प्रभाव होता था। हिंदू-मुसलिम दोनों ही समुदाय के लोग उनके पास परमार्थ लाभ करने के लिए आते थे।

एक दिन की घटना है। एक शेख ने आकर कहा कि हमें भी प्रेम का रंग प्रदान कीजिए। गुरु रविदास जहाँ पर चमड़ा धो रहे थे, उस कुंभ का पानी लिया और शेख को दे दिया। शेख ने उससे ग्लानि की और छुपाकर वह पानी फेंक दिया। उस पानी का छींटा उसकी कमीज पर पड़ गया। घर जाकर उसने कमीज उतारकर नौकरानी को धोने के लिए दे दी।

नौकरानी जब कमीज को धोने लगी तो पानी का वह दाग नहीं उतर रहा था। बहुत प्रयत्न किया, परंतु दाग नहीं उतरा। इसके बाद नौकरानी उस कपड़े को मुँह में लेकर दाग को चूसने लगी। दाग को चूसते ही नौकरानी में अनेक शक्तियाँ प्रवेश कर गईं। उसके परिवर्तन के बारे में जानकर शेख पछताने लगा कि मुझसे यह कैसी भूल हो गई। इसके बाद शेख ने गुरु रविदास के पास जाकर क्षमा-याचना की और उनका शिष्य बन गया। गुरु रविदास ने उसको प्रभु बंदगी का संदेश सुनाया--

करि बंदगी छाड़ि मैं मेरा।

हिरदे नामु सम्हारि सबेरा।

जनमु सिरानो पंथु न सवारा।

साँझ परी दहदिस अंधियारा।

कहि रविदास निदानि दिवाने।

चेतसि नाहीं पुनीमा फरवाने।

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रचनाएँ
संत रविदास जी से संबंधित कहानियाँ
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आज माघ महीने की पूर्णिमा है। शास्‍त्रों में इस दिन को बड़ा ही उत्तम कहा गया है इसी उत्तम दिन को 1398 ई. में धर्म की नगरी काशी में संत रविदास जी का जन्म हुआ था। रविदास जी को रैदास जी के नाम से भी जाना जाता है। इनके माता-पिता चर्मकार थे। इन्होंने अपनी आजीविका के लिए पैतृक कार्य को अपनाया लेकिन इनके मन में भगवान की भक्ति पूर्व जन्म के पुण्य से ऐसी रची बसी थी कि, आजीविका को धन कमाने का साधन बनाने की बजाय संत सेवा का माध्यम बना लिया। संत और फकीर जो भी इनके द्वार पर आते उन्हें बिना पैसे लिये अपने हाथों से बने जूते पहनाते। रैदास की वाणी भक्ति की सच्ची भावना, समाज के व्यापक हित की कामना तथा मानव प्रेम से ओत-प्रोत होती थी। इसलिए उसका श्रोताओं के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता था। उनके भजनों तथा उपदेशों से लोगों को ऐसी शिक्षा मिलती थी जिससे उनकी शंकाओं का सन्तोषजनक समाधान हो जाता था और लोग स्वत: उनके अनुयायी बन जाते थे।
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पीरां दित्ता मरासी की ईर्ष्या

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सेठ ने किया अमृत का तिरस्कार

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पारस भेंट करने की कथा

17 जून 2022
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बरस सात को भयौं है जबही, नौधा भक्ति चलाई तब ही। अस भगवन की सेवा करई, सतगुरु कहो सो सीव न तरई॥ गुरु रविदास जब सात वर्ष के हुए तो श्रदूधालु जन उनके पास आकर भक्ति का आनंद प्राप्त करने लगे। बरस सात औ

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17 जून 2022
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कन्या के रूप में गंगाजी का आना एक बार गुरु रविदास ने एक भंडारा किया। इस भंडारे में कन्या के रूप में स्वयं गंगाजी आईं। कन्या के अलौकिक रूप पर एक राजा मोहित हो गया। उसने गुरु रविदास के पास संदेश भेजा क

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मीराबाई के जन्मस्थान मेड़तियों के इतिहास एवं राठौरों के भाटों की बहियों द्वारा मीराजी का जन्म श्रावण सुदी एकम शुक्रवार संवत्‌ 1561 माना गया है। बचपन में मीरा की माता का देहांत हो गया था। मीरा इकलौती स

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करमावती नाम की 60-65 वर्ष की महिला सीर गोवर्धनपुर में रहती थी। उसका बालक रविदास की दादी लखपती के साथ बहुत प्रेम था। दादी लखपती प्राय: अपने प्रिय पौत्र को लेकर उससे मिलने जाया करती थीं। करमावती स्वयं ल

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हिरनी की रक्षा

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बालक को जीवनदान

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