‘यादें घर आँगन की’ हिंदी के वरिष्ठ और सम्मानित कवि कथाकार प्रकाश मनु जी के दुर्लभ आत्मीय संस्मरणों की पुस्तक है, जिसमें उन्होंने खुलकर अपने घर आँगन और परिवेश के बारे में लिखा है। पुस्तक में उनके बचपन और किशोरावस्था की दुर्लभ स्मृतियाँ हैं, जो जाने अनजाने उन्हें लेखक बना रही थीं। इस तरह मनु जी के लेखक होने की कहानी भी कहीं न कहीं इन आत्मीय संस्मरणों में गुँथी है, जो पाठकों को कुछ चकित और हैरान भी करती है कि कैसे दिन रात अपने आप में खोया रहने वाला एक बच्चा धीरे धीरे साहित्य की दुनिया में आया, तो एकाएक उसे अपने अनसुलझे सवालों के जवाब मिलने लगे और उसकी आत्मा प्रकाशित हो उठी। साहित्य ने ही उसे बिन पंखों के उड़ना सिखाया और होते होते एक दिन उसे समझ में आया कि वह तो लेखक होने के लिए ही जनमा है। और तब उसने प्रतिज्ञा की कि चाहे पूरी रोटी नहीं, आधी मिले या भूखा भी रहना पड़े, तो भी मैं जिऊँगा तो साहित्य के लिए ही, मरूँगा तो साहित्य के लिए ही।
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