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यमुना- प्रेम की सरिता

अंशुल

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काव्य वह वाक्य रचना है जिससे चित्त किसी रस या मनोवेग से पूर्ण हो अर्थात् वह जिसमें चुने हुए शब्दों के द्वारा कल्पना और मनोवेगों का प्रभाव डाला जाता है। रसगंगाधर में 'रमणीय' अर्थ के प्रतिपादक शब्द को 'काव्य' कहा है। 'अर्थ की रमणीयता' के अंतर्गत शब्द की रमणीयता (शब्दलंकार) भी समझकर लोग इस लक्षण को स्वीकार करते हैं। पर 'अर्थ' की 'रमणीयता' कई प्रकार की हो सकती है। इससे यह लक्षण बहुत स्पष्ट नहीं है। साहित्य दर्पणाकार विश्वनाथ का लक्षण ही सबसे ठीक जँचता है। उसके अनुसार 'रसात्मक वाक्य ही काव्य है'। रस अर्थात् मनोवेगों का सुखद संचार की काव्य की आत्मा है। काव्य यूं तो रस छंद और अलंकारों से युक्त होता है किंतु इस पुस्तक में प्रस्तुत कर रहा हूं उस काव्य को एक नए तरीके से रसों छंदों और अलंकारों से मुक्त करके मुझे पूरा विश्वास है निश्चित ही ये नई कविताएं पाठक को पसंद आएंगी, इन नई कविताओं का ही संग्रह है "यमुना-प्रेम की सरिता" 

yamuna prem ki sarita

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