अंकिता शर्मा युवा है, ख़ूबसूरत है, स्मार्ट है। अपनी मेहनत के बल पर वह एक प्रतिष्ठित मैनेजमेंट स्कूल में एमबीए के कोर्स में दाख़िला भी पा लेती है। छह महीने बाद, वह एक मानसिक स्वास्थ्य केंद्र की मरीज़ हो गई है। ज़िंदगी बेरहमी और बेदर्दी से उससे वो सब कुछ छीन लेती है जो उसके लिए सबसे ज़्यादा मायने रखता था और अब वो सब वापस पाने के लिए उसे जद्दोजहद करनी होगी।एक कहानी जिसके केंद्र में है मुहब्बत की दास्तान जो हमें मजबूर कर देती है कि हम अपने ऊपर और मानसिक संतुलन की अपनी धारणा के ऊपर सवाल उठाएं और विश्वास करें कि जिंदगी असल में वैसी ही होती है जैसी आप इसे बनाते हैं।
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