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शिक्षा education hindi poem

4 सितम्बर 2022

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रोजगार नाग दंस से है अर्धविछिप्त समाज !
गिर रहा प्रतिभा का सम्मान हर जगह आज !!
राजनीति कूटनीति से ये लेते निज रोटी सेक !
नित नवीन विकल्पों को देते बार-बार फेक !!
ये मद मस्त आतुर है करने को समाज पस्त !
जाति धर्म भाषा क्षेत्र में उलझा करे हमें त्रस्त !!
बेरोजगारी सुरसा बदाये नित निज भय आनन!
कोर्ट कचहरी क़ानून प्रहरी रोके भरती विधानन !!
कारण हो गया है सोचनीय दर्शनीय मंथनीय !
बद नीतियों से ही है बन रही दशा अकथनीय !!
शिक्षा की परीक्षा है या है यह परीक्षा की शिक्षा !
बिगाड़ दिए है खेल दे कर नाम इसे सर्व शिक्षा !!
अंगूठा टेक रहेना एक के नाम कर रहे साक्षर !
शिक्षित साक्षर बनो रहो भले शिक्षित निरक्षर !!
कूडा ढेर डिग्री बन रही है फाईलो में सज रही !
यूथो को कचरा मास्टर बनाने में लगी है सही !!
जो है शिक्षा सम्पन्न और सर्व ज्ञान के धारक !
वे ही हो सकते है हर समय यहाँ विद्या तारक !!
पर वाह कुसंग तू नसावे स्व साथ मिलावे कैसे !
नक कटी समाज नाक वाले की नाक कटावे जैसे !!
चले सत्रांक प्राप्तांक संयुक्तांक की भारी खेल !
पास होना तय हुआ मिटा अध्ययन का झमेल !!
आठवी तक तो किसी को नहीं करना है फेल !
शिक्षा स्तर सुधारने वाह रे सुन्दरतम खेल !!
शत प्रतिशत हो जायेगी भविष्य में साक्षरता !
भारत की गरिमा महिमा मंडित करे अक्षरता !!
साक्षर शिक्षित विलग विलग हैन्यारे इनके भाव !
असंख्य शिक्षितों का साक्षर सा बना देगे स्वभाव !!
शिक्षित सह शिक्षित साक्षर पा रहे है राज काज !
निश्चित ही समाज पर गिर रहा है यह गाज !!
मन मार कर रहा है आम आदमी जहर पान !
ऐसी क़ानून डालेगी कैसे देश हित  नव जान !!
शिक्षा स्तरीय या स्तरहीन विषय वस्तु युक्त !
स्तरीय बनाने को होते है नित नवाचार प्रयुक्त !!
शिक्षा प्रारम्भांत सबको मिल सुधारनी ही होगी !
नित नव ज्ञान विज्ञान से संचालित करानी होगी !!
तब जाकर गली गली अलख जगाएगी सद शिक्षा !
फहरे परचम भारत का सर्व सुलभ हो सद शिक्षा !!
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रचनाएँ
कुर्सी कंचन कामिनी"मुक्तक संग्रह"
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मुक्तक-संसार के अटूट पथ पर कुर्सी कंचन कामिनी"मुक्तक संग्रह" एक अदना से कंकण के समान पथ समृद्धि में अपना योगदान दे और समस्त मानव इसके आनन्द-सागर से कुछ संग्रहित कर सके इस हेतु एक छोटा सा प्रयास आपकी सेवा में। आपका गिरिजा शंकर तिवारी "शाण्डिल्य"
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एकादश मुक्तक

3 सितम्बर 2022
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वाद की है झङी लगी, जात पात का मेल!विकृतियां अब समाज की, हो रही वीष बेल!!१!!तुलसी के सात काण्ड, अब तो काण्ड अनन्त!कल्याण नही अब देश का, तेरे बिन भगवन्त!!२!!नहीं पता हैं काण्ड का, चीनी बिजली फोन!हर्षद म

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कुर्सी कंचन कामिनी(कुर्सी, कंचन, कामिनी)

4 सितम्बर 2022
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कुर्सी कंचन कामिनी जन करे वाह वाह ।ज्यो-ज्यो ये सब पास हो, टिकती नही निगाह।।कुर्सी की यह लालसा ललक बढाऍ जोस ।कट गया उस समाज से, जिन पर किया भरोस ।।कन्चन से परेशानी ,रहे ना सदा पास ।देता सुख-दुुःख सब य

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शिक्षा education hindi poem

4 सितम्बर 2022
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रोजगार नाग दंस से है अर्धविछिप्त समाज !गिर रहा प्रतिभा का सम्मान हर जगह आज !!राजनीति कूटनीति से ये लेते निज रोटी सेक !नित नवीन विकल्पों को देते बार-बार फेक !!ये मद मस्त आतुर है करने को समाज पस्त !जाति

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।।सिक्का।।coin hindi poem

4 सितम्बर 2022
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श्री गजानन पद पंकज, वंदन बारंबार।मिटाये आपदा सहस सूर्य ज्यो अंधकार।।1।।इष्ट देव हनुमान पद, सतत सरल मम नमन।हर हर जन का दुःख सद, कै सुवास जग चमन।।2।। कृष्णम वंदे जगत गुरुं,जगत सुत हित रत नित।कंस मु

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आस्तिन का साँप। serpent

4 सितम्बर 2022
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अब मैं भी गया हूँ भाँप।होते है आस्तिन में साँप।।मीरजाफ़र जयचंद तब।अपना बन पराये अब।।पराये हो जायें अपने जब।अपने हो जायें पराये कब।।सर्पेन्ट मर्चेन्ट का कमिटमेंट।अदृश्य है शॉपिंग सेटेलमेंट।।हर शाख

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आओ हम विचारे । । come we think hindi poem

4 सितम्बर 2022
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आओ हम विचारे कुछ आज ,सूर्य-चन्द्र सा करते काज। दिन-रात सिखे-सिखाये साज ,देश बनाये जग सिर ताज।। १।। श्री की चाह जह राह आज ,तह येन-केन मन-बंचक राज। छोड़ जग मर्यादा मा

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।।।आखिर क्यों।।infact why hindi poem

4 सितम्बर 2022
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सोच-समझ कर रहना भैया आखिर क्यों उलझना है।जीवन है क्षण भंगुर फिर शाश्वत किसे यहाँ रहना है।।विस्तार वादी नीति पर जगत तनय को कुछ कहना है।पंच तत्वों की काया को उन्हीं पंच तत्वों में मिलना है।।1।काया कंचन

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।। यह हकीकत है।।it is true hindi poem

4 सितम्बर 2022
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यह हकीकत है माँ से इंसा देव दानव मानव बनता है। खयाली पुलाव से नहीं कर्म से नर यहाँ आगे बढ़ता है।। ज्ञानियों का भाल-सूर्य हर हाल सुबरन सा चमकता है। मूर्ख-मेढ़क सत्य-रज्जू को असद-सर्प ही समझता है।।1।।

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।।काँव-काँव।। crowing hindi poem

4 सितम्बर 2022
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यहाँ-वहाँ हर गली-गली में हो रहा है काँव-काँव।सत्ता के भूखे भेड़िये हैं जाल फैलाये ठाँव-ठाँव।।रात-दिन कौवे कब कहाँ क्यों हैं शोर मचाते।निज के लिए हैं हर कागा अद्भुत भीड़ जुटाते।।1।।काँव-काँव ऐसा स्वर है

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