आओमिलकर झूला झूलें हम सभी जानते हैं कि भारत त्योहारों और पर्वों कादेश है |त्यौहारों का इतनाउत्साह,इतने रंगसम्भवतः हमारे ही देश में देखने को मिलते हैं | यहाँ त्यौहार केवल एक अनुष्ठान मात्र नहीं होते, वरन् इनके साथसामाजिक समरसता,सांस्कृतिकतारतम्य,प्राचीनसभ्यताओं की खोज एवं अपने अतीत से जुड़े रहने का
"कुंडलिया"खेती हरियाली भली, भली सुसज्जित नार।दोनों से जीवन हरा, भरा सकल संसार।।भरा सकल संसार, वक्त की है बलिहारी।गुण कारी विज्ञान, नारि है सबपर भारी।।कह गौतम कविराय, जगत को वारिस देती।चुल्हा चौकी जाँत, आज ट्रैक्टर की खेती।।-1होकर के स्वछंद उड़े, विहग खुले आकाश।एक साथ का है सफर, सुंदर पथिक प्रकाश।।सुं
सावन के झूले कलहरियाली तीज – जिसे मधुस्रवा तीज भी कहा जाता है – का उमंगपूर्ण त्यौहार है,जिसे उत्तर भारत में सभी महिलाएँ बड़े उत्साह से मनाती हैं और आम या नीम की डालियोंपर पड़े झूलों में पेंग बढ़ाती अपनी महत्त्वकांक्षाओं की ऊँचाईयों का स्पर्श करने काप्रयास करती हैं | सर्वप्र
“हरियाली”मधुमास में मनहरण सरसो के पीले फूल मन को लुभा गए, भौंरे भी खूब उड़े, कई रंगों वाली तितलियाँ भी बच्चों का मन ललचा कर, फसलों में फली लगते ही न जाने कहाँ छुप गई। जब फसल गदराने लगी तो हरियाली ने अपना रंग बदला तो सूरज भी पछुवाई से मिलकर अपना ढंग बदल लिया। हर जगह गेंहुवा