कावेरी और रवीश शादी के दो साल बाद से ही अलग रह रहे थे। हलाकि उनके बीच तलाक नहीं हुआ था। जब रवीश उसे और उसकी एक साल की बेटी को उसके माता-पिता के घर छोड़ने के छह महीने बाद भी उसे लेने नहीं लौटा। कावेरी के पिता रामचरण और माँ सीता को लगा कि कुछ गड़बड़ है। कावेरी ने पुष्टि की कि रवीश शादी से खुश नहीं था , लेकिन उसे इसका कारण नहीं पता था। धीरे-धीरे लोगों ने मान लिया था कि रवीश ने उसे छोड़ दिया है। कावेरी की बेटी अरुणा को आश्चर्य होता कि एक पुरुष के लिए कैसे यह संभव था कि पत्नी को बिना कारण बताये बस छोड़ दें। शादी के बाद कावेरी कई बार ससुराल गयी और लौटी थी । फिर वह अपने माता-पिता के घर ऐसे लौटकर आयी कि वापस नहीं गयी । बिना किसी विरोध के स्थिति को स्वीकार कर लिया गया। सभी ने इसे भाग्य का दोष माना । अरुणा के मन में कुछ सवाल थे जिनके जवाब किसी ने नहीं दिए थे । उसने सोचा था कि वह एक दिन अपने पिता से पूछ लेगी। उसे थोड़ा अजीब लगता था कि स्कूल में और जहाँ भी पिता का नाम लिखा जाता था, वहाँ उसे रवीश का नाम लिखना होता था जो ऐसा पिता था जिससे वह कभी मिली तक नहीं थी। उसका पूरा नाम भी अरुणा रवीश लिखा और पढ़ा जाता था। उसे यह भी देखकर अजीब लगता कि उसकी माँ अपनी माँग में नियमित सिन्दूर भरती थी । वह जानती थी कि सिंदूर महिला को विवाहिता के रूप में दिखाता है और ऐसा कहा जाता है कि यह उसके पति के जीवन को बढ़ाता है। उसकी मां ने उसे अपने पति से सम्बन्ध विच्छेद के बारे में कुछ नहीं बताया था । अब वह 18 साल की युवती थी। जब वह एक बच्ची थी तो वह उत्सुकता से अपनी माँ से कई बार पूछती , "हम दादा दादी से मिलने क्यों नहीं जाते हैं?
कावेरी जवाब देती, "हम अगले साल जाएंगे।''
वह कावेरी से पूछती, "माँ, पापा हमारे साथ क्यों नहीं रहते?"
कावेरी जवाब देती , "वह विदेश में काम कर रहे हैं।"
उसने कई बार पूछा, "वह यहाँ हमसे मिलने क्यों
नहीं आते ?"
कावेरी ने उत्तर दिया, "वह अवश्य व्यस्त
होंगे।"
बाद में नानी ने उसे बताया कि उसके पिता ने उसकी मां को छोड़ दिया था । उसे यह भी पता चला कि रवीश ने एक दूसरी महिला के लिए कावेरी को छोड़ दिया था। यह जानने से पहले वह अपने पिता से कभी कभी लगाव महसूस करती थी। यह जानने के बाद वह उनसे नफरत करने लगी । वह उनसे सिर्फ नफरत ही कर सकी थी। उसने अपने नाम से भी
पिता का नाम सदा के लिये काट दिया था ।