गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है:-
अकीर्तिं चापि भूतानि कथयिष्यन्ति तेऽव्ययाम्।
संभावितस्य चाकीर्तिर्मरणादतिरिच्यते।।2/34।।
अर्थात (अगर तू इस धर्म युद्ध को नहीं करेगा तो……. )सब लोग तेरी
निरंतर अपकीर्ति करेंगे, और माननीय पुरुषके लिए तो अपकीर्ति मरने से भी बढ़कर है ।
इस श्लोक से हम अपयश शब्द को एक सूत्र के रूप में लेते हैं। वास्तव
में एक मनुष्य के रूप में हमारा कर्तव्य अपने व्यक्तिगत जिम्मेदारियों के निर्वहन के
साथ-साथ सार्वजनिक सेवा और मानव कल्याण के लिए समर्पित होने का भी है। मनुष्य एक सामाजिक
प्राणी है। वह परिवार, पास-पड़ोस, शहर, गांव जिला, प्रांत और देश में रहता है। उसे
कई बार अपने जीवन में दूसरों की टीका टिप्पणी और निंदा का भी शिकार होना पड़ता है।
कई बार तो स्थिति यह बनती है कि मनुष्य का कार्य कहीं से भी निंदनीय नहीं होता, लेकिन
उसकी फिर भी निंदा की जाती है; या तो किसी गलतफहमी के कारण या फिर मानव की सहज प्रवृत्ति
और बैठे ठाले टिप्पणी करते रहने की आदत के कारण। ऐसे में मनुष्य को विचलित नहीं होना
चाहिए।उसे अपयश की परवाह न करते हुए अपने कार्य को सुचारू रूप से संचालित करने पर ही
ध्यान केंद्रित करना चाहिए। हालांकि यह कठिन होता है।भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री
श्री अटल बिहारी वाजपेयी पर जब सार्वजनिक जीवन में एक बार आरोप लगे तो उन्होंने संसद
में बहस के समय जवाब में एक संस्कृत श्लोक का शुरुआती अंश कहा था। पूरा श्लोक इस तरह
है:-
भीतो मरणादस्मि केवलं दूषितं यशः।
विशुद्धस्य हि मे मृत्युः पुत्रजन्मसमः किलं॥
मैं मृत्यु से नहीं डरता; मुझे यही दुःख है कि मेरी कीर्ति कलंकित
हो गई। यदि कीर्ति शुद्ध रहे और मृत्यु भी आ जाए, तो मैं उसको पुत्र के जन्म के उत्सव
के समान मानूंगा।' उन्होंने भगवान राम का उद्धरण देते हुए कहा था-मैं मृत्यु से नहीं
डरता। डरता हूं तो बदनामी से।
निंदा और आरोप किस पर नहीं लगते? लेकिन उससे विचलित होकर मनुष्य
अपना काम तो नहीं छोड़ देता।
शायर वज़ीर आग़ा के शब्दों में:-
दिए बुझे तो हवा को किया गया बदनाम
क़ुसूर हम ने किया एहतिसाब उस का था।
निंदा और झूठे आरोपों से अविचलित रहना बहुत मुश्किल तो है लेकिन
अपने मुख्य लक्ष्य से न भटकने के लिए कभी-कभी यह करना ही होता है।
श्री कृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि अपकीर्ति लोक में बहुत समय तक
रहती है। एक सम्मानित पुरुष के लिए अपकीर्ति मृत्यु से भी बढ़कर है। साथ ही कायरता
के कारण मनुष्य जिन व्यक्तियों की दृष्टि में सम्मानित था अब उन्हीं की दृष्टि में
वह लघुता को प्राप्त हो जाएगा। श्री कृष्ण ने कहा कि हे अर्जुन !ऐसे लोग तुम्हें भय
के कारण ही युद्ध से हटा हुआ मानेंगे।(2/35)
वीर चुनते हैं युद्ध
कायरों के हिस्से में आता है पलायन,
वीर शस्त्र उठाते हैं, और जाते हैं युद्ध भूमि में
कायर शस्त्र नीचे रखकर
करते हैं प्रार्थना युद्ध टल जाने की
पर जब यह सुनिश्चित हो
कि तमाम शांति प्रयासों के बाद भी
अगर युद्ध है अपरिहार्य
तो ऐसे में युद्ध बन जाता है
वीरों का उत्सव
और युद्ध से पलायन कर
कायर जीते हैं अपयश
युद्ध टल जाने
या युद्ध की समाप्ति के
बरसों बाद भी ।
डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय