24. आगे बढ़ें तो सारे विकल्प उपलब्ध होते रहेंगे
अर्जुन श्रीकृष्ण की इस बात से पूरी तरह सहमत
हैं कि अगर वे युद्ध से हटते हैं तो उन्हें "अर्जुन कायरता के कारण युद्ध से हट
गया" ऐसे निंदा और अपमानजनक वचन भी सुनने को मिलेंगे। एक योद्धा के लिए इससे दुखद
और क्या हो सकता है?
गीता में भगवान श्री कृष्ण ने आगे कहा है-
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे
महीम्।
तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः।(2.37)।
शूरवीरोंके साथ युद्ध करने पर या तो तू युद्धमें
मारा जाकर स्वर्गको प्राप्त होगा अथवा संग्राममें जीतकर पृथ्वीका राज्य भोगेगा।इस कारण
हे अर्जुन ! तू युद्धके लिए कृतसंकल्प होकर खडा हो जा ।
इस श्लोक में से हम युद्ध के लिए कृत संकल्प
शब्द को लेते हैं। यहां पर युद्ध मानव जीवन में पग-पग पर उपस्थित होने वाले गतिरोध,अंतर्विरोध,अड़चनें
और तनाव के रूप में है।मनुष्य सफलता के लिए खतरे नहीं उठाना चाहता है और अपना थोड़ा
भी नुकसान न हो,हार न हो इस आशंका में कोई भी काम शुरू करने से घबराता है। वास्तव में
कोई कार्य शुरू करने पर सफलता और असफलता यही दो परिणाम सामने आते हैं। मनुष्य को पूरे
मनोयोगपूर्वक किए गए कार्य के बाद भी कभी-कभी असफलता हाथ लग सकती है।ऐसे में एक द्वार
बंद होने पर अगर मन में संकल्प शक्ति हो तो अनेक नये द्वार खुलते हैं। अनेक संभावनाएं
प्रकट होती हैं। कभी-कभी तो असफलता भी पीछे छूट चुकी सफलता से कहीं बड़ी सफलता के द्वार
खोल देती है।
असफलता मनुष्य को तोड़ कर रख देती है। विशेष
रूप से जब किसी अभीष्ट प्रयास में सफलता का मिलना सर्वाधिक वांछित था।तब भी मनुष्य
कभी-कभी असफल हो जाता है।सपने टूटते हैं। एक साधारण मनुष्य और साहसी मनुष्य में यही
अंतर है कि साधारण व्यक्ति बार-बार असफलता मिलने पर थक हारकर बैठ जाता है, लेकिन साहसी
इसे भी एक अवसर के रूप में लेता है।अपनी गलतियों से सीखता है और फिर उसे जीत की संभावना
में बदल देता है।वास्तव में जीवन पथ पर हमेशा शुभ सोचना चाहिए ।नवीन दृष्टिकोण से युक्त
होकर,समस्याओं पर विजय प्राप्त कर सदैव आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।
साहिर लुधियानवी के शब्दों में:-
हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उट्ठें
वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं।
योगेंद्र