15.आपके
पास ही है अक्षय शक्ति वाली आत्मा, आत्मशक्ति का लोकहित में हो विस्तार
गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने जिज्ञासु अर्जुन से कहा है:-
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।(2/23)।
इसका अर्थ है, भगवान कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन,इस आत्माको शस्त्र
काट नहीं सकते,आग जला नहीं सकती,जल गला नहीं सकता और वायु सुखा नहीं सकता।
दूसरे अध्याय के इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से आत्मा
की प्रकृति को स्पष्ट किया है। सभी लोगों के भीतर प्रकाशित यह आत्मा अपनी प्रकृति में
विलक्षण है।जल में रहकर भी कमल की तरह निर्लिप्त।उस स्वच्छ दर्पण की तरह जो मनुष्य
को बिना किसी दुराव छुपाव के उसकी छवि दिखा दे।अब इतनी शुद्ध और पवित्र आत्मा पर कोई
दोष या मैल की परत चढ़ेगी कैसे? यह तो मनुष्य है जो अपने आसपास अपने कर्मों की खुद
की बनाई भाप और मटमैले धुएँ के कारण वास्तविकता को देख नहीं पाता है। ऐसे में वह दर्पण
को दोष देने लगता है। इस आत्मा को किसी शस्त्र से नहीं काटा जा सकता है।आग जल और वायु
भी क्रमशः इसे जलाने,डुबोने और सुखाने में असमर्थ हैं।
हमारे सभी कर्मों के लिए इस आत्मा के साक्षी होने के बाद भी हम सीधा
सरल जीवन जीने के बदले इस आत्मा की मार्गदर्शक वाली स्थिति की अवहेलना करते हैं और
अपने मन की मनमानी का शिकार हो जाते हैं।
योगेंद्र