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16. एकाग्र होने और पूर्ण मनोयोग रखने पर प्राप्त होती है आत्मा से सूझ और शक्ति  

16 जून 2023

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16. एकाग्र होने और पूर्ण मनोयोग रखने पर प्राप्त होती है आत्मा से सूझ और शक्ति

 

गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने आत्मा की शक्तियों की विवेचना करते हुए आगे कहा है:-

 

अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च।

 

नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः।

 

इसका अर्थ है, भगवान कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन, यह आत्मा अच्छेद्य( जिसे काटा न जा सके) है।यह आत्मा अदाह्य( जिसे जलाया न जा सके),अक्लेद्य( जो गीला न हो सके)और निःसंदेह अशोष्य( जिसे सुखाया न जा सके) है।यह आत्मा नित्य, सभी जगह जाने में समर्थ,अचल(जो हिले भी न),स्थिर(एक ही स्थान पर हो)और सनातन है।

 

वास्तव में अपार शक्तियों का स्वामी है यह आत्मा। गीता के अध्याय 2 के अनेक श्लोकों में भगवान श्रीकृष्ण ने आत्मा की विशेषताएं बताई हैं।यह आत्मा मनुष्य के भीतर विराजमान है इसलिए स्वतःही मनुष्य में भी ये सारी शक्तियां न्यूनाधिक रूप में महसूस की जा सकती हैं। जहां हम कभी स्वयं को एकाग्र कर और पूर्ण मनोयोग से असाधारण कार्य कर पाने की स्थिति में होते हैं,तो वहां हम अपनी चैतन्य आत्मा द्वारा प्राप्त शक्ति को महसूस कर सकते हैं।हमारे जीवन की पूरी यात्रा बाहर की खोज है।हमारे दिन के मिनट घंटे सभी तय हैं कि इस समय पर यह कार्य होना है और कभी-कभी हम आलस्य भी कर जाएं तो आने वाले समय में हमें उस कार्य को संपन्न करने की ही चिंता होती है।

 

बाहर सुख-सुविधाओं,यश,सम्मान, सफलता और उपलब्धियों की खोज में कभी भीतर की यात्रा नहीं हो पाती है। यह सच है कि मन को निष्क्रिय अवस्था में रखना संभव नहीं है क्योंकि मस्तिष्क द्वारा भावी कार्यों की योजना बनाने में यह मन किसी भी सीमा तक जाकर किसी अभीष्ट कार्य के सभी संभावित परिणामों को भी देख आता है।वहीं अति चिंतन प्रक्रिया के भी खतरे हैं,इसलिए मन को कुलांचे भरते हुए यहां-वहां भटकने वाले हिरण की तरह भी नहीं छोड़ा जा सकता है।आत्मा को पहचानने और उसकी शक्तियों को जाग्रत करने की शुरुआत दिन के 24 घंटों में से कुछ मिनट शांत चुपचाप बैठने से हो सकती है।जब हम थोड़ी देर ही सही,पूरी तरह से निर्विकार और चिंतनशून्य होने की कोशिश करें।आगे का रास्ता यहीं से शुरू होता है।

 

 

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रचनाएँ
भगवान श्रीकृष्ण उवाच
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परिचय श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है। इस धारावाहिक में लेखक द्वारा अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों की साहित्यिक प्रस्तुति है,जिसमें कहीं-कहीं लेखक की रचनात्मक कल्पना और भक्तिभाव भी भरे हैं।यह धारावाहिक -"भगवान श्री कृष्ण उवाच" भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्रों को ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण रचनात्मक लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रतिदिन प्रस्तुत करने का प्रयत्न है, कृपया पढ़िएगा अवश्य…….✍️🙏
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जीत सत्य की होती हैपृथ्वी द्वारा उठाए गए प्रश्न और उसके समाधान को विवेक ने कल की ज्ञान चर्चा में ध्यानपूर्वक सुना था।वह विचार करने लगा कि दुनिया में जो भी घटित होता है, वह वही होता है जो उसे किस

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16. एकाग्र होने और पूर्ण मनोयोग रखने पर प्राप्त होती है आत्मा से सूझ और शक्ति गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने आत्मा की शक्तियों की विवेचना करते हुए आगे कहा है:- अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक

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24. आगे बढ़ें तो सारे विकल्प उपलब्ध होते रहेंगे

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24. आगे बढ़ें तो सारे विकल्प उपलब्ध होते रहेंगे अर्जुन श्रीकृष्ण की इस बात से पूरी तरह सहमत हैं कि अगर वे युद्ध से हटते हैं तो उन्हें "अर्जुन कायरता के कारण युद्ध से हट गया" ऐसे निंदा और अपमान

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