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9.
जाकर देखा झोपड़ी के अन्दर वह बूढ़ा बीमार था बड़ा।
शायद खानें के लिए कुछ कह रहा था कांपते-कांपते।।
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10.
लगता है वो आखें रोते-रोते ही सो गयीं हैं।
वरना रुख़सार पर ये निशां कहाँ से आयें।।
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11.
मैंने भी बनाए है कुछ वसूल जीने के लिए |
पर तेरी खुशी की खातिर यह टूट जाए तो परवाह नहीं||
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12.
कहाँ ढूढते हो तुम खुदा को इधर से उधर
मस्जिद-ओ-मंदिर |
घर में ही है अक्स उसका जिसे तुम अपनी
माँ समझते हो ||
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