संपूर्ण सृष्टि में चीजे एक दूसरे से जुडी होती है और उनमें एक विशिष्ट तालमेल होता है। विज्ञान से लेकर हमारे धर्म ग्रंथ कहते है कि ऐसे कई नियम अविरल काम करते रहते हैं। कार्य कारण को लेकर घटी घटना का सम्बन्ध मनुष्य से सीधे तौर पर न भी हो तो परोक्ष रूप से होता है चाहे वो घटना पृथ्वी पर घाटे या आकाश में।
समय की गहराई में झांकते हम अपने आधारभूत गुण के साथ गति और लय में इस जगत नृत्य में शामिल है ये नृत्य वो नृत्य है जो स्पन्दनकारी है जहां केवल पदार्थ ही नहीं बल्कि सृजनकारी एवं विनाशकारी ऊर्जा का अंतहीन प्रतिरूप शून्य भी जगत नृत्य में हिस्सा लेता है।
इसे हम ऐसे समझ सकते है पृथ्वी अपनी आकर्षण शक्ति से भारी पदार्थो को अपनी और खींचती है और आकर्षण के कारण वह जमीन पर गिरते है पर जब आकाश में सामान ताकत चारो और से लगे तो कोई कैसे गिरे ? अर्थात आकाश में गृह निरावलंव रहते है क्योंकि विविध ग्रहों की गुरुत्व शक्तियां संतुलन बनाएं रखती है । इसे हम मनुष्य की परस्पर आकर्षण शक्ति प्रेम के रूप में भी देख सकते है और ज्ञान,कर्म,अर्थ के रूप में भी जो हिंदू धर्म में महाकाली,महालक्ष्मी,महासरस्वती के रूप में पूजित है।
इससे इतर हमारे वेद परमात्मा को कुछ इस तरह से वर्णित करते है-
परमात्मा अमर है उसका न जन्म हुआ न मृत्यु ।वो निराकार,निर्विकार है। वो हर तरफ मौजूद है। उसके एक अंश से संपूर्ण ब्रम्हांड बना है। अब सवाल ये उठता है वो कौन है और कहां है ? इस शाश्वत प्रश्न का उत्तर अभी शेष है लेकिन उपरोक्त गुण अंतरिक्ष में मौजूद है तो क्या हम जिस सर्वशक्तिमान ईश्वर की बात करते है वो अंतरिक्ष ही है या उस के पार कोई और शक्ति जो जगत को संचालित करती है प्रश्न अनुत्तीर्ण है।
विज्ञान कहता है इस ब्रम्हांड में मौजूद गुरुत्वाकर्षण भी शक्ति ही है । हर सजीव में शक्ति का अस्तित्व है। कण - कण में शक्ति है इसीलिए शायद हमारे बड़े बुजुर्ग कहते थे कण-कण में भगवान है जो इस बात का सबूत है कि इस अंतरिक्ष में शक्ति का अस्तित्व पहले से ही था ।मतलब ब्रम्हांड और जीवन सृष्टि को अंतरिक्ष की ही शक्ति प्राप्त हुई और इस सृष्टि के अंत के बाद ये शक्ति फिर से अंतरिक्ष में मौजूद शक्ति में विलीन हो जायेगी वैसे ही जैसे हमारे अंदर की शक्ति हमारी मृत्यू के बाद न जाने कहां विलीन हो जाती है।
इस अंतरिक्ष के उस पर अगर कोई चेतना है तो भी और अगर नहीं है तो भी हमारे अंदर की चेतना को परिष्कृत करके ज्ञान,कर्म,अर्थ की शक्ति के द्वारा हम एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकते है जरुरत उस शक्ति को जागृत करने की है शायद इसीलिए भारतीय धर्मग्रंथो में आदिशक्ति की महिमा का वर्णन है
और उस आदिशक्ति से अपने को जोड़ने की कोशिश नौ रातें है जिसे हम नवरात्र के नाम से मनाते ह