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थोडा सा रूमानी हो जाय

15 अप्रैल 2017

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कभी जाड़ों का कुहरा लिपटा चंद्रोदय देखा है या नितांत रातों को बालकनी में बैठ चाय पी है ? तो फिर पतझड़ की रातों को अपने कमरे की खिड़की पर बैठ पेड़ो से झरती पत्तियां तो देखी होंगी.. नहीं। अच्छा रात के दुसरे पहर बेघर सोता फुटपाथ ,सड़क पर उड़ती धूल ,टहनियां लिपटाए सोये पेड़ तो जरुर देखें है ? नहीं, हुंह 😢 थोडा सा रूमानी हो जाये थोडा प्यार में जी जाएं।💐 आप ने चिडियों  को चाह -चाहते  हुए देखा है ?सुबह की ओस को पत्तों से गिरते हुए ? पेड़ो को हवाओं के साथ झूमते  हुए ? कितने दिनों से नंगे पैर घास पर नहीं चले है . कितने दिन पहले अपने उगते हुए सूर्य को देखा था .क्या डालती शांम को पक्षियों को उनके घर जाते देखा ? सूर्य को उसके घर जाते हुए ? आप सब कहेगे नहीं इस भागती  - दोड़ती जिन्दगी में  फ़ुरसत कहाँ  । रातों को घूमते हुए दोस्त के साथ किसी पुलिया पर यूं ही बैठे होंगे.... नहीं.... तो क्या खाक जीया और प्यार तो बिल्कुल भी नहीं किया। अरे लल्लू ये भी कोई जीने में जीना है😊 कामकाजी ज़िंदग़ी को सुखद बनाने के लिए ये ज़रूरी है कि हम कुछ पल सुबह के लिए, बारिश देखने के लिए, ओस को गिरते हुए देखने के लिए चिड़ियों को चहचहाते हुए देखने के लिए  निकले. कभी बारिश में भींग कर देखे ये ईश्वर कि वो  नियामत है जो न सिर्फ ज़िंदग़ी देती है बल्कि ज़िंदग़ी सुखद बना देती है (कभी राजस्थान के जेसलमेर के सुदूर इलाकों में जाकर देखे) पेड़ो को नए पत्ते पहनते हुए देखे फूलों पर रंग उतरते हुए देखे आप का मन इंद्रधनुषी हो जायेगा क्यो कि ये रंग सिर्फ प्रकृति का ही नहीं आप के सपनों का भी होगा .  आप जब सब कुछ पा  कर भी एकदम अकेले महसूस करे, ज़िदगी अगर रुकी, थकी. बेमानी लगे तो ज़रूरी है उसके खोए हुए अर्थ की तलाश करे जो शायद इस. भागती-दोड़ती   ज़िदगी को सुखद बनाने का ये आसन सा रास्ता है। आपने हृदय  के तारों  को इतना संकीर्ण मत करे। पता नहीं क्यों प्रगति एवं ज्ञान के तथाकथित पराकाष्ठा के स्तर तक के विकास के बावजूद हम इन  जीवों की अभिव्यक्ति को समझ नहीं पाए या समझना नहीं चाह। पेड़ ,पौधे, आकाश ,पशु-पक्षी .वर्षा ,वन, नादिया जिस दिन से आप इनके हो गए उसी  दिन आप  बिना कुछ खोये अपने पूरे अस्तित्व को पा लेंगे. रूमानी हो जाये धीरज के साथ ,धीरज रखिये ज़िदगी का लुफ्त ले .          रातों को घूमते हुए दोस्त के साथ किसी पुलिया पर यूं ही बैठे होंगे.... नहीं.... तो क्या खाक जीया और प्यार तो बिल्कुल भी नहीं किया। अरे लल्लू ये भी कोई जीने में जीना है☺ बदल दीजिए जिंदगी जीने के तरीके कुछ लम्हा निकली अपने लिए ... ये चाँद तारे आप से एकांत में मिलने को बेक़रार है।             

किरण मिश्रा की अन्य किताबें

किरण मिश्रा

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धन्यवाद रेणु जी

5 जुलाई 2017

रेणु

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बहुत प्रेरक विचार है किरण जी ---

15 अप्रैल 2017

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आदिशक्ति

29 मार्च 2017
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संपूर्ण सृष्टि में चीजे एक दूसरे से जुडी होती है और उनमें एक विशिष्ट तालमेल होता है। विज्ञान से लेकर हमारे धर्म ग्रंथ कहते है कि ऐसे कई नियम अविरल काम करते रहते हैं। कार्य कारण को लेकर घटी घटना का सम्बन्ध मनुष्य से सीधे तौर पर न भी हो तो परोक्ष रूप से होता है चाहे वो घटना पृथ्वी पर घाटे या आकाश में।

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स्त्री प्रश्न है महज़ विचार नहीं' - स्त्री विवाह और तलाक'

13 अप्रैल 2017
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सारे दरवाजे बंद करघनघोर अँधेरे में बैठा वोनिराश हताश थादरारों से जीवन ने प्रवेश कियाखोल दी खिड़की, जीवन कीवो स्त्री थीजो रिक्त हुये में भरती रही उजालेऔर बदल गई अँधेरे के जीवाश्म मेंमेरी ये पंक्तियां स्त्री की स्थिति स्पष्ट करने के लिए काफी है । समय बहुत बदला है उसकी प्रक्रिया में बहुत बदलाव आया है ले

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दिमाग की सलाखों में कैद स्त्री

14 अप्रैल 2017
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उन्नीस सौ साठ के दशक से या यूं कहें कि उत्तर-आधुनिकता के आगमन से विश्व के सामाजिक,राजनितिक चिंतन और व्यवहार में कुछ नए आयाम जुड़े है। परंपरा और आधुनिकता के संघर्ष से मानव समाज के सामाजिक जीवन एवं व्यवहार में बदलाव होता जा रहा है। सामाजिक व्यवहार तथा मूल्यों में हो रहे बदलाव अच्छे भी है और नहीं भी । इ

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प्रेमिकाओं की गाथाएं

14 अप्रैल 2017
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शिलाओं पर नहीं उकेरी जाती प्रेमिकाओं की गाथाएंन ही लगाए जाते है उनकी वीरता के लौह स्तम्भलेकिन वो करती है बलिदान खुद कोअनगिनत सपने ,स्वार्थ और प्रेमियों के आमोद प्रमोद के लिए,बिसार दी गई प्रेमिकाएं होती हैक्वांटम लीप सिद्धांत की तरहजो बिना दूरी तय किये पहुंचाती है प्रेमी तकदुआएं और आशीष,मंदिरों में च

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थोडा सा रूमानी हो जाय

15 अप्रैल 2017
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पगडंडियों पर ठहरी जिन्दगी....

20 अप्रैल 2017
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मैंने अलसाई सी आंखे खोली है। लेटे-लेटे खिड़की से दूर पहाड़ो को देखा पेड़ो और पहाडियों की श्रंखलाओ के पीछे सूर्य निकलने लगा है, हलकी - हलकी बारिश हो रही है, चिड़िया गा रही है कुछ धुंध भी है जो पहाड़ो से रास्ता बना कर होटल की खिड़की से मेरे कमरे मैं आ रही है ।पहाड़ो मैं मेरा बचपन बीता है फिर आज नय

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कातिल वसंत

24 अप्रैल 2017
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संस्मरणहर काबिल हर कातिल तक अपनी महक अपना हरापन फैलाते वसंत स्वागत है तुम्हारा....कैसा वसंत कौन सा वसंत ?मधुमास लिखी धरती पर देख रही हूँ एक कवि बो रहा है सपनों के बीज । किसके सपने है महाकवि मैं पूछती हूं और ग्रीक देवता नहीं अपोलो नहीं.. बोल पड़ा चतुरी चमार । ये कैसा मेल महाप्राण ? कोई मेल नहीं कोई सम

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अहसासों की बारिश

30 जून 2017
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स्फटिक की छत कुछ देर पहले की बारिश से धुल कर किसी नायिका की हीरे की लौंग सी चमक रही है । छत के कोने पर रातरानी की डाल जैसे चूमना चाहती है उन सफेद लिहाफ को जो आधे खुले पडे है। अभी अभी हवा के हल्के झोके से लिहाफ का आंचल रातरानी ने भर दिया है। ऊपर अंबर में बड़े से बादलो के समूह से एक छोटी बदली अभी अभी अ

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टूटती घटाएं- उमड़ती यादें

5 जुलाई 2017
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बहकता मौसम या मन

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हवाएँ बदली-बदली हैं ये मौसम बहका-बहका है ।मैंने सिर्फ़ मुहब्बत की तो फिर ये जादू कैसा है ।।नज़्मों के बादल घिरे थे कुछ ग़ज़लें भी बरसी थीं,मेरी कच्ची धरती से उठी भाप में चन्दन महका है ।उस रात चाँद से तुमने क्या कह दिया बता देना,आजकल मुझसे जाने क्यूँ वो उखड़ा-उखड़ा रहता है । तुम्हे जब याद करती हूँ तो

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अनाहत की गूंज

14 अगस्त 2017
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नृत करती आकाशगंगाएग्रह नक्षत्र तारे,नाद करता आकाशइनके बीच जो काला घना अंधकार हैवो तुम हो युग्म कृष्णतुम्ही तो होएक अनाहत की गूंजतुम्हारी बंसीगति और आवृति भी हैजो जोडती हम मानव कोएक लय और ताल मेंअरे पारिजातसारयात अश्वान इति सारधि :हमारे जीवन संचालकतुम ही हो हमारे प्रारंभ और अंतओ युग्महमें काल के प्रव

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प्याली में तुफान

12 दिसम्बर 2017
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मानव समाज जब ताम्रयुग में पहुंचता हैसंस्कृति जब ग्रामीण पृष्ठभूमि पर खडीचरखे से बनाती है सभ्यताओं के विकास के धागेजिन का छोर पकड़प्राचीन जगत की नदीघाटी सभ्यताएंनगरों की स्थापना के लिएकरती है प्रसव लिपियों कातब ग्राम और नगर के बीचएक स्वर धीरे धीरे पनपता हैजो व्यंजन में बदलबॉस्टन हार्बर मेंकरता है विरो

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