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19 साल बाद

16 मार्च 2023

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19 साल बाद

वक्त बीतता गया , , , , , , , मीरा अब पूरे 19 साल की हो चुकी थी । उसने बड़े ही अच्छे नंबरों से अपनी 12 वीं की परीक्षा भी पास कर ली थी , और कोलकाता के ही कॉलेज में ग्रेजुएशन के लिए first year में एडमिशन लिया था ।

मीरा का आज कॉलेज में पहला दिन था । गायत्री ने अपनी पूजा खत्म की , और सिया को प्रशाद देते हुए पूछा " , , , , , , , क्या बात है , मीरा अभी तक उठी नहीं क्या . . . . . ?

" नहीं मासी " , , , , , , , सिया ने कहा । ( सिया सुनैना की बेटी है , जो लगभग 15 साल की है , और बहुत शरारती भी । )

" जाओ सिया जल्दी जाकर उसे उठाओ । कॉलेज का आज पहला दिन है । कहीं लेट ना हो जाए । " , , , , , यह कहकर गायत्री आगे बढ़ गई । "

सिया ने अपने आप से कहा " , , , , , , मैं तो कोशिश करूंगी मांसी , बाकी आप संभाल लेना । " , , , , , , यह कहकर सिया मीरा के कमरे की ओर चल दी ।

सिया जब कमरे में पहुंची तो देखा " , , , , , , , मीरा चादर ओढ़ कर आराम से सोई हुई थी । मीरा को उठाने की जब सारी कोशिशे नाकाम हो गई , तो सिया ने साइड वाली टेवल से , पानी से भरा जग उठाया , और सारा ठंडा पानी मीरा के ऊपर उड़ेल दिया ।

मीरा छटपटाते हुए बेड पर उठ कर बैठ जाती हैं । उसने आंखें खोली , तो देखा सिया एक आंख बंद किए , अपनी जीभ को दांतों में दबाए , हाथ में पानी का जग पकड़े खड़ी थी । मीरा ने गुस्से से नजरें घुमाकर कहा . . . . . " सिया की बच्ची , आज तू मेरे हाथों से नहीं बचने वाली " , , , , , , यह कहकर वो सिया की ओर भागी ।

सिया भागते हुए बेड के दूसरी और आ जाती है । " अरे दी कुंभकरण की नींद लेकर सोओगी तो यही करना पड़ेगा ना " . . . . . !

मीरा गुस्से में उसकी और लपकते हुए बोली " , , , , , , ये क्या तरीका है उठाने का ? आवाज नहीं दे सकती थी क्या . . . . . ? "

" हमने तो कितनी आवाजेें दी । आपको इतना उठाया , मगर आप ही उठने का नाम नहीं ले रही थी , तो इससे अच्छा आइडिया हमारे दिमाग में आया ही नहीं । " , , , , , , , ये कहकर सिया हंसते हुए कमरे से बाहर भागी ।

" तेरा दिमाग तो में अभी ठीक करती हूं " । मीरा उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे भागी ।

सिया आगे आगे . . . . . और मीरा उसके पीछे पीछे भागी जा रही थी , की तभी अचानक से सिया किसी से टकरा गई । वो और किसी से नहीं राजेश्वरी बाई से ही टकराई थी । राजेश्वरी बाई जमीन पर लेटी अपने कमर को सहला रही थी । , , , , , , ये देखकर सिया और मीरा दोनों रूक गई , और एक दूसरे की ओर घबराई आंखों से देखने लगी ।

हाय . . . . मेरी कमर . . . .

" अरे तू क्या खडे- खडे देख रहा है , उठा मुझे " , , , , राजेश्वरी बाई ने डांटते हुए बगल में खड़े अपने आदमी शेरा से कहा । ( शेरा राजेश्वरी बाई के पाले हुए गुंडों में से एक था । )

 ' मेरी कमर ' . . . . . कराहते हुए राजेश्वरी बाई ने एक नजर सीया और मीरा पर डाली और गुस्से से बोली " , , , , , देख कर नहीं चल सकती क्या . . . . . ? ये क्या सुबह - सुबह चूहे बिल्ली की तरह भागमभाग लगा रखा है , " राजेश्वरी बाई ने खड़े होते हुए कहा ।

सिया डर की वजह से मीरा के पीछे छुप गई । मीरा ने पलकें झुका कर कहा . . . . . " माफ करना काकी मां गलती से हो गया । आप ठीक तो है न , आपको कहीं चोट तो नहीं लगी । "

" क्या बात है " . . . . गायत्री ने बाहर आते हुए पूछा . . . . . ?

" अरे होना क्या था , सुबह - सबह मेरी कमर तोड़ दी इन लड़कियों ने । "

" मैं इनकी तरफ से माफी मांगती हूं दीदी । " इसके बाद गायत्री ने मीरा की ओर देखकर कहा " , , , , , , , मीरा आज कॉलेज का पहला दिन है न , जाओ जाकर तैयार हो जाओ , और सिया तुम भी जाओ । "

गायत्री के कहने पर वो दोनों वहां से चली गई । मीरा और सिया के जाने के बाद , जब गायत्री जाने हुई , तो राजेश्वरी बाई ने उसे रोकते हुए कहा " , , , , , ,

" इतना तो पढ़ा दिया तूने उसे , अब कॉलेज भेजने की क्या जरूरत है . . . . ? ज्यादा पढ़ लिख लेगी भी  तो भाग्य तो नहीं बदल जाएगा उसका । कहलाएगी तो तवायफ की बेटी ही न । " राजेश्वरी बाईं की बातें सुनकर गायत्री के कदम रूक गए ।

" देख गायत्री , अपना समझती हूं , इसलिए समझा रही हूं । झूठे सपने मत दिखा अपनी बेटी को । कोई राजकुमार तो आएगा नहीं , जो इसे ब्याह कर ले जाएगा । आखिर कार बनना तो इस कोठे की रोनक ही है । " जितना जल्दी समझेगी , तकलीफ उतनी ही कम होगी ।"

" चल शेरा ,, बहुत काम है । " , , , , , , यह कहकर राजेश्वरी बाई वहां से चली गई ।

&
" गायत्री ने कोई जवाब नहीं दिया , और अपने काम में लग गई । राजेश्वरी बाई की बातें उसके दिल में कांटे की तरह चुभे लेकिन वो शांत रही । उसकी पलकें नम थी , और ये सब सुनने की तो अब आदत सी हो गई थी ।

इधर मीरा ने वो सारी बातें सुन ली थी , जो भी राजेश्वरी बाई ने गायत्री से कहा । वो पर्दे के पीछे ही खड़ी थी । उसने अपनी पलकों पर ठहरे आंसुओं को संभाला , और तैयार होने अंदर चली गई ।

मीरा आईने के सामने खड़ी थी । लाल रंग का घाघरा , वाइट टोप , और ऊपर से लाल रंग का दुपट्टा । आज कुछ ऐसे तैयार हुई थी मीरा । बड़ी बड़ी आंखों में हल्का सा काजल , सुर्ख होंठों पर हल्की गुलाबी रंग की लिपस्टिक , कानो में झुमके , चेहरे पर बिना ज्यादा मेकअप के भी वो बहुत खूबसूरत लग रही थी । . . . . . . . उसकी खूबसूरती में कुछ शब्द ऐसे कहे जाए तो ग़लत नहीं होगा . . . . . 

वो मृगनयनी शोख हसीना ,

मोहक रंगों वाली है ,

हिरनी सी है चाल अनोखी ,

चंचल चितवन वाली है ,

कजरारे नयनों में वो काजल ,

खूब लगाती हैं ,

होंठों पर मुस्कान सजा के ,

सबका होश उड़ाती है . . . . !

रात ढले वो छत पर आये ,

चाँद देख उसको शरमाये ,

उड़ती जुल्फे महका आँचल ,

उसको खूब सजाते हैं ,

दीवाने इस मेरे दिल की ,

आँखों से नींद चुराते हैं . . . . .।

. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

मीरा जब तैयार होकर नीचे आई , तो देखा गायत्री नाश्ता लगा रही थी ।

" गुड मॉर्निंग मां " . . . . . . !

मीरा ने साइड से गायत्री  को हग करते हुए कहा । गायत्री ने मुस्कुरा कर उसे बैठने का इशारा किया ।

" वाह . . .  क्या खुशबू है . . . . . . . आज क्या स्पेशल बनाया है मां ‌। "

गायत्री ने उसके प्लेट में नाश्ता लगाते हुए कहा । तेरे स्पेशल आलू के पराठे . . . ! मीरा ने एक टुकड़ा मुंह में डाला , और इशारे से बताया , " बहुत टेस्टी  हैं मां । आपके हाथों में तो जादू है " ।

गायत्री ने मुस्कुरा दिया . . .

गायत्री का चेहरा अब भी उदास  था । मीरा को यह बात अच्छे से मालूम थी , की वह किस बात से उदास है । उसने गायत्री का हाथ अपने हाथों में लेकर कहा " , , , , , , मैं जानती हूं मां , आपको काकी मां की बात बहुत बुरी लगी । मगर आप तो उनका स्वभाव जानती है न , वो बिना सोचे समझे , कुछ भी बोल देती है । . . . . प्लीज आप उनकी बातों को दिल पर मत लीजिए । "

गायत्री ने मुस्कुरा कर मीरा की ओर देखते हुए कहा " , , , , , ,  मैं बिल्कुल ठीक हूं , और अपनी  मीरा का हस्ता - मुस्कुराता चेहरा देखकर , मैं अपनी सारी तकलीफे भूल जाती हूं । "

गायत्री मीरा के माथे पर चुमकर प्यार से उसके गालो पर हाथ रखती है ।

" अच्छा मां में चलती हूं , देर हो रही है ‌। यह कहकर मीरा चली जाती है ‌‌।

* * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * 

उसके हुस्न से मिली है ,

मेरे इश्क को ये शौहरत ,

मुझे जानता ही कौन था ,

तेरी आशिक़ी से पहले . . . .।

क्या राजेश्वरी बाईं की बातें सच हो जाएगी ? क्या मीरा कभी इस कोठे की जिंदगी से बाहर नहीं निकल पाएगी ? क्या उसकी जिंदगी भी गुमनामी के किसी अंधेरे में कही खो जाएगी ? या किस्मत ने उसके लिए कुछ और सोच रखा है ? 

आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी नोवल . . . . . .

मीरा कलंक या प्रेम
( अंजलि झा )

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रचनाएँ
Meera kalank ya prem की डायरी
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हुगली नदी के किनारे बसा मशहूर शहर पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता । यह शहर अपने आप में ही खास है । प्रकृति ने कई खूबसूरत चीजों से नवाजा है इसे , इसकी खूबसूरती देखने लायक है । जैसे हावड़ा ब्रिज , मानसरोवर झील , विक्टोरिया मेमोरियल , बाबूघाट इत्यादि । इन सबके साथ एक ऐसी जगह भी है । जिसे शरीफ लोग घृणा की नजर से देखते हैं , और वह है राजेश्वरी बाई का कोठा । यहां के आसपास का वातावरण काफी मनमोहक है । बीना से निकली संगीत की धुन , पांव में बजते घुंघरू की आवाजें , गजरे में लगे चमेली के फूलों की महक , और आसपास तितलियों की तरह मंडराती सजी सबरी बन ठन कर बैठी लड़कियां , किसी स्वर्ग की अप्सरा से कम नहीं लग रही । कुछ ऐसा ही माहौल यहां अक्सर रहता है । यहां की रातों का तो कहना ही क्या . . . . ? शाम ढले यहां की चमक धमक और भी ज्यादा बढ़ जाती है । यहां प्यार शब्द का कोई मतलब नहीं ।
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