बच्चों ने ज़िद की तो मीरा ने उनके लिए गाना गाया ! बच्चे बहुत खुश थे और उन्हें देखकर मीरा और जानवी भी खुश थे।
" अरे मीरा और जानवी बेटा आप लोग कब आए ? "
पीछे से किसी ने सवाल किया तो जानवी और मीरा ने मुड़कर देखा । एक शक्श जिसकी उम्र 55 से 60 वर्ष के बीच होगी ,, आंखों में नज़र का चश्मा लगाए , हाथों में सहारा के लिए छड़ी पकडे , उन दोनों की ओर ही आ रहे थे ।
( ये हैं नंद किशोर मिश्रा , जो इस अनाथालय को चलाते हैं । इनकी पत्नी सरीता मिश्रा के नाम पर ही इस अनाथालय का नाम रखा गया । हालांकि वो अब इस दुनिया में जिंदा नहीं है । आठ साल पहले ही किसी गंभीर बीमारी के कारण उनकी मृत्यु हो गई थी । )
मीरा और जानवी ने आगे बढ़कर उनके पांव छुए ।
" हम लोग बस कुछ देर पहले आए " मीरा ने जवाब दिया । " आपकी तबियत कैसी है बाबा ? "
मीरा ने पूछा तो उन्होंने मुस्कुराकर जवाब दिया " हम बिल्कुल ठीक है " । उन्होंने कुछ देर बातें की फिर मीरा और जानवी ने उनसे आज्ञा ली " और बच्चों को बाय , कहकर घर के लिए निकल गई ।
जानवी ने मीरा को घर छोड़ा , फिर अपने घर की ओर निकल गई ।
मीरा अक्सर जानवी के घर जाती , मगर जानवी कभी उसके घर नहीं गई । जानवी मीरा को बचपन से जानती थी । उसे मीरा के बारे में हर एक बात पता थी। गायत्री जी ने ही मीरा को उसे घर के अंदर लाने से मना किया था । वो जानवी को मीरा की तरह अपनी बेटी मानती थी और इसलिए वो नहीं चाहती थी कि कोठे का बुरा साया भी उसपर पड़े और लोग उसके बारे में कुछ गलत सोचे । उनका वहां रहना तो मजबूरी थी । राजेश्वरी बाई के कोठे के पीछे एक छोटा सा घर था । वो मीरा के साथ वही रहती थी। उन्होंने कभी मीरा को उस कोठे पर कदम नहीं रखने दिया ।
मीरा जब घर पहुंची तो देखा , गायत्री जी चेयर पर बैठी ऊन से कुछ बुनाई का काम कर रही थी। मीरा दबे कदमों से उनके पास जाकर , पीछे से अपने दोनों हाथ बढ़ाकर उनकी आंखों ढक देती है।
गायत्री जी ने मुस्कुरा कर कहा " तो आ गई मेरी मीरा . . . . " !
मीरा चौंकते हुए उनके सामने आकर घुटनों के बल बैठते हुए पूछती हैं ?
" आपने फिर से मुझे पकड़ लिया ! मां आपको कैसे पता चल जाता है कि मैं हूं ! " मीरा ने बच्चों जैसा मूंह बनाकर कहा ।
गायत्री जी ने उसके सर पर हल्की सी चपत लगाते हुए कहा " तेरी मां हूं ! तुझे पहचानने के लिए मुझे इन आंखों के जरूरत नहीं है । बच्चों का एहसास मां में इस कदर समाया होता है कि वो उन्हें गहरे अंधेरे में छुपे होने के बावजूद भी खोज लेती है । "
" अब बता कालेज का पहला दिन कैसा गया ?
" बहुत अच्छा , और बहुत थकावट भरा भी । " मुझे बहुत भूख लगी है । " मीरा ने मासूम सा चेहरा बनाते हुए कहा ।
" अच्छा ठीक है पहले जाकर तू फ्रेश हो जा , मैं तेरे लिए खाना लगाती हूं। " ये कहकर गायत्री जी किचन में चली गई और मीरा अपने कमरे में ।।
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अध्दविक का घर , रात का समय
सुगंधा जी रात के खाने की तैयारी में लगी थी और काव्या और नीलीमा भी उनकी मदद कर रहे थे।
काव्या बेटा , जाओ सब को खाने के लिए बुला लाओ । सुगंधा जी ने कहा , तो वो हां में जवाब देकर चली गई ।
सभी खाने की टेबल पर बैठे ही थे , कि तभी दादी ने नीलीमा से अध्दविक और जय की ओर इशारा देकर कहा । " इन्हें थोडा और दो, देखो कैसे सूख गए है दोनों " ।
" दादी पहले ही आपकी जिद की वजह से मैं बहुत ज्यादा खा चुका हूं अब और नहीं " अध्दविक ने ऊबते हुए कहा ।
" सचमुच ज्यादा खा लिया या खाना पसंद नहीं आया देवरजी " , काव्या भाभी ने जब पूछा तो अध्दविक के कहने से पहले जय ने कहा " खाना तो बहुत टेस्टी हैं भाभी " ," अध्दविक को तो बस डर है , अगर वो मोटा हो गया , तो कोई लड़की उसे रिजेक्ट न कर दे " क्यों अध्दविक " ये कहकर जब उसने उसकी ओर देखा तो अध्दविक उसे खा जाने वाली नजरों से देख रहा था । " अरे मैं तो बस मजाक कर रहा था यह कहते हुए जय झेंप गया । "
जय की बात पर सभी लोग हंस दिए । लेकिन कोई था जिससे सबकी ख़ुशी देखी नहीं जा रही थी , वो और कोई नहीं बुआ जी ही थी।
दादाजी ने नीलीमा से पूछा . . . . . " क्या बात है बेटा , राजेश कही दिखाई नहीं दे रहा?
जी . . दादाजी . . वो . . . .
घबराते हुए नीलीमा कुछ बोल ही रही थी , कि तभी बुआ जी ने उसे बीच में उसकी बात काटते हुए बोलना शुरू किया ,। " दरअसल बात वो है कि वो किसी जरूरी काम से बाहर गया है । इसीलिए आने में उसे थोड़ी देर हो जाएगी । वो तो कह ही रहा था कि आज इतने सालों बाद अध्दविक घर आ रहा है । मेरा तो कितना मन है रूकने का"। अगर काम ज़रूरी नहीं होता , तो मैं उसे रोक ही लेती । " ये कहते वक्त उनके चेहरे पर झूठी मुस्कान के साथ एक घबराहट भी थी , जो अक्सर तब होती है जब इंसान कोई झूठ बोलता है।
सब डिनर खत्म कर अपने रूम में चले जाते हैं।
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एक कमरा जिसमें बेहद ही कम रोशनी थी । एक शक्श जिसकी उम्र लगभग 30 से 35 साल के बीच होगी ।बेड पर मूंह के बल लेटा हुआ है और उसके बगल में एक लड़की सो रही थी । दोनों ही एक चादर में लिपटे हुए थे । आस पास जमीन पर कुछ कपड़े बिखरे पड़े हैं , जो शायद उन्हीं के थे । तभी साइड की टेबल पर रखा फोन बजता है , जिससे उस लड़की की नींद टूटती है । वो उस आदमी को फोन देते हुए जगाती हैं , जिससे वो आदमी गुस्से से उस पर चिल्लाते हुए उठता है " अब तुझे क्या परेशानी हो गई जो मेरी नींद खराब करने पर तुली हुई है । " ये बोल वो आदमी बड़े बेमन से फोन उससे लेकर अपने कानों से लगाता है ।
" मुझे सुबह सुबह क्यों फोन किया मां " ( ये है राजेश राय चौधरी , बुआजी का अय्याश बेटा । )
फोन के दूसरी तरफ से गुस्से में बुआजी कहती हैं , कहा गायब है तू रात भर ! " कहा था तुझे कुछ दिन घर में रह , मगर तुझे तो मेरी बात सुननी ही नहीं है "।
कितनी मुश्किल से मैंने घर वालों को झूठ बोल कर संभाला है । कहीं तेरी बेवकुफीयो की वजह से हमारा सारा खेल न बिगड़ जाए । तू जल्दी से जल्दी घर आ । "यह कहकर वो फोन रख देती है।
फोन कटते ही राजेश अपने आप से कहता है " इस अदध्विक ने तो आते ही मेरी मुश्किलें बढ़ दी । न जाने ये आगे कौन कौन सी मुसीबत खडी करेगा । न तो खुद चैन से रहते हैं और न मुझे चैन से जीने देते हैं । " ये बोल वो बिस्तर से उठा और जमीन पर पडे अपने कपड़े लेकर पहनने लगा । उसने अपनी कोट के पॉकेट से अपना पर्स निकाला और कुछ रूपए निकाल बिस्तर की ओर फेंकते हुए बोला " ये ले अपनी टिप , तेरी कीमत तेरी मालकिन को मैं दे चुका हूं । इसे उठा और इस कमरे से जल्दी निकल जा और हां दोबारा कभी मुझे चेहरा मत दिखाना क्योंकि राजेश कभी इस्तेमाल की हुई चीजों का यूज नहीं करता । " इतना कहकर वो तैयार होकर घर के लिए निकल गया ।
इधर उस लडकी ने खुद को चादर में लपेटा और अपने कपड़े उठाते हुए बोली " इंसान थोडी न है हम एक सामान है जिसका जब जी किया हमें अपने इस्तेमाल में ले लिया । कहने को कहते हैं कीमत अदा की है । चंद रूपए फेंक कहते हैं अपने आंसू पोंछ लेना । इनको हमारे दर्द से क्या मतलब जो सिर्फ जिस्म पर ही नही बल्कि हमारी आत्मा पर लगते है । " ये सब अपने आप से बोल वो लड़की लड़खड़ाते कदमों के साथ वाशरूम की तरफ बढ गई ।
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सच ही कहां उस लडकी ने क्या आत्मा को मिले जख्मों का इलाज पैसों से हो जाएगा ? कितना मुश्किल होता है हर रोज ज़हर का घूंट पीकर खुद को बेचना वो भी चंद रूपयों के लिए । कभी मर्जी तो कभी मजबूरी ।
कहानी पूरी समझने के लिए शुरुआत से पढ़े ।
मीरा कलंक या प्रेम
( अंजलि झा )
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