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मीरा का जन्म

16 मार्च 2023

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दिन बीतते गए । समय गुजरता गया । न समय बदला न परिस्थितियां ।

लगभग 1 महीने बाद :

गायत्री अपने कमरे मे जमीन पर लेटी दर्द से कराह रही थी । लगता है उसे प्रसव पीड़ा शुरू हो चुकी थी ।

नैना जब उसके कमरे में नाश्ता लेकर आई , तो गायत्री की हालत देखकर उसके हाथों से खाने की प्लेट जमीन पर ही गिर गई । उसे कुछ समझ नही आया ,  वो दौड़ कर राजेश्वरी बाई को बुलाने चली गई ।

काकी . . . .  काकी . . . . 

 


वो  हाफते हुए राजेश्वरी के कमरे तक पहुंची , और दरवाजे के सहारे खड़ी होकर कहने लगी " , , , , , , लगता है गायत्री मांसी को दर्द शुरू हो गया है । आप जल्दी चलिए । " राजेश्वरी बाई ने जैसे सुना वो सीधे गायत्री के कमरे की ओर भागी ।

वो गायत्री के कमरे में पहुंची तो देखा गायत्री जमीन पर लेटी दर्द से चीखे जा रही थी । " गायत्री की हालत इतनी खराब है कि , इस वक्त डॉक्टर के पास ले जाना मुमकिन नहीं "  " , , , , , , उन्होंने गायत्री की हालत देखकर कहा ।

राजेश्वरी बाई ने गायत्री के पास बैठते हुए नैना से कहा " , , , , , , तू बाहर जाकर दाई मां , और कुछ औरतों को बुला कर ले आ ।

" जी काकी . . . . . . ये कहकर नैना बाहर चली गई ।

वो बाहर जाकर दाई मां को बुला कर ले आई , और साथ में कुछ औरतों को भी । सबने मिलकर उसे जमीन से उठाकर बिस्तर पर लिटा दिया । दाईं मां ने गर्म पानी मंगवाया। एक औरत गायत्री के पैरों को सहला रही थी । गायत्री ने दर्द के कारण चादर को अपनी मुट्ठीयो में भींच लिया । " कहते हैं एक औरत अपनी जिंदगी में सबसे ज्यादा दर्द उस वक्त महसूस करती है , जब वो एक नई जिंदगी को इस दुनिया मे लेकर आती है । "

कुछ ही देर में बच्चे की किलकारी से पूरा कमरा गूंज उठा । 

" मुबारक हो लड़की हुई है " , दाईं मां ने खुश होते हुए कहा । राजेश्वरी बाई ने बच्ची को अपने हाथों में लिया तो उसे देखकर उनके चेहरे पर मुस्कराहट तैर गई । उन्होंने उसे देखते हुए कहा " वाह , चेहरे पर क्या तेज है । खूबसूरती के साथ ही पैदा हुई है । " बिल्कुल चांद का टुकड़ा " , , , , , , बचपन में ही बला की खूबसूरत है , जवानी में तो क़यामत ही ढाएगी ।।

" यहां बच्चे बाप के नहीं मां के नाम से जाने जाते हैं । दुनिया के लिए भले बेटियां अभिषाप हो लेकिन यहां बेटी ही जन्म लेनी चाहिए क्योंकि आगे चलकर वही इन बूढी हड्डियों का सहारा बनती है । " दाई मां ने कहा तो राजेश्वरी बाई बोली " सच कहां दाई मां जब तक ये जवानी है तब तक तब सामने वाला मर्द हमें पूछेगा और जिस दिन ये जवानी ढलने लग जाएगी तो कोई ग़लती से भी नज़र उठाकर नहीं देखेगा । "

इस वक्त गायत्री बेहोश थी , बच्ची को मां के पास रखकर , बाकी औरतें वहां से निकल जाती है । गायत्री को आराम करने के लिए छोड दिया जाता है ।

. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

रात का वक्त , गायत्री का कमरा

गायत्री काफ़ी देर पहले जग चुकी थी और अपनी बच्ची को ही निहार रही थी । रह - रहकर राजेश्वरी बाई की बातें उसे अंदर ही अंदर चुभ रही थी ।गायत्री अपनी बच्ची के माथे को चूम कर सोचती है " , , , , , , 

शायद मेरी किस्मत में ही इस दलदल में फंसना लिखा था । मगर मैं तुझ पर इस कोठे का बुरा साया नहीं पढ़ने दूंगी । मैं तुझे पढ़़ाऊंगी लिखाऊंगी , तुझे इस काबिल  बनाऊंगी , कि तू अपने अधिकारों के लिए लड़ सके । तुझे मजबूर नहीं मजबूत बनाऊंगी ।

" मैं तेरा भाग्य तो नहीं जानती , मगर इस कोठे को तेरी तकदीर नहीं बनने दूंगी । ये तेरी मां का तुझसे वादा है मेरी बच्ची । "

गायत्री मन ही मन ये सब सोचकर एक बार फिर से अपनी बच्ची का माथा चूम लेती हैं । तभी सुनैना कमरे में आते हुए पूछती हैं " , , , , , , मासी क्या सोचा है आपने  , क्या रखेगी इसका नाम ?

गायत्री ने एक नज़र अपनी बच्ची की ओर देखा और मुस्कुराकर बोली " , , , , , ,   मीरा ।

" बहुत प्यारा नाम है , सुनैना ने मुस्कुराते हुए कहा । "

तभी गायत्री का ध्यान मीरा पर गया जो जाग चुकी थी और रोने लगी थी । गायत्री गाकर मीरा को चुप कराने की कोशिश करती है . . . . . . . . . .
ला ला . . . . . 

सोजा मेरी गुड़िया ,

तू काहे सोया ना ,

मीठी मीठी लोरी ,

सुनाये तेरी मां ,

सुनाये रे तेरी मां . . . . .

( गायत्री की आवाज सुनकर मीरा ने रोना बंद कर दिया था और बस गायत्री के चेहरे की ओर देख रही थी । )

मेरी उमर लेके जिये ,

यही दुआ दूँ में तुझे ,

सारी खुसी लेले मेरी हो . . . . .

सारे दुख देदे मुझे ,

मेरे लिए सब कुछ ,

तू ही तो है यहाँ ,

सो जा मेरी गुड़िया ,

तू कहे सोया ना ,

मीठी मीठी लोरी ,

सुनाये तेरी मां ,

सुनाये रे तेरी मां . . . . .

( गायत्री कभी मीरा को देखती तो कभी उसके हाथों में अपनी उंगलियां थमाती । उसके नन्हें नन्हें हाथ फिलहाल गायत्री की उंगलियों को थाम नहीं पा रहे थे । गायत्री मुस्कुराकर आगे गाती है . . . . . . )

कहे रोये दिल हर ,

हो तू हैं अकेली कहा ,

कहे रोये दिल हर  ,

हो तू हैं अकेली कहा ,

देख ज़ारा पलके उठा  ,

साथ तेरे में हूँ यहां ,

पाके तेरा साया हैं ,

पास तेरी मां ,

सोजा मेरी गुड़िया ,

तू कहे सोया न ,

मीठी मीठी लोरी ,

सुनाये तेरी मां ,

सुनाये रे तेरी मां . . . . .

. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 

समय यूं ही गुजर रहा था । मीरा अब बड़ी भी हो रही थी । गायत्री ने जैसा सोचा था " , , , , , , वैसे ही वो मीरा की परवरिश कर रही थी । उसने मीरा को पढ़ने के लिए स्कूल भेजा , और इसके लिए वो खूब मेहनत भी करती थी ।

मीरा भी पढ़ने में काफी होशियार थी । हमेशा स्कूल में फर्स्ट आती थी । राजेश्वरी बाईं को मीरा का पढ़ना लिखना बिल्कुल भी पसंद नहीं था । मगर गायत्री की लाख मिन्रतो के बाद वो मान गई । 

मीरा को पढ़ने लिखने के साथ-साथ  संगीत और नृत्य भी सीखना पड़ा , क्योंकि कोठे में रहने वाली लड़कियों के लिए ये सब सीखना बेहद ही जरूरी था । राजेश्वरी बाई घाटे का सौदा नहीं करती , और जो हीरा उसके हाथ लगा था , उसे अपने हाथों से वह कैसे जाने देती ?

राजेश्वरी बाई ने गायत्री को भी अपने यहां इसीलिए शरण दी थी , क्योंकि पहली बात तो ये की वो बहुत ही खूबसूरत थी जिसकी वजह से कोठे पर ग्राहकों का आना जाना बढ चुका था , और दूसरी बात ये की संगीत और नृत्य  में निपुण थी । उसके आने के बाद से मानो राजेश्वरी बाय के कोठे की रोनक ही बढ़ गई हो ।इसीलिए उन्होंने गायत्री की बात न चाहते हुए भी मान ली । वो तो मन ही मन सोच कर बैठी थी ।

" कोई बात नहीं तेरा बदला भी तेरी बेटी से बसुलूंगी " !

कोठे पर हर शाम महफिल सजती थी , न चाहते हुए भी कई जिंदगियो का सौदा होता था यहाँ , कभी उनके आंसुओं का , तो कभी उनके जिस्म का . . . . . . .

नाम पे रसमों के ये औरत ,

ज़ुल्म हजारो सेहती हैं ,

ज़ख्मों से दिल जलता है ,

आंखों से गंगा बहोती हैं ,

जिसने गोद खिलाई ,

पेगंबर और देवता जग मे हैं ,

आज उसी औरत की आत्मा ,

रो रो कर ये कहती हैं ,

मर्दो सुन लो अगर तुममें ,

थोड़ी सी शराफत जिंदा है . . . ( २ )

औरत भी तुमको पैदा कर के ,

आज बहुत सरमिंदा है ,

हो आज बहुत सरमिंदा है . . . . ( २ )

( हर रात सुर ताल पर थिरकते कदम घूंघट में अपने आंसूओं को छुपाकर नाचा करते । किसे दिखाए , किसे बताएं , कौन है जिससे वो अपनी अर्जी लगाए । )

करते हो नीलम कभी ,

कोठो पर कभी नचाते हो ,

कुर्बानी की देवी केहकर ,

जिंदा कभी जलाते हो ,

सौदा करते हो औरत की ,

इस्मत सोने चांदी में ,

अंश हो जिस तन के ,

उस तन को गली गली बिकवते हो . . . . . ( २ )

मर्दो सुन लो अगर तुममें ,

थोड़ी सी शराफत जिंदा है ,

औरत भी तुमको पैदा कर के ,

आज बहुत सरमिंदा है . . . . . ( २ )

( यहां मजबूरी को मर्जी का नाम दिया जाता था । जिसने इसे अपनी किस्मत समझी उसके लिए तकलीफ़े ज्यादा नहीं था । जिसने थोडी सी भी बगावत की तो उसे मार पीटकर खामोश कर दिया जाता । )

कौन है मर्द बताओ जिसने ,

औरत से  इंसाफ किया ,

कौन है मर्द बताओ ,

जिसने औरत से  इंसाफ किया ,

 याहा तक भगवान राम ने  भी ,

उसको बनवास दिया ,

अपने मतलब के खतिर ,

दाव पेशी लगाया है  ,

मर्दो सुन लो अगर तुममें ,

थोड़ी सी शराफत जिंदा है ,

औरत भी तुमको पैदा कर के ,

आज बहुत सरमिंदा है ।।

गायत्री किसी भी तरह मीरा को इन सब से दूर रखने की कोशिश करती  । कुछ भी करके वह हमेशा इस कोशिश में लगी रहती की किसी का भी बुरा साया उस पर ना पड़े । मगर कब तक वो मीरा को बचा पाएगी । इस सवाल का जवाब तो वो भी नहीं जानती थी । मगर भला चांद की रोशनी को भी कहीं कोई छुपा सका है । कुछ समय के लिए सूरज की रोशनी उसे ढक तो सकती है लेकिन हमेशा के लिए छुपा नहीं सकती ‌।

 मीरा का स्वभाव बेहद शांत था , शायद कच्ची उम्र में उसने इतना सब कुछ जो देखा था । अक्सर उसे इस बात का दुख रहता था , की उसकी मां को उसके लिए कितनों के आगे झुकना पड़ता था ।

* * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * 

तुम रखौ रोशन

आशियाना अपना

आखिर बत्तीया बुझाने का रिवाज

तो तुम हमारे यहां निभाते हो ।। 

क्या गायत्री मीरा की जिंदगी इस कोठे से दूर रख पाएगी लेकिन कब तक ? ये जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी नोवल 

मीरा कलंक या प्रेम
( अंजलि झा ) 

* * * * * * * * * * " * * * * * * * * * *


लिपिका भट्टी

लिपिका भट्टी

बहुत ही अच्छा लिखा है आपने 🙏

17 मार्च 2023

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