हुगली नदी के किनारे बसा मशहूर शहर पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता । यह शहर अपने आप में ही खास है । प्रकृति ने कई खूबसूरत चीजों से नवाजा है इसे , इसकी खूबसूरती देखने लायक है । जैसे हावड़ा ब्रिज , मानसरोवर झील , विक्टोरिया मेमोरियल , बाबूघाट इत्यादि ।
इन सबके साथ एक ऐसी जगह भी है । जिसे शरीफ लोग घृणा की नजर से देखते हैं , और वह है राजेश्वरी बाई का कोठा ।
यहां के आसपास का वातावरण काफी मनमोहक है । बीना से निकली संगीत की धुन , पांव में बजते घुंघरू की आवाजें , गजरे में लगे चमेली के फूलों की महक , और आसपास तितलियों की तरह मंडराती सजी सबरी बन ठन कर बैठी लड़कियां , किसी स्वर्ग की अप्सरा से कम नहीं लग रही । कुछ ऐसा ही माहौल यहां अक्सर रहता है । यहां की रातों का तो कहना ही क्या . . . . ? शाम ढले यहां की चमक धमक और भी ज्यादा बढ़ जाती है । यहां प्यार शब्द का कोई मतलब नहीं ।
दरवाजे से टिककर खडी एक लडकी ने कहा " हमारी भी क्या ज़िंदगी है , कहने को हर रोज प्यार करने वाला कोई न कोई मिल जाता है , लेकिन असल मायने मे हमारी किस्मत मे प्यार कहा ! "
उस लडकी की बात पर वही पास मे खडी एक औरत हसते हुए बोली " क्यो इन बातो से अपना दिल जला रही है शबनम ! देखा है ना ! लोग आते हैं यहां , प्यार में कसमें-वादे करते हैं । शादी करते हैं , बच्चे भी होते हैं , और कुछ साल के बाद छोड़कर चले जाते हैं । "
तभी वहां से गुजरती एक औरत ने कहा " किसी को शौक नहीं होता ऐसी जिंदगी जीने का मगर मजबूरी ना जाने क्या-क्या करा देती है । "
" सच कहां सुनहरी ताई अक़्सर इन बदनाम गलियों से गुजरने वाला मर्द बाहर की दुनिया में खुद को शरीफ़ बतलाता है । " शबनम ने पीछे से उन्हें आवाज लगाते हुए कहा । सुनहरी ताई ने मुड़कर एक नज़र उन सबकी ओर देखा और फिर एक दर्द भरी मुस्कान के साथ वापस मुड़ गई ।
अक्सर यहां वो लोग आते हैं , जो खुद को समाज की नजरों में शरीफ़ बताते हैं । एक तवायफ की जुबां से निकले शब्द उसकी जिंदगी की दास्ता बया करती है . . . .
" हूँ इंसान ही साहेब , तवायफ़ हुई तो क्या
सपने तो मैंने भी देखे हैं , बिक गए तो क्या "
खुशियां बाट दी सबको ,
पर खुद की हसरतें सब राख हैं ,
दिल तवायफ बन गया है ,
पर जिस्म आज भी पाक है ।।
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राजेश्वरी बाइ का कोठा , कोलकाता शहर
" राजेश्वरी बाई " का कोठा ' , , , , कोलकाता की मशहूर जगहों में इनका कोठा भी एक है , और इनकी पहुंच कोलकाता के बड़े-बड़े लोगों तक है । लगभग 45 वर्ष की एक औरत , जिनका चेहरा देख कोई उम्र का अंदाजा नहीं लगा सकता । चेहरे से जितनी ये सुंदर दिखाई पड़ती है , उससे भी कहीं ज्यादा चालाक है , तभी तो इतने बड़े कोठे की बागडोर अपने हाथों में संभाल कर बैठी हैं । इनकी मर्जी के बिना मजाल है कि यहां का एक पत्ता भी हिल जाए ! " ( मेरे सफ़र के साथ आगे बढ़ते रहिए , आप भी इनकी रग रग से वाकिफ हो जाएंगे । )
मां दुर्गा की मूर्ति के पास खड़ी एक लड़की " जिसका नाम गायत्री है और उम्र करीब 24 वर्ष के आस पास होगी । चेहरे पर मासूमियत , दर्द भरी आंखें , जैसे कई रातों से वो सोई न हो । लाल और सफेद रंग की साड़ी पहने वो बेहद ही खूबसूरत लग रही थी । वो हाथ जोड़े दुर्गा मां से विनती करती हुए कहती है ;
" हे दुर्गा मां " . . . . . . . !
एक तू ही तो है , जिससे मैं अपनी दिल की बात कह सकती हूं । तूने जो दिया , मैंने उसे हंसकर स्वीकारा , तुझसे कभी कोई शिक़ायत नहीं की । क्योंकि तुझ पर भरोसा है मां . . . . . तूं मेरे साथ है और मेरे साथ कुछ भी गलत नहीं होने देगी । "
" गायत्री बिनती ही कर रही थी , कि तभी उसे राजेश्वरी बाई ने आवाज दी । "
गायत्री . . . . अरी ओ गायत्री . . . . .
गायत्री पूजा की थाल नीचे रख उनके पास चली आई ।" क्या बात है दीदी " गायत्री ने पूछा ?
" तुझे कितनी बार कहती हूं , ख्याल रख अपना । मगर तू है कि सुनती ही नहीं । अरी , तेरा आठवां महीना चल रहा है , डॉक्टर साहिबा ने कहा है ना आराम करने को " , , , राजेश्वरी बाई ने आदेशात्मक लहजे में गायत्री से कहा ।
गायत्री ने जवाब देते कहा " , , , , आप चिंता ना करें दीदी , मैं अपना पूरा ख्याल रखूंगी । "
" तू , अपने कमरे में जा , मैं नैना और सुनैना को तेरे पास ही हूं भेजती हूं " , , , ये बोल राजेश्वरी बाई वहाँ से चलीं गईं ।
( नैना और सुनैना ये दोनों बहने हैं । इनकी उम्र 13 और 14 साल के आसपास ही है । दोनों ही छोटी उम्र में अनाथ हो गई , तब से राजेश्वरी बाई के साथ ही रहती हैं । )
गायत्री अपने कमरे में खिड़की के पास बैठी बाहर की तरफ निहार रही थी । तभी उसके कमरे में नैना और सुनैना आती है ।
" अरे नैना , सुनैना आ गये तुम दोनों । " गायत्री ने मुस्कुराकर उनकी ओर देख कर कहा ।
दोनों अंदर चली आई और शिकायती अंदाज में गायत्री से बोली " , , , , , , आज फिर आपकी वजह से हमें डांट पड़ी । "
अरे वो क्यों , जरा मैं भी तो जानू , , , गायत्री ने उनकी नकल उतारते हुए कहा । "
" आपसे कहा है ना , जो चाहिए हमें बता दिया कीजिए । मगर आपको तो हमारी बात सुननी ही नहीं है " , , , , , , नैना न कहा ।
" वो मोटी काकी . . . . . . ! नैना कह ही रही थी , कि तभी सुनैना कोहनी मारकर नैना को चुप होने का इशारा करती है । जिसपर नैना खीझते हुए कहती हैं , , , " वो हमपर गुस्सा निकाले और मैं उन्हें मोटी काकी भी न कहूं । "
" सुनैना उसके मुंह पर हाथ रखते हुए कहती है " , , , , , , , ' चुप कर मेरी बहना ' अगर उन्होंने सुन लिया न , तो तेरा आज रात का खाना बंद । उसके ऐसा कहते ही नैना मूंह फुलाकर बैठ जाती है , और ' सब हंसने लगते हैं । '
" अब इसकी छोड़ो गायत्री मासी कोई गाना सुनाओ । बड़" दिन हो गए आपकी आवाज सुने । , , , , , , सुनैना के कहने पर गायत्री कुछ सोचती है और फिर गाना शुरू करती है ; . . . . . .
खुदा करे . . . . .
खुदा करे के मोहब्बय मे ,
वो मुकाम आए ,
तेरे लवो पे हमेशा ,
सनम का नाम आये ,
खुदा करे हो ओ ओ . . . . .
( नैना और सुनैना दोनों बिस्तर पर बैठी गायत्री को गाते हुए सुन रही थी । गायत्री की आवाज में जितनी मधुरता थी , उतना ही दर्द छुपा हुआ था । )
कोई मिटा न सके ,
दिल के इस फ़साने को ,
करू मैं याद ,
तुझे भूल के ज़माने को ,
उठे जो मेरी नज़र ,
तेरा ही सलाम आये ,
मेरे लबों पे हमेशा ,
सनम का नाम आये . . . . .
( गायत्री की आवाज मे जादू था । अक्सर सुनने वाला इंसान उसकी आवाज में खो जाया करता था । नैना और सुनैना दोनो बडे प्यार से गायत्री को गाते हुए देख रही थी )
दीवानेपन का नशा ,
सारी उम्र न उतरे ,
वफ़ा की बंदगी में ,
अपनी ज़िन्दगी गुजरे ,
दीवाने दिल की तड़प ,
कुछ तो तेरे काम आए ,
मेरे लबों पे हमेशा ,
सनम का नाम आये . . . . .
खुदा करे के मोहब्बत में ,
वोह मकाम आये ,
मेरे लबों पे हमेशा ,
सनम का नाम आये ,
खुदा करे हो ओ ओ . . . . . .
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मेरी ये कहानी आप सबके सामने समाज के उस हिस्से का आईना पेश करेगी जिसके बारे में हमारा समाज अक्सर गलत नजरिया रखता है । बस मेरी एक छोटी सी कोशिश है उनके दर्द को आप सबके सामने जाहिर करने की ।
कहते हैं हमेशा आगाज़ से अंजाम का पता नही चलता । आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए कहानी बेहतर समझ आएगी ।
मीरा कलंक या प्रेम
( अंजलि झा )
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