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इसी जगह फिर मेला होगा

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आधार छंद- लावणी (मापनीमुक्त) विधान- 30 मात्रा 1614 पर यति अंत में वाचिक गुरु। समांत - आता पदांत- है "गीतिका" चलो दशहरा पर्व मनाए, प्रति वर्ष यह आता है दे जाता है नई उमंगे, रावण को मरवाता है हम भी मेले में खो जाएँ, तकते हुए दशानन को आग लगा

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