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आदिवासी दिवस के बहाने अलगाववाद की राजनीति

3 अगस्त 2020

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आदिवासी दिवस के बहाने अलगाववाद की राजनीति

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वैशविक परिदृश्य में कुछ घटनाक्रम ऐसे होते हैं जो अलग अलग स्थान और अलग अलग समय पर घटित होते हैं लेकिन कालांतर में अगर उन तथ्यों की कड़ियाँ जोड़कर उन्हें समझने की कोशिश की जाए तो गहरे षड्यंत्र सामने आते हैं। इन तथ्यों से इतना तो कहा ही जा सकता है कि सामान्य से लगने वाले ये घटनाक्रम असाधारण नतीजे देने वाले होते हैं। क्योंकि इस प्रक्रिया में संबंधित समूह स्थान या जाति के इतिहास से छेड़ छाड़ करके उस समूह स्थान या जाति का भविष्य बदलने की चेष्टा की जाती है। आइए पहले ऐसे ही कुछ घटनाक्रमों पर नज़र डालते हैं।

घटनाक्रम 1.

2018, स्थान राखीगढ़ी,

लगभग 6500 साल पुराने एक कंकाल के डी.एन.ए के अध्य्यन से यह बात वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो गई कि आर्य बाहर से नहीं आए थे।बल्कि वे भारतीय उपमहाद्वीप के स्थानीय अथवा मूलनिवासी थे। यहीं उन्होंने धीरे धीरे प्रगति की, जीवन को उन्नत बनाया और फिर इधर उधर फैलते गए। इस शोध को देश विदेश के 30 वैज्ञानिकों की टीम ने अंजाम दिया था जिसका दावा है कि अफगानिस्तान से लेकर बंगाल और कश्मीर से लेकर अंडमान तक के लोगों के जीन एक ही वंश के थे।

घटनाक्रम 2.

19 वीं शताब्दी 1850 में आर्य आक्रमण सिद्धांत दिया गया जिसमें कहा गया कि आर्य भारत में बाहर से आए थे (कहाँ से आए इसका कोई स्पष्ट जवाब किसी के पास नहीं है। कोई मध्य एशिया, कोई साइबेरिया,कोई मंगोलिया तो कोई ट्रांस कोकेशिया कहता है) और इन्होंने भारत पर आक्रमण करके यहाँ के मूलनिवासियों ( जनजातियों ) को अपना दास बनाया था। यानी आज भारत में रहने वाले लोग यहाँ के मूलनिवासी नहीं हैं केवल यहाँ की जनजातियाँ यहाँ की मूलनिवासी हैं।

घटनाक्रम 3.

15 वीं शताब्दी 1492 में कोलम्बस भारत की खोज में निकला और अमेरिका पहुंच कर उसी को भारत समझ बैठा। वहां उसे अमेरिका के स्थानीय निवासी मिले जिनका रंग लाल था। चूंकि वो उस धरती को भारत समझ रहा था उसने उन्हें "रेड इंडियन" नाम दिया। असल में यही रेड इंडियन अमेरिका के मूल निवासी हैं। लूट के इरादे से आए कोलम्बस ने उनपर खूब अत्याचार किए।धीरे धीरे यूरोप के अन्य देशों को भी अमेरिका के बारे में पता चला और कालांतर में स्पेन,फ्रांस और ब्रिटेन ने भी अमेरिका पर कब्जा कर लिया। ब्रिटेन ने तो वहाँ अपनी 13 कॉलोनियाँ स्थापित कर ली थीं। 1776 से लेकर 1783 तक अमेरिका के मूलनिवासियों ने अपनी आजादी की लड़ाई लड़ी जिसके बाद ये 13 कॉलोनियाँ आज का संयुक्त राज्य अमेरिका बना।

घटनाक्रम 3

कुछ संगठनों द्वारा 1992 में कोलम्बस के अमरीका में आने के 500 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में वहाँ एक बड़ा जश्न मनाने की तैयारी की जा रही थी। लेकिन अमेरिका के मूलनिवासियों द्वारा कोलम्बस के उनपर किए गए अत्याचारों के कारण इस आयोजन का विरोध किया गया।

घटनाक्रम 4.

इसी के चलते 1994 में 9 अगस्त को आदिवासी दिवस अथवा "ट्राइबल डे" अथवा मूलनिवासी दिवस मनाने की शुरूआत हुई। इसका लक्ष्य था ऐसे प्रदेश या देश के मूलनिवासियों को उनके अधिकार दिलाना जिन्हें अपने ही देश में दूसरे दर्जे की नागरिकता प्राप्त हो।सरल शब्दों में आक्रांताओं द्वारा उनपर किए गए अत्याचारों के कारण उनकी दयनीय स्थिति में सुधार लाने के कदम उठाना।

घटनाक्रम 5.

भारत के आदिवासी इलाकों में आदिवासियों का उनके सामाजिक उत्थान और कल्याण के नाम पर धर्मांतरण की घटनाओं का इजाफा होना। कुछ तथ्य, 1951 में अरुणाचल प्रदेश में एक भी ईसाई नहीं था,2011 की जनगणना के मुताबिक अब अरुणाचल प्रदेश में 30% से ज्यादा ईसाई हैं। मेघालय में 75% मिज़ोरम में 87%नागालैंड में 90% सिक्किम में 9.9% , त्रिपुरा में 4.3% और केरल में 18.38% ईसाई आबादी है जो धीरे धीरे बढ़ रही है।

ये घटनाएं विश्व के इतिहास की सामान्य घटनाएं प्रतीत हो सकती हैं लेकिन अगर इनके परिणामों पर दृष्टि डालें तो लगता है कि यह सामान्य नहीं हो सकती।

क्योंकि आज जब भारत के झारखंड ओडिशा पश्चिम बंगाल छत्तीसगढ़ एवं मध्यप्रदेश जैसे आदिवासी बहुल प्रदेशों में कुछ संगठनों द्वारा जोर शोर से आदिवासी दिवस को मनाने की परंपरा शुरू कर दी गई है तो यह विषय गम्भीर हो जाता है। खास तौर पर तब जब ऐसे आयोजनों के बहाने इस देश की जनजातियों से उनके अधिकार दिलाने की बड़ी बड़ी बातें की जाती हों और एक सुनियोजित तरीके से उनके अंतर्मन में सरकार के प्रति असंतोष का बीज बोने का षड्यंत्र रचा जाता हो। क्योंकि ऐसे तथ्य सामने आए हैं जब इन जनजातियों की समस्याओं के नाम पर एक ऐसे आंदोलन की रूपरेखा तैयार की जाती है जिसके परिणामस्वरूप यह "असंतोष" केवल किसी जनजाति का सरकार के प्रति विद्रोह तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि कहीं कहीं यह सामाजिक आंदोलन का रूप ले लेता है तो कहीं यह असंतोष धर्मांतरण और अलगाववाद का कारण बन जाता है। कहा जा सकता है कि आदिवासी अथवा जनजातियों को उनके अधिकार दिलाने की मुहिम दिखने वाला "आदिवासी दिवस" नाम का यह आयोजन ऊपर से जितना सामान्य और साधारण दिखाई देता है वो उससे कहीं अधिक उलझा हुआ है। क्योंकि भारत का इस विषय में यह मानना है कि भारत में रहने वाले सभी लोग भारत के मूलनिवासी हैं और इनमें से कुछ समुदायों को "अनुसूचित" या चिन्हित किया गया है जिन्हें सामाजिक, आर्थिक, न्यायिक और राजनैतिक समानता दिलाने के लिए संविधान में विशेष प्रावधान किए गए हैं। इसके अतिरिक्त मूलनिवासियों के जिन अधिकारों की बात की जा रही है, वो अधिकार भारत का संविधान भारत के हर नागरिक को प्रदान करता है इसलिए भारत के संदर्भ में किसी आदिवासी दिवस का कोई औचित्य नहीं है। इसके बावजूद भारत में इस दिवस को विशेष महत्व देने का प्रयास किया जा रहा है।

इसी क्रम में कुछ संगठन प्रधानमंत्री से इस दिन पर अवकाश की घोषणा करने की अपील भी कर रहे हैं। इस प्रकार के कृत्य निःसंदेह उनके उद्देश्य के प्रति संदेह उत्पन्न करते हैं। क्योंकि भारत जैसे देश में आदि काल से ही जनजाति और गैर जनजाति समाज स्नेह पूर्वक सामाजिक संरचना में एक दूसरे के पूरक बनकर मिलजुल कर रहते थे इसके अनेक ऐतिहासिक और पौराणिक प्रमाण उपलब्ध हैं। रामायण में केवट की प्रभु राम के प्रति भक्ति और प्रभु राम का केवट पर स्नेह। वनवास के दौरान निषादराज के यहाँ प्रभु श्री राम का रात्रि विश्राम और उन्हें अपना मित्र बना लेना, यहाँ तक कि अपने राज्याभिषेक और अपने अश्वमेध यज्ञ में उन्हें अतिथि रूप में आमंत्रित करना। शबरी के हाथों उसके झूठे बेर खाना। ये तीनों केवट, निषाद और शबरी जो कि आदिवासी थे उनको एक राजवंशी द्वारा यथोचित मान सम्मान आदर और प्रेम देना भारतीय संस्कृति में सामाजिक समरसता का इससे बेहतर उदाहरण और क्या हो सकता है? इसी प्रकार अरुणाचल प्रदेश की 54 जनजातियों में से एक मिजोमिश्मी जनजाति खुद को भगवान कृष्ण की पटरानी रूक्मिणी का वंशज मानती है। इसी प्रकार नागालैंड के शहर डीमापुर को कभी हिडिंबापुर के नाम से जाना जाता था।यहाँ रहने वाली डिमाशा जनजाति खुद को भीम की पत्नी हिडिम्बा का वंशज मानती है। ये सभी तथ्य इस बात का प्रमाण हैं कि भारत की जनजातियाँ भारतीय समाज का सम्मानित हिस्सा थीं। लेकिन कालांतर में आक्रमणकारियों के अत्याचारों से इस सुव्यवस्थित भारतीय समाज में सामाजिक भेदभाव की नींव पड़ी।इसलिए आज आवश्यकता है कि जनजातियों के बहाने भारत की संप्रभुता के खिलाफ चलने वाले षड्यंत्र को समझ कर उसे विफल करने के लिए सरकार की और से ठोस कदम उठाये जाएँ ।

डॉ, नीलम महेंद्र

(लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

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विरोध का गिरता स्तर गोवध किसी भी राज्य या फिर राष्ट्र की उन्नति अथवा अवनति में राजनीति की एक अहम भूमिका होती है। मजबूत विपक्ष एवं सकारात्मक विरोध की राजनीति विकास के लिए आवश्यक भी हैं लेकिन केवल विरोध करने के लिए विरोध एवं नफरत की राजनीति जो हमारे देश में आज कुछ लोग कर

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क्यों न फिर से निर्भर हो जाए

7 जून 2017
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क्यों न फिर से निर्भर हो जाए आज की दुनिया में हर किसी के लिए आत्मनिर्भर होना बहुत आवश्यक माना जाता है। स्त्रियाँ भी स्वावलंबी होना पसंद कर रही हैं और माता पिता के रूप में हम अपने बच्चों को भी आत्मनिर्भर होना सिखा रहे हैं। इसी कड़ी में आज के इस बदलते परिवेश में हम लोग प्ल

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आहार से उपजे विचार ही शिशु के व्यक्तित्व को बनाते हैं

19 जून 2017
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आहार से उपजे विचार ही शिशु के व्यक्तित्व को बनाते हैं क्या मनुष्य केवल देह है या फिर उस देह में छिपा व्यक्तित्व? यह व्यक्तित्व क्या है और कैसे बनता है? भारत सरकार के आयुष मन्त्रालय द्वारा हाल ही में गर्भवती महिलाओं के लिए कुछ सुझाव दिए गए हैं जिसमें कहा गया है कि गर्

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कश्मीर में शान्ति बहाली ही शहीदों को सच्ची श्रधांजलि होगी

25 जुलाई 2017
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कश्मीर में शान्ति बहाली ही शहीदों को सच्ची श्रधांजलि होगी 26 जुलाई 2017, 18 वाँ कारगिल विजय दिवस वो विजय जिसका मूल्य वीरों के रक्त से चुकाया गया, वो दिवस जिसमें देश के हर नागरिक की आँखें विजय की खुशी से अधिक हमारे सैनिकों की शहादत के लिए सम्मान में नम होती हैं । 1999 क

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आजादी आपनी सोच में लायें

31 जुलाई 2017
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आजादी आपनी सोच में लायें भारत हर साल 15 अगस्त को अपना स्वतंत्रता दिवस मनाता है। यह दिन जहां हमारे आजाद होने की खुशी लेकर आता है वहीं इसमें भारत के खण्ड खण्ड होने का दर्द भी छिपा होता है। वक्त के गुजरे पन्नों में भारत से ज्यादा गौरवशाली इतिहास किसी भी देश का नहीं हुआ। लेक

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क्यों हम बेटियों को बचाएँ

9 अगस्त 2017
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“मुझे मत पढ़ाओ , मुझे मत बचाओ,, मेरी इज्जत अगर नहीं कर सकते ,तो मुझे इस दुनिया में ही मत लाओमत पूजो मुझे देवी बनाकर तुम,मत कन्या रूप में मुझे 'माँ' का वरदान कहोअपने अंदर के राक्षस का पहले तुम खुद ही संहार करो।“ एक बेटी का दर्द चंडीगढ़ की स

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खुशियों का फैसला

24 अगस्त 2017
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खुशियों का फैसला जो भावना मानवता के प्रति अपना फर्ज निभाने से रोकती हो क्या वो धार्मिक भावना हो सकती है? जो सोच किसी औरत के संसार की बुनियाद ही हिला दे क्या वो किसी मजहब की सोच हो सकती है? जब निकाह के लिए लड़की का कुबूलनामा जरूरी होता है तो तलाक में उसके कुबूलनामे को अ

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जनता तो भगवान बनाती है साहब लेकिन शैतान आप

28 अगस्त 2017
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जनता तो भगवान बनाती है साहब लेकिन शैतान आप 13 मई 2002 को एक हताश और मजबूर लड़की, डरी सहमी सी देश के प्रधानमंत्री को एक गुमनाम ख़त लिखती है। आखिर देश का आम आदमी उन्हीं की तरफ तो आस से देखता है जब वह हर जगह से हार जाता है। निसंदेह इस पत्र की जानकारी उनके कार्याल

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३५ए जैसे दमनकारी कानूनों का बोझ देश क्यों उठाए

4 सितम्बर 2017
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35A जैसे दमनकारी कानूनों का बोझ देश क्यों उठाए भारत का हर नागरिक गर्व से कहता कि कश्मीर हमारा है लेकिन फिर ऐसी क्या बात है कि आज तक हम कश्मीर के नहीं हैं? भारत सरकार कश्मीर को सुरक्षा सहायता संरक्षण और विशेष अधिकार तक देती है लेकिन फिर भी भारत के नागरिक के कश्मीर में क

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साहब भारत इसी तरह तो चलता है

17 सितम्बर 2017
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साहब भारत इसी तरह तो चलता है वैसे तो भारत में राहुल गाँधी जी के विचारों से बहुत कम लोग इत्तेफाक रखते हैं (यह बात 2014 के चुनावी नतीजों ने जाहिर कर दी थी) लेकिन अमेरिका में बर्कले स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में जब उन्होंने वंशवाद पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में "भारत इसी तरह चलता है " कहा,

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क्यों ना हम पहले आपने अन्दर के रावण को मारें

23 सितम्बर 2017
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क्यों ना हम पहले आपने अन्दर के रावण को मारें “रावण को हराने के लिए पहले खुद राम बनना पड़ता है ।“ विजयादशमी यानी अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दसवीं तिथि जो कि विजय का प्रतीक है। वो विजय जो श्रीराम ने पाई थी रावण पर, वो रावण जो प्रतीक है बुराई का, अधर्म का ,अहम् का, अहंका

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जागरूक जनता ही करेगी स्वच्छ भारत का निर्माण

2 अक्टूबर 2017
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जागरूक जनता ही करेगी स्वच्छ भारत का निर्माण 2 अक्टूबर 2014 को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा शुरू किए गए स्वच्छ भारत अभियान को अक्टूबर 2017 में तीन वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। स्वच्छ भारत अभियान के मकसद की बात करें तो इसके दो हिस्से हैं, एक सड़कों और सार्वजनिक स्थलों पर साफ सफाई तथा दूसरा भारत के गाँवों को खुले

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न जयप्रकाश आंदोलन कुछ कर पाया न ही अन्ना आंदोलन

14 अक्टूबर 2017
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न जयप्रकाश आंदोलन कुछ कर पाया न ही अन्ना आंदोलन वीआईपी कल्चर खत्म करने के उद्देश्य से जब प्रधानमंत्री मोदी द्वारा मई 2017 में वाहनों पर से लालबत्ती हटाने सम्बन्धी आदेश जारी किया गया तो सभी ने उनके इस कदम का स्वागत किया था लेकिन एक प्रश्न रह रह कर देश के हर नागरिक के मन मे

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क्यों न दिवाली कुछ ऐसे मनायें

16 अक्टूबर 2017
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क्यों न दिवाली कुछ ऐसे मनायें दिवाली यानी रोशनी, मिठाईयाँ, खरीददारी , खुशियाँ और वो सबकुछ जो एक बच्चे से लेकर बड़ों तक के चेहरे पर मुस्कान लेकर आती है। प्यार और त्याग की मिट्टी से गूंथे अपने अपने घरौंदों को सजाना भाँति भाँति के पकवान बनाना नए कपड़े और पटाखों की खरीददारी

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क्या विश्व महाविनाश के लिए तैयार है

10 नवम्बर 2017
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क्या विश्व महाविनाश के लिए तैयार है अमेरीकी विरोध के बावजूद उत्तर कोरिया द्वारा लगातार किए जा रहे हायड्रोजन बम परीक्षण के परिणाम स्वरूप ट्रम्प और किम जोंग उन की जुबानी जंग लगातार आक्रामक होती जा रही है। स्थिति तब और तनावपूर्ण हो गई जब जुलाई में किम जोंग ने अपनी इन्टरकाँ

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क्या हार्दिक मान सम्मान की परिभाषा भी जानते हैं?

17 नवम्बर 2017
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क्या हार्दिक मान सम्मान की परिभाषा भी जानते हैं? मैं वो भारत हूँ जो समूचे विश्व के सामने अपने गौरवशाली अतीत पर इठलाता हूँ। गर्व करता हूँ अपनी सभ्यता और अपनी संस्कृति पर जो समूचे विश्व को अपनी ओर आकर्षित करती है। अभिमान होता है उन आदर्शों पर जो हमारे समाज के महानायक हमें

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आखिर क्यों हम अपने बच्चों को नहीं बचा पा रहे

6 दिसम्बर 2017
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आखिर क्यों हम अपने बच्चों को नहीं बचा पा रहे 1 दिसंबर 2017,कोलकाता के जीडी बिरला सेन्टर फाँर एजुकेशन में एक चार साल की बच्ची के साथ उसी के स्कूल के पी टी टीचर द्वारा दुष्कर्म। 31 अक्तूबर को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में कोचिंग से लौट रही एक युवती के साथ सामूहिक बलात्कार। इसी साल सितंबर में रेहान

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क्या कभी नारी को गुस्सा आया है

17 दिसम्बर 2017
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क्या कभी नारी को गुस्सा आया है आज से पांच साल पहले 16 दिसंबर 2012 को जब राजधानी दिल्ली की सड़कों पर दिल दहला देने वाला निर्भया काण्ड हुआ था तो पूरा देश बहुत गुस्से में था । अभी हाल ही में हरियाणा के हिसार में एक पाँच साल की बच्ची के साथ निर्भया कांड जैसी ही बरबरता की ग

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सवा लाख से एक लड़ावाँ ताँ गोविंद सिंह नाम धरावाँ

20 दिसम्बर 2017
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सवा लाख से एक लड़ावाँ ताँ गोविंद सिंह नाम धरावाँ "चिड़ियाँ नाल मैं बाज लड़ावाँ गिदरां नुं मैं शेर बनावाँ सवा लाख से एक लड़ावाँ ताँ गोविंद सिंह नाम धरावाँ" सिखों के दसवें गुरु श्री गोविंद सिंह द्वारा 17 वीं शताब्दी में कहे गए ये शब्द आज भी सुनने या पढ़ने वाले की आत्मा को

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क्या यह प्रधानमंत्री पद की गरिमा का अपमान नहीं है

24 दिसम्बर 2017
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क्या यह प्रधानमंत्री पद की गरिमा का अपमान नहीं है वर्तमान में चल रहे संसद के शीतकालीन सत्र में भारतीय लोकतंत्र की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री मोदी द्वारा माफी की मांग पर सदन की कार्यवाही में लगातार बाधा डालने का काम कर रही है। वैसे ऐसा पहली

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डूबते सूरज की बिदाई नववर्ष का स्वागत कैसे

29 दिसम्बर 2017
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डूबते सूरज की बिदाई नववर्ष का स्वागत कैसे पेड़ अपनी जड़ों को खुद नहीं काटता, पतंग अपनी डोर को खुद नहीं काटती, लेकिन मनुष्य आज आधुनिकता की दौड़ में अपनी जड़ें और अपनी डोर दोनों काटता जा रहा है।काश वो समझ पाता कि पेड़ तभी तक आज़ादी से मिट्टी में ख

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क्या भंसाली निर्दोष हैं?

29 जनवरी 2018
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क्या भंसाली निर्दोष हैं? 26 जनवरी 2018, देश का 69 वाँ गणतंत्र दिवस, भारतीय इतिहास में पहली बार दस आसियान देशों के राष्ट्राध्यक्ष समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित, पूरे देश के लिए गौरव का पल, लेकिन अखबारों की हेडलाइन क्या थीं? समारोह की तैयारियाँ? विदेशी मेहमानों का आगमन और स्वागत? जी

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नीरव मोदी को नीरव मोदी बनाने वाला कौन है?

20 फरवरी 2018
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नीरव मोदी को नीरव मोदी बनाने वाला कौन है एक तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश में भ्रष्टाचार खत्म करने की बात कर रहे हैं तो दूसरी तरफ देश के एक प्रमुख बैंक में 11400 करोड़ रुपए का घोटाला सामने आया है। लोग अभी ठीक से समझ भी नहीं पाए थे कि हीरों का व्यवसाय करने वाले नीरव

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क्यों ना इस महिला दिवस पुरुषों की बात हो ?

7 मार्च 2018
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"हम लोगों के लिए स्त्री केवल गृहस्थी के यज्ञ की अग्नि की देवी नहीं अपितु हमारी आत्मा की लौ है, रबीन्द्र नाथ टैगोर।" 8 मार्च को जब सम्पूर्ण विश्व के साथ भारत में भी "महिला दिवस" पूरे जोर शोर से मनाया जाता है और खासतौर पर जब 2018 में यह आय

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नई ऊर्जा के साथ नववर्ष का स्वागत करें

16 मार्च 2018
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नई ऊर्जा के साथ नववर्ष का स्वागत करें कर्नाटक में युगादि, तेलुगु क्षेत्रों में उगादि, महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा, सिंधी समाज में चैती चांद, मणिपुर में सजिबु नोंगमा नाम कोई भी हो तिथि एक ही है चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा, हिन्दू पंचांग के अनुसार सृष्टि की उत्पत्ति का दिन, न

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नक्सलवाद को हराती सरकारी नीतियाँ

1 मई 2018
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नक्सलवाद को हराती सरकारी नीतियाँ 24 अप्रैल 2017 को जब "नक्सली हमले में देश के 25 जवानों की शहादत को व्यर्थ नहीं जाने देंगे" यह वाक्य देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था, तो देशवासियों के जहन में सेना द्वारा 2016 में की गई सर्जिकल स्ट्राइक की यादें ताजा हो गई थी

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कर्नाटक का जनमत किसके पक्ष में है?

19 मई 2018
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कर्नाटक का जनमत किसके पक्ष में है? चुनावों के दौरान चलने वाला सस्पेन्स आम तौर पर परिणाम आने के बाद खत्म हो जाता है लेकिन कर्नाटक के चुनावी नतीजों ने सस्पेन्स की इस स्थिति को और लम्बा खींच दिया है। राज्य में जो नतीजे आए हैं और इसके परिणामस्वरूप जो स्थिति निर्मित हुई है और

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जीवन जीने की कला है योग

21 जून 2018
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जीवन जीने की कला है योग"योग स्वयं की स्वयं के माध्यम से स्वयं तक पहुँचने की यात्रा है, गीता "योग के विषय में कोई भी बात करने से पहले जान लेना आवश्यक है कि इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि आदि काल में इसकी रचना, और वर्तमान समय में इसका ज्ञान एवं इसका प्रसार स्वहित

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देश देख रहा है

3 अगस्त 2018
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देश देख रहा है आज राजनीति केवल राज करने अथवा सत्ता हासिल करने मात्र की नीति बन कर रह गई है उसका राज्य या फिर उसके नागरिकों के उत्थान से कोई लेना देना नहीं है। यही कारण है कि आज राजनीति का एकमात्र उद्देश्य अपनी सत्ता और वोट बैंक की सुरक्षा सुनिश्चित करना रह गया है न कि र

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सीक्रेट्स ऑफ़ वूमेन एम्पावरमेंट

8 अगस्त 2018
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सीक्रेट्स ऑफ़ वूमेन एम्पावरमेंट

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क्या गूगल पर लगाम लगा पाएंगे ट्रम्प?

1 सितम्बर 2018
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क्या गूगल पर लगाम लगा पाएंगे ट्रम्प? क्या यह संभव है कि दुनिया की नजर में विश्व का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति भी कभी बेबस और लाचार हो सकता है? क्या हम कभी अपनी कल्पना में भी ऐसा सोच सकते हैं कि एक व्यक्ति जो विश्व के सबसे शक्तिशाली देश के सर्वोच्च पद पर आसीन है, उसके साथ उस

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केवल पुरुषों को दोष देने से काम नहीं चलेगा।

14 अक्टूबर 2018
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,केवल पुरुषों को दोष देने से काम नहीं चलेगा।पुरानीयादें हमेशा हसीन और खूबसूरत नहीं होती। मी टू कैम्पेन के जरिए आज जब देश में कुछमहिलाएं अपनी जिंदगी के पुराने अनुभव साझा कर रही हैं तो यह पल निश्चित ही कुछपुरुषों के लिए उनकी नींदें उड़ाने वाले साबित हो रहे होंगे और कुछ अपनी सांसें थामकर बैठे होंगे। इति

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महिलाओं के लिए ये कैसी लड़ाई जिसे महिलाओं का ही समर्थन नहीं

1 नवम्बर 2018
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महिलाओं के लिए ये कैसी लड़ाई जिसे महिलाओं का हीसमर्थन नहीं मनुष्य की आस्था ही वो शक्ति होती है जो उसे विषम से विषम परिस्थितियों से लड़कर विजयश्री हासिल करने की शक्ति देती है। जब उस आस्था पर ही प्रहार करने के प्रयास किए जाते हैं, तो प्रयास्कर्ता स्वयं आग से खेल रहा होता है।क्योंकि वह यह भूल जाता है कि

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राष्ट्रवाद एक विवाद

5 नवम्बर 2018
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डॉ नीलम महेंद्र कृत“राष्ट्रवाद एक विवाद” में राष्ट्रवाद की सीमाओं का विश्लेषण डॉ नीलम महेंद्र कृत राष्ट्रवाद एक विवाद निश्चित हीएक महत्वपूर्ण कृति है कम से कम पठनीय एवं विचारणीय तो अवश्य ही है। इसचिंतन पटक कृति के आवरण पर पुस्तक के शीर्षक के साथ ही उसकी मूल विषय वस्तुको स्पष्ट करने वाला वाक्य राष्ट्

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क्या यह दबी चिंगारी को हवा देने की कोशिश है?

21 नवम्बर 2018
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क्या यह दबी चिंगारी को हवा देनेकी कोशिश है?अभीज्यादा दिन नहीं हुए थे जब सेना प्रमुख जनरल विपिन रावत ने एक कार्यक्रम के दौरानपंजाब में खालिस्तान लहर के दोबारा उभरने के संकेत दिए थे। उनका यह बयान बेवजहनहीं था क्योंकि अगर हम पंजाब में अभी कुछ ही महीनों में घटित होने वाली घटनाओं परनजर डालेंगें तो समझ मे

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बांग्लादेश चुनाव परिणाम भाजपा के लिए केस स्टडी हो सकते हैं

4 जनवरी 2019
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बांग्लादेश चुनाव परिणाम भाजपाके लिए केस स्टडी हो सकते हैं वैसे तो आने वाला हर साल अपनेसाथ उत्साह और उम्मीदों की नई किरणें ले कर आता है, लेकिन यह सालकुछ खास है। क्योंकि आमतौर पर देश की राजनीति में रूचि न रखनेवाले लोग भी इस बार यह देखने के लिए उत्सुक हैं कि 2019 में राजनीति का ऊँठ किस करवटबैठेगा। खास

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सामाजिक न्याय की तरफ एक ठोस कदम

15 जनवरी 2019
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सामाजिक न्याय की तरफ एक ठोस कदमभारत की राजनीति का वो दुर्लभदिन जब विपक्ष अपनी विपक्ष की भूमिका चाहते हुए भी नहीं नहीं निभा पाया और न चाहतेहुए भी वह सरकार का समर्थन करने के लिए मजबूर हो गया, इसे क्या कहा जाए?कांग्रेस यह कह कर क्रेडिट लेनेकी असफल कोशिश कर रही है कि बिना उसके समर्थन के भाजपा इस बिल को

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महागठबंधन देश हित या स्वार्थ

26 जनवरी 2019
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महागठबंधन देश हित या स्वार्थ‘’मंजिल दूर है, डगर कठिन हैलेकिन दिल मिले ना मिले हाथ मिलाते चलिए", कोलकाता मेंविपक्षी एकता के शक्ति प्रदर्शन के लिए आयोजित ममता की यूनाइटिड इंडिया रैली में कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का यहएक वाक्य "विपक्ष की एकता" और उसकी मजबूरी दोनों का ही बखानकरने के लिए काफी है।

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नए भारत का आगाज़

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नए भारत का आगाज़ यह सेना की बहुत बड़ी सफलता है किउसने पुलवामा हमले के मास्टरमाइंड अब्दुल रशीद गाज़ी को आखिरकार मार गिराया हालांकिइस ऑपरेशन में एक मेजर समेत हमारे चार जांबांज सिपाही वीरगति को प्राप्त हुए। देश इस समय बेहद कठिन दौर से गुज़र रहा है क्योंकि हमारे सैनिकों कीशहादत का सिलसिला लगातार जारी है। अभ

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न्यू इंडिया

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न्यू इंडिया

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ट्रिपल तलक आस्था नही, अधिकारों की लड़ाई है ।

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ट्रिपल तलक आस्था नही,अधिकारों की लड़ाई है ।ट्रिपल तलाक पर रोक लगाने काबिल लोकसभा से तीसरी बार पारित होने के बाद एक बार फिरचर्चा में है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में ही इसे असंवैधानिक करार दे दिया था लेकिन इसे एक कानून का रूप लेने केलिए अभी और कितना इंतज़ार करना होगा यह तो समय ही बताएगा। क्योंकि

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केवल जन आन्दोलन से प्लास्टिक मुक्ति अधूरी कोशिश होगी

29 सितम्बर 2019
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केवल जन आन्दोलन से प्लास्टिकमुक्ति अधूरी कोशिश होगीवैसे तो विज्ञान के सहारे मनुष्यने पाषाण युग से लेकर आज तक मानव जीवन सरल और सुगम करने के लिए एक बहुत लंबासफर तय किया है। इस दौरान उसने एक से एक वो उपलब्धियाँ हासिल कीं जोअस्तित्व में आने से पहले केवल कल्पना लगती थीं फिर चाहे वो बिजली से चलने वालाबल्ब

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आपने स्वार्थ के लिये जनता को मुर्ख न बनाएं

25 दिसम्बर 2019
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आपनेस्वार्थ के लिये जनता को मुर्ख न बनाएं जब देश के पढ़े –लिखे बुद्धिजीवी लोग जिनमें कुछ डॉक्टर वकील, शिक्षक,प्रोफेसर, स्कूल कॉलेज के डायरेक्टर, पत्रकार, संपादक जैसे लोग सी ए ए और एन आर सी में अंतर समझे बिना मुस्लिम समुदाय को भृमित करने वाली बातें सोशल मीडिया मेंकथित

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कब तक सामने आते रहेंगे प्यारेमियाँ जैसे चरित्र ?

25 जुलाई 2020
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कब तक सामने आते रहेंगे प्यारेमियाँ जैसे चरित्र ? “हरचेहरेपर नकाबहै यहाँबेनकाबकोई चेहरानहींहर दामनमें दागहै यहाँबेदागकोई दामननहीं।यह अजीबशहर हैजहाँऔरत बेपर्दाकर दीजाती हैलेकिनसफेदपोशोंके नकाबकायम हैंयहाँ” मध्यप्रदेशकीराजधानीएकबारफिरकलंकितहुई।एकबारफिरसाबितहुआकिहमएकसभ्यसमाजहोनेकाकितनाभीढोंगकरेंलेकिनसत

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आदिवासी दिवस के बहाने अलगाववाद की राजनीति

3 अगस्त 2020
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आदिवासी दिवस के बहाने अलगाववाद कीराजनीति वैशविक परिदृश्य में कुछ घटनाक्रम ऐसेहोते हैं जो अलग अलग स्थान और अलग अलग समय पर घटित होते हैं लेकिन कालांतर में अगरउन तथ्यों की कड़ियाँ जोड़कर उन्हें समझने की कोशिश की जाए तो गहरे षड्यंत्र सामने आतेहैं। इन तथ्यों से इतना तो कहा ही जा सकता है कि सामान्य से लगने

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मौत में अपना अस्तित्व तलाशता मीडिया

3 सितम्बर 2020
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मौतमेंअपनाअस्तित्वतलाशतामीडियाआजकलजबटीवीऑनकरतेहीदेशकालगभगहरचैनल "सुशांत केस में नया खुलासा" या फिर "सबसे बडी कवरेज" नाम के कार्यक्रम दिन भर चलाता है तो किसी शायर के ये शब्द याद आ जाते हैं, "लहूकोहीखाकरजिएजारहेहैं,हैखूनयाकिपानी,पिएजारहेहैं।" ऐसालगताहैकिएकफिल्मीकलाकारमरतेमरतेइनचैनलोंकोजैसेजीवनदानदेगय

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क्या लोकतांत्रिक सरकार की यही कार्यशैली है ?

15 सितम्बर 2020
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महाराष्ट्र की राजनीति में इस वक्त भूचाल आया हुआ है। जिस प्रकार से बीएमसी ने अवैध बताते हुए नोटिस देने के 24 घंटो के भीतर ही एक अभिनेत्री के दफ्तर पर बुलडोजर चलाया और अपने इस कारनामे के लिए कोर्ट में मुंह की भी खाई उससे राज्य सरकार के लिए भी एक असहज स्थिति उत्पन्न हो गई है। इससे बचने के लिए भले ही शि

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वो यात्रा जो सफलता से अधिक संघर्ष बयाँ करती है।

19 सितम्बर 2020
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वो यात्रा जो सफलता से अधिक संघर्षबयाँ करती है।आज भारत विश्व में अपनी नई पहचान केसाथ आगे बढ़ रहा है। वो भारत जो कल तक गाँधी का भारत था जिसकी पहचान उसकी सहनशीलताथी,आज मोदी का भारत है जो खुद पहल करता नहीं, किसीको छेड़ता नहीं लेकिन अगर कोई उसे छेड़े तो छोड़ता भी नहीं। गाँधी के भारत से शायद हीकिसी ने सर्जिकल

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किसान मुद्दा क्या केवल विपक्ष जिम्मेदार है?

2 अक्टूबर 2020
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किसानमुद्दा क्या केवल विपक्ष जिम्मेदार है?ऐसापहली बार नहीं है कि सरकार द्वारा लाए गए किसी कानून का विरोध कांग्रेस देश कीसड़कों पर कर रही है। विपक्ष का ताजा विरोध वर्तमान सरकार द्वारा किसानों से संबंधित दशकों पुराने कानूनों में संशोधन करके बनाए गए तीन नए कानूनोंको लेकर है। देखाजाए तो ब्रिटिश शासन काल

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बिहार चुनाव फैसला किसके पक्ष में।

16 अक्टूबर 2020
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बिहार चुनाव फैसला किसके पक्ष में।बिहारदेश का पहला ऐसा राज्य बनने जा रहा है जहाँ कोरोना महामारी के बीच चुनाव होने जारहे हैं और भारत शायद विश्व का ऐसा पहला देश। आम आदमी कोरोना से लड़ेगा औरराजनैतिक दल चुनाव। खास बात यह है कि चुनाव के दौरान सभी राजनैतिक दल एक दूसरेके खिलाफ लड़ेंगे लेकिन चुनाव के बाद अपनी

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बंगाल चुनाव देश की राजनीति की दिशा तय करेगा।

26 दिसम्बर 2020
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बंगाल चुनाव देश की राजनीति की दिशातय करेगा।बंगाल एक बार फिर चर्चा मेंहै। गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर,स्वामी विवेकानंद, सुभाष चंद्र बोस, औरोबिंदो घोष, बंकिमचन्द्र चैटर्जी जैसी महान विभूतियोंके जीवन चरित्र की विरासत को अपनी भूमि में समेटे यह धरती आज अपनी सांस्कृतिक धरोहरनहीं बल्कि अपनी हिंसक राजनीति के

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