सामाजिक न्याय की तरफ एक ठोस कदम
भारत की राजनीति का वो दुर्लभ
दिन जब विपक्ष अपनी विपक्ष की भूमिका चाहते हुए भी नहीं नहीं निभा पाया और न चाहते
हुए भी वह सरकार का समर्थन करने के लिए मजबूर हो गया, इसे क्या कहा जाए?
कांग्रेस यह कह कर क्रेडिट लेने
की असफल कोशिश कर रही है कि बिना उसके समर्थन के भाजपा इस बिल को पास नहीं करा सकती
थी लेकिन सच्चाई यह है कि बाज़ी तो मोदी ही जीतकर ले गए है।
“आरक्षण", देश के राजनैतिक पटल पर वो शब्द,जो पहले एक सोच बना फिर उसकी
सिफारिश की गई जिसे,एक संविधान संशोधन बिल के रूप में प्रस्तुत किया गया, और अन्ततः एक कानून बनाकर देश भर में लागू कर दिया गया।
आजाद भारत के राजनैतिक इतिहास में 1990 और 2019 ये दोनों ही साल बेहद अहम माने जाएंगे। क्योंकि जब 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री वी पी सिंह ने देश भर में भारी विरोध के
बावजूद मंडल आयोग की रिपोर्ट के आधार पर "जातिगत
आरक्षण" को लागू किया था तो उनका यह कदम देश में एक नई राजनैतिक
परंपरा की नींव बन कर उभरा था। समाज के बंटवारे पर आधारित जातीगत विभाजित वोट बैंक की राजनीति की नींव।
इस लिहाज से 8 जनवरी 2019 की तारीख़ उस
ऐतिहासिक दिन के रूप में याद की
जाएगी जिसने उस राजनीति की नींव ही हिला दी।
क्योंकि मोदी सरकार ने ना केवल संविधान में संशोधन करके, आर्थिक आधार
पर आरक्षण दिए जाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है बल्कि भारत की राजनीति की दिशा
बदलने की एक नई नींव भी रख दी है। यह जातिगत वोटबैंक आधारित राजनीति पर केवल
राजनैतिक ही नहीं कूटनीतिक विजय भी है। इसे मोदी की
कूटनीतिक जीत ही कहा जाएगा कि जिस वोटबैंक की राजनीति सभी विपक्षी दल अब तक कर रहे
थे, आज खुद उसी का शिकार हो गए। यह वोटबैंक का गणित ही था कि देश में आर्थिक रूप से
कमजोर वर्गों के लिए 10% आरक्षण लागू करने हेतु 124 वाँ संविधान संशोधन विधेयक
राजयसभा में भाजपा अल्पमत में होते हुए भी पारित करा लें जाती है। मोदी
सरकार की हर नीति का विरोध करने वाला विपक्ष, मोदी को रोकने के लिए अपने अपने
विरोधों को भुलाकर महागठबंधन तक बना कर एक होने वाला विपक्ष आज समझ ही नहीं पा रहा
कि वो मोदी के इस दांव का सामना कैसे करे।
अब खास बात यह है कि अब आरक्षण
का लाभ किसी जाति या धर्म विशेष तक सीमित न होकर हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई पारसी और
अन्य अनारक्षित समुदायों को मिलेगा। यह देश के समाज की दिशा और सोच बदलने वाला
वाकई में एक महत्वपूर्ण कदम है।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस देश
में हर विषय पर राजनीति होती है। शायद इसलिए कुछ लोगों का कहना है कि
आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का यह फैसला एक राजनैतिक फैसला है जिसे केवल आगामी
लोकसभा चुनावों में राजनैतिक लाभ
उठाने के उद्देश्य से लिया गया है।
तो इन लोगों से एक प्रश्न कि
देश के वर्तमान परिदृश्य में कौन
सा ऐसा राजनैतिक दल है जो राजनैतिक नफा नुकसान देखे बिना कोई कदम उठाना तो दूर की
बात है,एक बयान भी देता है? कम से कम वर्तमान सरकार का यह
कदम विपक्षी दलों के उन गैर जिम्मेदाराना कदमों से तो बेहतर ही है जो देश को धर्म
जाति सम्प्रदाय के नाम पर बांट कर समाज में वैमनस्य बढ़ाने का काम करते हैं और नफरत
की राजनीति करते हैं। याद कीजिए 1990
का वो साल जब ना सिर्फ हमारे कितने जवान बच्चे आरक्षण की आग में झुलसे थे बल्कि आरक्षण के
इस कदम ने हमारे समाज को भी दो भागों में बांट कर एक दूसरे के प्रति कटुता उत्पन्न
कर दी थी। इसका स्पष्ट उदाहरण हमें तब देखने को मिला था जब अभी कुछ माह पहले ही
सरकार ने एट्रोसिटी एक्ट में बदलाव किया था और देश के कई हिस्से हिंसा की आग में
जल उठे थे।
कहा जा सकता है कि जाति गत
भेदभाव की सामाजिक खाई कम होने के बजाए बढ़ती ही जा रही थी।
लेकिन अब जाति या सम्प्रदाय
सरीखे सभी भेदों को किनारे करते हुए केवल आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए
आरक्षण ने सामाजिक न्याय की दिशा में एक नई पहल का आगाज़ किया है। समय के साथ चलने
के लिए समय के साथ बदलना आवश्यक होता है।
आज जब आरक्षण की बात हो रही हो तो यह जानना भी
जरूरी है कि आखिर इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी।
दरअसल जब देश में आरक्षण की व्यवस्था लागू की गई थी तो उसके
मूल में समाज में पिछड़े वर्गों के साथ होने वाले अत्याचार और भेदभाव को देखते हुए
उनके सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए मंडल आयोग द्वारा कुछ सिफारिशें की गई थीं जिनमें से कुछ एक को संशोधन के साथ अपनाया गया था। लेकिन आज इस प्रकार का सामाजिक भेदभाव और शोषण भारतीय समाज में लगभग नहीं के बराबर है।
और आज आरक्षण जैसी सुविधा के अतिरिक्त देश के इन शोषित दलित वंचित वर्गों के साथ
किसी भी प्रकार के भेदभाव अथवा अन्याय को रोकने के लिए अनेक सशक्त एवं
कठोर कानून मौजूदा न्याय व्यवस्था में लागू हैं जिनके बल पर सामाजिक पिछड़ेपन की
लड़ाई हम लोग काफी हद तक जीत चुके हैं। अब लड़ाई है शैक्षणिक एवं आर्थिक पिछड़ेपन
की। इसी बात को ध्यान में रखते हुए सरकार ने मौजूदा आरक्षण व्यवस्था से छेड़छाड़
नहीं करते हुए इसकी अलग व्यवस्था की है जो अब समाज में आरक्षण के भेदभाव को ही
खत्म कर के एक सकारात्मक माहौल बनाने में निश्चित रूप से मददगार होगा। चूंकि अब
समाज का हर वर्ग ही आरक्षित हो गया है तो आए दिन समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा
आरक्षण की मांग और राजनीति पर भी लगाम लगेगी।
और अब आखिरी बात जो लोग इसका
विरोध यह कहकर कर रहे हैं कि सरकार के इस कदम का कोई मतलब नहीं है क्योंकि
नौकरियाँ ही नहीं हैं उनसे एक सवाल। जब मराठा, जाट, पाटीदार,मुस्लिम, आदि आरक्षण की
मांग यही लोग करते हैं तब इनका यह तर्क कहाँ चला जाता है?
डॉ नीलम महेंद्र