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आज़माते जा रहे सब ।ग़ज़ल।

7 नवम्बर 2015

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।ग़ज़ल।आजमाते जा रहे सब। जिंदगी में दोस्ती के गीत गाते जा रहे सब । पर दोस्तों की कदर ही अब भुलाते जा रहे सब ।। बढ़ रही तादाद अपने दोस्तों की हर पहर । पर न जाने ठोकरों से जख़्म पाते जा रहे सब ।। मर्ज की लेते दवा पर मर्ज अब बढ़ने लगा है । दर्द है ,तन्हाइयां पर मुस्कुराते जा रहे सब ।। है यहाँ सब गम से बोझिल अपने ही हालात से । तर्ज मिलता ही नही पर गुनगुनाते जा रहे है ।। न समझ पाये कभी जो प्यार की बारीकियों को । दिल के टुकड़े हो गये पर दिल लगाते जा रहे है ।। इश्क़ और दोस्ती में शर्त तो होती नही है । न जाने फिर कौन सा वादा निभाते जा रहे सब ।। साहिलों पर देखता हूँ रकमिश" तेरी दास्ताँ मैं । तोड़कर दिल कह रहे की आजमाते जा रहे सब ।। .....R.K.MISHRA
चंद्रेश विमला त्रिपाठी

चंद्रेश विमला त्रिपाठी

न समझ पाये कभी जो प्यार की बारीकियों को । दिल के टुकड़े हो गये पर दिल लगाते जा रहे है...बहुत खूब मिश्र जी

7 नवम्बर 2015

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

उम्दा ग़ज़ल ! इसी तरह लिखते रहिए !

7 नवम्बर 2015

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रचनाएँ
gajalsahil
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ग़ज़ल साहिल ग़ज़लों का एक अनोखा संग्रह है । हम आपके भावो हा स्वागत करते है । यह कवि की निजी सम्पति है अतः आनन्द उठायें । हस्तक्षेप न करें । धन्यवाद

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