घने कोहरे से छनती ,वो सर्दी की धूप ,
सिमटे ,सुकड़े अंगों में ,जीवन भरती ,
जैसे अंधियारे से निकला, कोई प्रकाश है।
ऐसे में तेरा, क़रीब आना अच्छा लगता है।
तेरा छत पर आ, सिकुड़ते हाथों को फैला,
अपने अंदर ताजगी समेटना अच्छा लगता है।
तुम्हारा धूप में बैठ, मेरे लिए स्वेटर बनाना,
चाय की चुस्की संग,बातें करना अच्छा लगता है।
मूंगफली छील ,अपनी हथेली से कुछ दाने !
मेरी ओर कर देती ,मुस्कुराकर कहतीं , लो !
तुम्हारी शिकायतों में ,मेरी परवाह नजर आती ,
धूप में अखबार पढ़, तुम्हें सुनाना अच्छा लगता है।
तेरी बातों की गर्माहट सी,ये सर्दी की नर्म धूप ,
सर्दी की धूप में गुनगुनाते हुए, सहसा मुस्कुराना ,
नाप लेती हो मेरा ,फ़िक्र करती हो, इस सदन की ,
शॉल में लिपट तेरा , धूप में आना अच्छा लगता है।
तुम्हारे हाथों से बने ,मेवे के लड्डूओं की महक़ ,
घर के हर कोने में ,जीवन में, तेरे होने का एहसास !
तेरी उमंगों का मफ़लर लपेट ,धूप में बैठ मटर छीलना ,
ठंड से कांपते बदन,को सुकून देती है तो अच्छा लगता है।