न जाने कब, कैसे लिखती होगी ?वह चिट्ठियाँ !
माना कि मैं उससे दूर, कैसे सहती होगी दूरियां!
डुबो देती होगी, वो अपनी कलम में, मजबूरियां!
हृदय के भावों को सहेजती, लिखती होगी चिट्ठियां !
इसका एक-एक मोती मेरे लिए अनमोल है।
ढूंढती होगी ,कभी यहां -वहां मुझे न पाने पर,
डूब जाती होगीं, मेरी याद में उसकी अखियां !
कागज पर सोच मुझे, लिखती होगी ,चिट्ठियां !
इक दूजे से दूर हम, हृदय खोलकर रख देती होगी,
करीब होने का अहसास देतीं ,लिखती जब चिट्ठियां !
मुझको,अपने पास पाती,मुझे रुलाती हैं , चिट्ठियां !
सामने तो लड़ती हो ,फिर लिखती हो चिट्ठियाँ !
मिले आज, दिन हुए बहुत, भावों को सहेजे हुए
आओ ! आज मिलकर दोनों पढ़ते हैं , चिट्ठियां !
दूर चले जाने पर, साथ निभाती हैं, यही चिट्ठियां !
खोल रख देतीं, हृदय के भाव अनमोल ये चिट्ठियां !
उसके आने पर , महकी सी बयार लगती है।
धड़कने बढ़ जातीं ,पढ़ने को आतुर लगती हैं।
बंद लिफ़ाफे में ,न जाने कितने अनमोल मोती !
बिन बोले ही ,कितना कुछ कह जाती हैं ?चिट्ठियां !