सच्चाई का फूल
सदियों पहले भारत के किसी राज्य में एक सुयोग्य राजकुमार था जो जल्द ही राजा बनने वाला था.
राज्य की परंपरा के अनुसार राजा बनने से पहले उसे विवाह करना आवश्यक था. किन्तु राजकुमार किसी ऐसी लड़की से शादी करना चाहता था जो नेक और सच्ची हो.
एक बुद्धिमान दरबारी ने उसे सलाह दी कि वह राज्य की सभी विवाह योग्य युवतियों को बुलाकर उनमें से अपने लिए सुयोग्य वधू का चुनाव करे.
राजकुमार के महल में एक दासी थी जिसकी पुत्री भी विवाह योग्य थी. जब उसने राजकुमार के विवाह के लिए की जा रही तैयारियां होते देखीं तो उसका दिल डूबने लगा क्योंकि उसकी पुत्री राजकुमार से बहुत प्रेम करती थी.
जब उसने घर पहुंचकर राजकुमार के विवाह की खबर अपनी पुत्री को दी तो वह यह जानकर अचंभित हो गई कि उसकी पुत्री भी स्वयंवर में जाना चाहती थी.
उसने अपनी बेटी से कहा, “बिटिया, तुम वहां जाकर क्या करोगी ? वहां तो पूरे देश से एक से बढ़कर एक सुंदर और धनी लड़कियां राजकुमार का वरण करने के लिए आएंगी. तुम राजकुमार से विवाह की इच्छा अपने मन से निकाल दो.”
पुत्री ने कहा, “मां, तुम चिंतित न हो. मुझे पता है कि राजकुमार मुझे नहीं चुनेगा लेकिन इसी बहाने मुझे कुछ समय के लिए उसके निकट होने का मौका मिलेगा.
मेरे लिए यही बहुत है. मैं जानती हूं कि मेरी किस्मत में महलों का प्रेम नहीं लिखा है.”
स्वयंवर की रात को सभी नवयुवतियां महल पहुंचीं. वहां सैकड़ों सुन्दर और धनी युवतियों का जमघट था जो कीमती वस्त्रों और बहुमूल्य आभूषणों से स्वयं को सुसज्जित करके राजकुमार की नजरों में आने के किसी भी मौके को हाथ से नहीं जाने देना चाहती थीं.
राजकुमार ने तब सभी युवतियों से कहा, “मैं तुममें से प्रत्येक को एक बीज दूंगा.
इस बीज से पौधा निकलने के छः महीने बाद जो युवती मुझे सबसे सुंदर फूल लाकर देगी मैं उसी से विवाह करुंगा और वही इस राज्य की रानी बनेगी.”
सभी युवतियों को गमले में एक-एक बीज रोपकर दे दिया गया.
दासी की पुत्री को बागवानी या पौधे की देखभाल के बारे में कुछ पता नहीं था फिर भी उसने बहुत धैर्य और लगन से गमले की देखभाल की.
राजकुमार के प्रति उसके दिल में गहरा प्रेम था और वह आश्वस्त थी कि पौधे से निकलनेवाला फूल बहुत सुंदर होगा.
तीन महीने बीत गए लेकिन गमले में कोई पौधा नहीं उगा. नौकरानी की पुत्री ने सब कुछ करके देख लिया.
उसने मालियों और किसानों से बात की, जिन्होंने उसे बागवानी की कुछ तरकीबें सुझाईं, लेकिन किसी ने काम नहीं किया. उसके गमले में कुछ नहीं उगा. इसी सब में छः महीने बीत गए.
नियत दिन को अपने खाली गमले को लेकर वह राजमहल पहुंची. उसने देखा कि बाकी युवतियों के गमलों में बहुत अच्छे पौधे उगे थे और हर पौधे में एक अद्वितीय फूल खिला था.
अंत में वह घड़ी आ गई जिसकी सभी बाट जोह रहे थे. राजकुमार दरबार में आया और उसने सभी युवतियों के गमलों और फूल को बहुत गौर से देखा.
फिर राजकुमार ने परिणाम की घोषणा की. उसने दासी की पुत्री की ओर इशारा करके कहा कि वह उससे विवाह करेगा.
वहां उपस्थित सभी लड़कियों के परिवारीजन इस बात पर नाराज होने लगे.
उन्होंने कहा कि राजकुमार ने सुंदर फूल लेकर आई युवतियों की उपेक्षा करके उस युवती को चुना जो खाली गमला लेकर चली आई थी.
राजकुमार ने सभी को शांत रहने का इशारा करते हुए कहा, “केवल यही युवती इस राज्य की रानी बनने की योग्यता रखती है क्योंकि उसने सच्चाई और ईमानदारी का फूल खिलाया है….
दरअसल जो बीज मैंने छः महीने पहले सभी युवतियों को दिए थे, वे नकली और निर्जीव थे. उनसे पौधा उगकर फूल खिलना असंभव था.”