अफगानिस्तान तुम्हे लेके सबके अपने जज़्बात है,
पर मेरा बस इतना कहना है
किसी देश में शांति सरलता से रहना क्या इतना महंगा है।
कोई जी नहीं सकता अपनी मर्ज़ी से तो इस आज़ादी का क्या कहना है।
मैंने देखा है तुम्हे काबुलीवाला और खालिद हुसैनी के अल्फाज़ो में,
सच कहती हूँ दिल आज बहुत दुखता है।
एक भाई जब दूसरे भाई के सीने में बन्दुक रखता है।
मासूमो को कटीले तारो पे जब उछाल के बचाया जाता है,
गलीकूचों में जब बंदूकों को लहराया जाता है।
कोई कहता है ये ठीक है,कोई कहता है ये उनका नसीब है,कोई कहता है इतिहास दोहराया जाता है
पर कोई बताये ये विश्व सुरक्षा परिषद क्यों गठित किया जाता है।
देश को उन्मादियों से बचाना चाहिए,अगर वो सही है तो उनको भी चुन के आना चाहिए।
माफ़ी है!! उन छोटे बच्चो से जो किसी भी देश में उन्माद में मारे जाते है,वो नन्हे क्या जाने किस गुनाह की सजा वो पाते है।
अनीता