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मैं आज का घनानंद

6 जून 2022

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मैं आज का घनानंद,
कहता अपनी सुजान से ।
लिखूं कविता सुनने वालों,
पढूं तो दिलो जान से !!
एक वक्त था, जब दूर था,
ऐसे प्रेम से न कोई नाता था।
जाना जाता अपने ज्ञान से,
हमेशा चूर रहता अपने अभिमान से।
क्या मस्त मौला खुशनुमा जिंदगी,
जीते थे बड़ी शान से!!
प्रेम था मुझे सबसे,
पर न था किसी सुजान पर,
क्रोध भाव से देखा करता,
हर उस प्रेमी जोड़े को ,
प्रेम मग्न जो जिया करते,
भविष्य से थे अंजान से!!
साल बीते उम्र बढ़ी,
भावनाओं ने भी सीढ़ी चढ़ी।
जीवन में ऐसा मोड़ आया,
मानो किस्मत ने की मनमानी सी,
एक लड़की मिली अनजानी सी।
जीवन में आते ही उसके,
मानो मौसम ने रुख बदला था , 
पता नहीं क्या होगा आगे,
पर हम भी थे हैरान से।
उसका आना, साथ रहना,
सबकुछ अच्छा लगता था,
वो कहती परम मित्र हैं हम,
उससे ज्यादा कुछ नहीं हम,
प्यारी आंखें ,मुस्कुराता चेहरा देख
दिमाग भी कह देता था,
सच है मित्र! पर क्या करें, 
हम भी दिल की बातों से थे अंजान से !! 
जिस शाला में हम पढ़ते,
मानो वो मिलने का डेरा था ,
मेरी नजर में न जाने वो ,
कितने प्रेमी पंछियों का बसेरा था ,
उसे देखने को दिल बेकरार सा,
आंखें बेचैन सी मचलती थी,
जिस दिन वो न आती बेचैन हो जाता मन,
और हो जाते हम परेशान से !!
शायद यही प्रेम रहा होगा ,
घनानंद को सुजान से !!
कोई और उसके साथ हो ,
तो जलन सी होती थी मुझे,
शायद ये जलन भी उसके लिए प्रेम ही रहा हो ,
क्योंकि शायद चाहता था उन्हें दिलो जान से,
समय बीता,एहसास हुआ,
कि मुझे है उनसे प्रेम हुआ ,
पर क्या करता जज्बातों का,
जो आंच आ जाती मित्रता पर,
इस डर से मैं चुप बैठा था,
दिल को कर अपने शांत से!!
प्रेम करता था उसे दिलो जान से!!
एक दिन आया जब लगा मुझे,
चुप रहना धोखेबाजी होगी,
भावनाओं से दिल भर आया था,
जैसे समंदर ऊफान से ,
मैंने कहा अपनी सुजान से,,,,,
एक दिल की बात मैं कहता हूं,
जवाब मुझे तुम मत देना,
अहसास तुम्हे सिर्फ बतलाता हूं,
सिर्फ बतलाता हूं सह लेना,
जवाब मुझे तुम मत देना ।।
हार बैठा था दिल उसपर,
मानो तीर निकाल कमान से,
कह दिया मैंने सुजान से,,,,
मैं प्रेम करता हूं तुम्हे दिलो जान से !!
मैं प्रेम करता हूं तुम्हे दिलो जान से!!
मैं प्रेम करता हूं तुम्हे दिलो जान से!!
मैं आज का घनानंद,
कहता अपनी सुजान से,
 मैं प्रेम करता हूं तुम्हे दिलो जान से !!
मैं प्रेम करता हूं तुम्हे दिलो जान से !!
मैं प्रेम करता हूं तुम्हे दिलो जान से !!
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मैं आज का घनानंद
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प्रस्तुत शीर्षक "मैं आज का घनानंद" एक सत्य घटना पर आधारित एक कविता है जिसमे एक युवक के मन में अपने एक मित्र प्रति प्रेम की भावना होती है। वह अपने आप को घनानंद और अपने मित्र को सुजान के समान समझते हुए अपने मन में उठ रही भावनाओं, प्रेम में मग्न होने पर होने वाले एहसासों को एक कविता के माध्यम से व्यक्त करता है ।

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