अक्सर इंसान अपनी बोलचाल में हर बार मैं शब्द का प्रयोग करता है की अमुक कार्य मैनें किया हैं मैं ही करने वाला हूँ में ना होता तो कुछ नही होता में अगर चला जाऊं तो तुमसे कुछ नही होगा में ही सब कुछ हूँ ऐसे शब्द इंसान बार बार अपने दैनिक जीवन में प्रयोग करता हैं की सब कुछ करने वाला में हूँ |
मैं शब्द में अहंकार का वर्चस्व हैं इसलिये में शब्द किसी भी वाक्य में प्रयोग करने पर उसे कठोर बना देता हैं और इन्सान में अहंकार,घमंड का प्रभाव बढ़ते जाता हैं जिससे की इन्सान अपने आप को सर्वदाता व इश्वर समझने लगता है इसलिये में को त्याग दे और किसी भी कार्य को करने से पहले या करने के बाद हम शब्द का प्रयोग करे इससे होगा की आपको एक सुकून प्राप्त होगा और किसी भी कार्य को करने या करने के बाद अहंकार का वर्चसव नगण्या हो जायेगा और आपको एक सुकून व आपकी अन्तरआत्मा को बहुत ही शान्ति व दिल को काफी आनंद की प्राप्ति होगी इसलिये किसी भी कार्य को करने से पहले या बाद में हम शब्द का सानिध्य ले ना की में शब्द का |
ये तो सब ही जानते है की प्रभु श्री राम भगवान है किन्तु अगर देखा जावे तो किसी भी भगवान के सामने मर्यादा शब्द नही लगा है जैसा की हम सभी जानते है की सनातन धर्म में तैतीस कोटि देवी देवता माने गये है किन्तु किसी भी देवी व देवता के सामने मर्यादा शब्द नही लगा यह मर्यादा शब्द केवल प्रभु श्री राम को ही मिला वो इसलिये की अयोध्या के राजा होते हुये भी प्रभु श्री राम में अहंकार,घृणा,द्वेष,बल भ्रस्टाचार इत्यादि रत्ति भर भी प्रभु श्री राम के व्यक्तित्व में नही था वो अयोध्या के राजा होते हुये भी अपने शासन व लोगों के बीच आम नागरिक की भांति रहते थे आम जीवन व्यतीत करते थे यही कारण होने के बावजूद प्रभु श्री राम ने कैकयी माता द्वारा दिया गया चौदह वर्ष का वनवास हँसते हँसते प्राप्त कर लिया था प्रभु श्री राम की सोच उनका साधारण व्यक्तित्व धैर्य की चरम प्रकाशठा स्नेह उदारता,सुंदर चरित्र,कठिन परिस्तिथियों में अव्वल,धैर्य की सीमा यह सभी प्रभु श्री राम को मर्यादा जैसे शब्द की और अग्रसर करते है प्रभु श्री राम ने न ही केवल मर्यादा में रहकर कार्यकिये बल्कि वह एक खुद मर्यादित राजा थे अयोध्या के जिनकी अगर मर्यादा का गुणगान कितना भी किया जावे उतना ही कम है इसलिये प्रभु श्री राम मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम कहलाये |