जैसा की हम सभी जानते है की शिक्षा के बिना इस धरती पर कुछ भी संभव नही हैं किसी भी चीज को प्राप्त करने के लिये शिक्षा बहुत जरुरी है हम चाहे किसी के भी उपलक्ष्य में या जयंती में शिक्षा दिवस मनाये किन्तु इस बात से भी मूह नही फेर सकते की आज शिक्षा का व्यापारीकरण हो रहा है जहां प्रतिभावान बच्चे आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण उच्च शिक्षण संसथान व कालेजों में दाखिले से वंचित रह जाते है और पैसे से परिपूर्ण दूसरे विद्यार्थी उस ज्ञान को प्राप्त कर लेते है आप किसी के भी उपलक्ष्य में कोई भी दिवस क्यों ना मना ले किंतु जब तक सभी को शिक्षा नही प्राप्त होगी तब तक जिनके उपलक्ष्य में ये दिवस मनाये जा रहे है उनकी आत्मा को भी शान्ति नही मिलेगी क्योंकि उनका भी यही सपना था की प्रत्येक बालक व बालिका शिक्षा से वंचित ना हो |
ये तो सब ही जानते है की प्रभु श्री राम भगवान है किन्तु अगर देखा जावे तो किसी भी भगवान के सामने मर्यादा शब्द नही लगा है जैसा की हम सभी जानते है की सनातन धर्म में तैतीस कोटि देवी देवता माने गये है किन्तु किसी भी देवी व देवता के सामने मर्यादा शब्द नही लगा यह मर्यादा शब्द केवल प्रभु श्री राम को ही मिला वो इसलिये की अयोध्या के राजा होते हुये भी प्रभु श्री राम में अहंकार,घृणा,द्वेष,बल भ्रस्टाचार इत्यादि रत्ति भर भी प्रभु श्री राम के व्यक्तित्व में नही था वो अयोध्या के राजा होते हुये भी अपने शासन व लोगों के बीच आम नागरिक की भांति रहते थे आम जीवन व्यतीत करते थे यही कारण होने के बावजूद प्रभु श्री राम ने कैकयी माता द्वारा दिया गया चौदह वर्ष का वनवास हँसते हँसते प्राप्त कर लिया था प्रभु श्री राम की सोच उनका साधारण व्यक्तित्व धैर्य की चरम प्रकाशठा स्नेह उदारता,सुंदर चरित्र,कठिन परिस्तिथियों में अव्वल,धैर्य की सीमा यह सभी प्रभु श्री राम को मर्यादा जैसे शब्द की और अग्रसर करते है प्रभु श्री राम ने न ही केवल मर्यादा में रहकर कार्यकिये बल्कि वह एक खुद मर्यादित राजा थे अयोध्या के जिनकी अगर मर्यादा का गुणगान कितना भी किया जावे उतना ही कम है इसलिये प्रभु श्री राम मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम कहलाये |