इस देश में आजादी से पहले और आजाद के बाद तक भ्रस्टाचार एक ऐसा मुद्दा रहा है जो की आज तक किसी से भी नही सुलझा है वो इसलिये की देश को चलाने वाले से लेकर के और छोटे बड़े सभी कर्मचारी जहां तक जिस विभाग में तैनात है उन सभी को तन्ख्वाह से अलग रिश्वत/घूस चाहिये आम जनता जिसे चुनाव के दम पर कुर्सी पर बिठाती है आज उसी जनता को अपना कार्य सिद्ध करने के लिये घूस/रिश्वत देनी पड़ती है और तो और अगर जनता घूस/रिश्वत नही देती और अधिकारी/कर्मचारी को ईमानदारी का पाठ पढ़ाती है वो उसी भोली भाली जनता का शोषण किया जाता है यह इस देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है इस समस्या का एक ही उपाय है और वह है अगर कोई भी बड़ा छोटा या नेता इस देश का कोई भी नागरिक वो चाहे कितने भी बड़े पद पर क्यों न हो उसे उसके पद से तुरंत बर्खास्त कर देना चाहिये
और उसे घूस/रिश्वत लेने के चलते दण्ड का अहसास दिलाना चाहिये तभी इस समस्या का निदान होगा दूसरा कोई इस समस्या का उपाय नही है |
ये तो सब ही जानते है की प्रभु श्री राम भगवान है किन्तु अगर देखा जावे तो किसी भी भगवान के सामने मर्यादा शब्द नही लगा है जैसा की हम सभी जानते है की सनातन धर्म में तैतीस कोटि देवी देवता माने गये है किन्तु किसी भी देवी व देवता के सामने मर्यादा शब्द नही लगा यह मर्यादा शब्द केवल प्रभु श्री राम को ही मिला वो इसलिये की अयोध्या के राजा होते हुये भी प्रभु श्री राम में अहंकार,घृणा,द्वेष,बल भ्रस्टाचार इत्यादि रत्ति भर भी प्रभु श्री राम के व्यक्तित्व में नही था वो अयोध्या के राजा होते हुये भी अपने शासन व लोगों के बीच आम नागरिक की भांति रहते थे आम जीवन व्यतीत करते थे यही कारण होने के बावजूद प्रभु श्री राम ने कैकयी माता द्वारा दिया गया चौदह वर्ष का वनवास हँसते हँसते प्राप्त कर लिया था प्रभु श्री राम की सोच उनका साधारण व्यक्तित्व धैर्य की चरम प्रकाशठा स्नेह उदारता,सुंदर चरित्र,कठिन परिस्तिथियों में अव्वल,धैर्य की सीमा यह सभी प्रभु श्री राम को मर्यादा जैसे शब्द की और अग्रसर करते है प्रभु श्री राम ने न ही केवल मर्यादा में रहकर कार्यकिये बल्कि वह एक खुद मर्यादित राजा थे अयोध्या के जिनकी अगर मर्यादा का गुणगान कितना भी किया जावे उतना ही कम है इसलिये प्रभु श्री राम मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम कहलाये |