
आज सुबह ऑफिस जाते समय जब विशिष्ट प्रतिष्ठित गणमान्य कहलाने वाले नागरिकों के क्षेत्र से गुजर रही थी तो अचानक एक नाले की चमक-दमक देख मेरी अँखियाँ चौंधिया के रह गई। जहाँ एक ओर भीड़-भाड़ वाली बस्तियों में घर के आगे-पीछे बहने वाली नालियों में बहते मैले के कारण वहां रहना और वहां से कहीं निकलना भी किसी बहुत बड़ी चुनौती से कम नहीं होता, वहीँ दूसरी ओर पीले, सफ़ेद और लाल रंग में रंगा कोई नाला मुझे ऐसा भी मिल सकता है, जो किसी नदी से भी अधिक स्वच्छ हो सकती है, यह तो मैंने सपने में भी नहीं सोचा था। लेकिन ऐसा संभव है जब हमारे स्वच्छता अभियान के आला अफसरों की विशेष व्यक्तियों पर विशेष मेहरबानी हो। मुझे याद है जब हमें कहीं भीड़-भाड़ वाले मोहल्ले या बस्ती में जाना होता है, तो उनके घर तक पहुँचने के लिए हमें ठुमके लगाने पड़ते हैं, बिना ठुमके लगाए उन तक पहुंचना नामुमकिन सा हो जाता है। ऐसी बस्तियों में नाले तो लावारिश हालत में तो रहते ही हैं, लेकिन उनके घर के आगे जो स्थिति रहती हैं उसका वर्णन यदि करने बैठ जाएँ तो शब्द भी कम पड़ जाए। शासन-प्रशासन की दोगली नीति के कारण नालों और सड़कों का भी यही हाल रहता है। जाने क्यों सारा बजट विशिष्ट व्यक्तियों की कालोनियों के नाम लिखा होता है। सोचती हूँ क्या गरीबों के हिस्से में उनकी तरह ही तंगहाल सड़कें, गन्दगी भरी नाले, आंख-मिचौली खेलती बिजली, टूटी-फूटी पुरानी पाइप लाइनों से गन्दगी मिला पानी और इसके उलट सबकुछ उच्च गुणवत्ता अमीरों के हिस्से में लिखा होता है?
आप भी कुछ ऐसा अपने-अपने आस-पास देखते होंगे, इस बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?