कल रात जब जब खाना खाकर मेरा बेटा बाहर सड़क पर टहल रहा था तो उसने देखा कि सड़क पर एक महिला जिसकी उम्र यही कोई ३०-३२ के आस-पास रही होगी, वह सड़क पर बैठी रो रही थी। सड़क पर आने-जाने वाले उसे देखकर भी अनदेखा कर रहे। थे, तो मेरे बेटे ने आकर मुझे बताया तो मैं इनको साथ लेकर देखने निकली। मैंने देखा कि वह महिला सड़क के किनारे एकदम चित लेटी थी। मैं उसके पास गई तो वह हकलाते हुए बोली कि उसके दो बच्चे है और वह यही पास गीतांजलि कॉलोनी की है। गीतांजलि कॉलोनी हमारे घर से महज ३०० -४०० मीटर की दूरी पर है तो मैंने उसे उठाते हुए कहा कि चलो मैं तुम्हें घर छोड़ आती हूँ। लेकिन जैसे ही मैंने उसे उठाना चाहा वह लड़खड़ाते हुए उठी और यह कहते हुए कि वह चली जाएगी, चलने लगी। मैंने सोचा चलो ठीक है लेकिन जैसे ही वह चार कदम आगे बढ़ी थी कि बीच सड़क पर फिर से गिरकर पसर गई। मैंने पास जाकर देखा तो उसके मुँह से शराब की बहुत बुरी बदबू आ रही थी। मैंने देखा कि उसने बहुत शराब पी रखी है। इतने में आस-पास के चार-पांच मोहल्ले के लोग भी आ गए और सड़क पर उधर से निकलने वाला एक आदमी भी रुक गया। मैंने पुलिस का १०० नंबर मिलाया लेकिन किसी ने नहीं उठाया तो मैंने इन्हें कहा कि वह पास ही चौराहे पर बनी पुलिस चौकी पर जाकर बता आये। ये अभी थोड़ी दूर गए ही थी कि पुलिस की १०० नंबर डायल वाली जीप हमारी तरफ ही आकर रुक गयी। जब हमने पुलिस वालों को उसके बारे में बताया तो वे गाड़ी से उतरे भी नहीं और उन्होंने कहा कि वे निश्चिंत रहे, यह महिला खुद ही अपने घर चली जाएगी। हम तो ऐसे नज़ारे हर दिन देखते हैं। एक औरत को इस तरह सड़क पर नशे में धुत होकर गिरते-पड़ते देख हमसे देखा नहीं जा रहा था। हमने फिर पुलिस वालों से निवेदन किया कि वे उसे उसके घर छोड़ दें तो उन्होंने कहा कि देखिए हम पुरुष पुलिस वाले हैं हमारे साथ कोई महिला पुलिस नहीं है। ऐसी औरते हमें ही उल्टा-सीधा कहकर सबके सामने बुरा बना लेती हैं। इसलिए हम दूर से इन्हें देखते रहते हैं, इनके पास नहीं जाते। फिर उन्होंने हमें एक किस्सा सुनाया कि जब कल वे रात में गस्त में थे उन्हें रात ११.३०-१२ बजे के लगभग यहीं गीतांजलि काम्प्लेक्स के चौराहे में एक लड़की नशे में धुत मिली, जो कि १५-२० किलोमीटर दूर बीएचईएल से अपने दोस्तों के साथ पार्टी में आयी थी, जो उसे छोड़कर चले गए। जब उन्होंने उसे घर छोड़ने की बात की तो वह वह उनपर ही बरस पड़ी।उन्हें उल्टा-सीधा सुनाने लगी। वह किसी बहुत संभ्रात घर की लग रही थी, तो हमने उसे बहुत बहस करना उचित नहीं समझा। बहुत देर बाद जब उसका कोई रिश्तेदार एक बड़ी गाड़ी लेकर आया तो वह जैसे-तैसे उसमें बैठकर चली गयी, तो उन्हें भी राहत मिली। वे कहने लगे कि कभी-कभी उनकी भी ऐसी स्थिति में बड़ी मजबूरी हो जाती है कि क्या करें, क्या नहीं, कैसे समझाएं ऐसे युवा पीढ़ी के नशाखोरी में लिप्त नौनिहालों को। जब हमने उनसे कहा कि आप उनके प्रति सख्ती से पेश क्योँ नहीं आते हैं तो वे हँसते हुए कहने लगे कि कैसे और किस पर सख्ती करें? यहाँ तो निचले तबक़ों को छोड़ो बड़े-बड़े अधिकारी और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के बच्चे तक बड़ी-बड़ी गाड़ियौं लेकर तफरी करते हैं, जिन्हें रोक पाना हँसी-ठट्टा तो नहीं। बड़ी राजनीति है, नहीं समझा सकते किसी को। उन्होंने और भी बहुत से बातें सुनाई। बातों-बातों में हमने देखा कि वह महिला लड़खड़ाते, गिरते-पड़ते काफी दूर चली गई तो एक ओर से हम उसके पीछे-पीछे ओर दूसरी ओर से पुलिस उसके पीछे-पीछे उसे डराते-धमकाते हुए उसके घर तक पहुंचा आई। घर से बाहर उसके दो छोटे-छोटे बच्चे उसका इंतज़ार कर रहे थे, जिन्हे देख बहुत दया आ रही थी। मुहल्ले वालों ने बताया कि उनका हर दिन यही नाटक चलता-रहता है, वे उनसे खुद ही बहुत परेशान हैं, उनके कारण आस-पास का माहौल ख़राब होता है। हम वापस अपने लौटे तो रास्ते में सोचती रही कि आज सच में नशाखोरी बड़े ही व्यापक पैमाने पर बढ़ चुकी हैं। सुबह जब सड़क पर घूमने निकलती हूँ तो हर दिन सड़क के किनारे देशी-विदेशी शराब की बोतले और पानी के पाउच, बोतले, चने-चखाने, खाने की प्लास्टिक की प्लेटें, अधजली बीड़ी-सिगरेट बड़ी तादात में इधर-उधर बिखरे पड़े दास्ताँ बयां करते हैं और हम चुपचाप देखते रह जाते हैं।
आजकल सुबह जब घूमने निकलती हूँ तो रास्ते में देखती हूँ कि कई मंदिर तो बंद मिलते हैं, लेकिन सड़क किनारे बीड़ी-सिगरेट, गुटके की दुकाने ऐसी खुली मिलती हैं जैसे अगर यह लोगों को खुली नहीं मिले तो उनकी वह सुबह और पूरा दिन ही बेकार समझो। कहने को तो बीड़ी-सिगरेट, गुटका, शराब सेवन सार्वजानिक स्थानों पर प्रतिबंधित है, लेकिन यहाँ तो सार्वजनिक स्थान तो छोड़िए, सरे राह वाहन चलाते छोटे-बड़े जिसे देखो मुँह में बीड़ी-सिगरेट ठुसाये या फिर गुटका दबाये धुआँ उड़ाते या पिच-पिच कर गुटका थूकते नज़र आ जाते हैं। ऐसे लोगों के पीछे सड़क पर चलना भी आज सबसे बड़ी चुनौती है, कब आगे से कौन धुआँ नथनों में पास कर दे, या गुटके की पीच से सड़क के साथ चेहरा रंग दें, कुछ नहीं कहा जा सकता। ऐसे लोग बड़े मासूम होते है। वे घर और बाहर ऐसे ही मासूम बनकर अपना काम करने में पीछे नहीं रहते है। ऐसे मासूमों के बारे में आप क्या कहेंगे?
आगे भी बहुत कुछ है कहने को, लेकिन फिर कभी, तब तक आप यह गीत सुनते चलो -
मुझको यारों माफ़ करना, मैं नशे में हूँ
अब तो मुमकिन है बहकना, मैं नशे में हूँ
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