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सुबह-सवेरे की दौड़-भाग

10 मार्च 2022

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कल रात पहले घर के सभी सदस्यों के लिए उनकी पसंद का खाना बनाने, खिलाने और फिर ऑफिस का कुछ काम निपटाने में बहुत समय लगा तो काफी देर रात सो पाई तो आज सुबह जरा देर से आँख खुली। मेरे मिस्टर तो जाने कब जल्दी सुबह उठकर बाहर से दरवाजे पर ताला लगाकर घूमने निकल गए कि पता ही नहीं चला। अलार्म भी पहले से सात बजे का लगा रखा था, इसलिए वह अपने समय पर बजा, लेकिन आज सुबह बच्चे का स्कूल है, ये बात भूल गई थी। वैसे तो मेरा बेटा मेरे से पहले जाग जाता है लेकिन आज उसकी भी नींद नहीं खुली। अब जब मैंने देखा कि अरे आधे घंटे का ही समय तो मैं किचन में भागी और बच्चे को कहा कि तू कपड़ों में जल्दी से प्रेस कर ले। इतने में मिस्टर भी बाहर से ताला खोलकर आ गए। मैंने उन्हें सुनाया कि समय पर आना चाहिए था तो वे बोले कि मैं तो समय पर आ गया हूँ, मैं तो उसे छोड़ने जाता हूँ यही तो मेरा काम है। मैंने उन्हें बच्चे के कपड़ों में प्रेस करने को कहा तो उन्होंने बताया कि बच्चा देर होने से बहुत गुस्से में है और बिलकुल मुँह बंद कर कोप भवन में जाने की मुद्रा में है। खैर जैसे-तैसे उसके लिए नाश्ता बनाया, चाय पिलाई और स्कूल भेजा तो कुछ राहत मिले। 

बच्चे को स्कूल छोड़ने के बाद मिस्टर ने आकर मुझे बताया कि उसने रास्ते भर बात नहीं कि और जब स्कूल में ठीक समय पर पहुँच गया तो थोड़ा मुस्कुराया और कहने लगा कि कल पापा देर से स्कूल लेने आये और आज माँ ने देर कर ही दी थी लेकिन कोई बात नहीं ठीक समय पर पहुँच गए, नहीं तो वापस आना पड़ता। मैं खाना बनाते-बनाते सोचती रही कि मेरा बेटा जब गुस्से में होता है तो कुछ नहीं बोलता, एकदम मुँह बंद कर देता है, फिर उसे दुनिया की कोई ताकत न हँसा सकती है, न उसके चेहरे पर मुस्कराहट की भाव जगा सकती हैं। लेकिन उसकी ये खासियत है कि वह सही समय पर स्कूल पहुँचता है और अपने स्कूल के काम में कोई कोताई नहीं बरतता है। मेरे मिस्टर और मेरा बेटा मेरी बहुत मदद करते हैं। मेरे मिस्टर मेरे संपादक, प्रूफ रीडर, प्रचार-प्रसार करने वाले तो मेरा बेटा मेरे ब्लॉग हो या कोई भी पोस्ट के लिए बहुत सुन्दर चित्र बनता है। अभी 'गरीबी में डॉक्टरी' कहानियों के लिए वह धीरे-धीरे कहानी को पढ़कर उनके लिए चित्र बनता है। क्योंकि अभी उसकी दसवीं प्री बोर्ड के पेपर हुए है और उसे आगे फाइनल की तैयारी करनी होती है, इसलिए वह धीरे-धीरे सोच-सोच कर खुद ही चित्र बना लेता है तो मुझे बहुत ख़ुशी मिलती है। मेरी किताब का कवर पेज भी उसी ने अपने मन से बनाया है तो मुझे बहुत ही अच्छा लगा।

शेष फिर ...  

भारती

भारती

वाह क्या बात है 👏👏 बहुत खूब 👌🏻👌🏻

11 मार्च 2022

Dinesh Dubey

Dinesh Dubey

बहुत बढ़िया

10 मार्च 2022

15
रचनाएँ
दैनन्दिनी : आस-पास की दुनिया
5.0
इस पुस्तक को आप कुछ अपनी और कुछ बाहर की बातों का लेखा-जोखा समझ लीजिए।
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शिव-पार्वती की बारात में

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ऑफिस वाला जन्मदिन

2 मार्च 2022
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कल शिव बारात में चटक धूप भरी दुपहरी में साबू दाने की खीर और खिचड़ी के साथ ठंडाई के सहारे रास्ते भर ढोल-नगाड़े और डीजे पर बड़े जोर-शोर से बजने वाले शिव भक्ति गीतों में झूमते-झामते मन तरंगित हुआ तो आज

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उफ़! ये आजकल के बच्चों के नखरे

3 मार्च 2022
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इन दिनों मेरे बेटे का १० वीं के प्री-बोर्ड के पेपर चल रहे हैं।  कल उसका आईटी का पेपर हैं।  आज बड़े सवेरे उसके पंच मित्र मण्डली में से सबसे घनिष्ठ मित्र अश्विन आ धमका।  इतनी सुबह उसे आता देखकर मैं च

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गरीबी में डॉक्टरी के बारे में

4 मार्च 2022
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आज की दैनंदिनी केवल और केवल पुस्तक लेखन प्रतियोगता में समिल्लित मेरी 'गरीबी में डॉक्टरी'  कहानी संग्रह में संकलित १० कहानियों में से मुख्य कहानी 'गरीबी में डॉक्टरी' के मुख्य पात्र 'एक और मांझी- धर

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बगुले भक्तों की फौज

6 मार्च 2022
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आज दैनन्दिनी के लिए मेरी एक कविताई -   यहाँ-वहाँ, जहाँ-जहाँ देखो एक फौज ऐसी मिलती है  चोरी-चुपके सामने आकर जो अपनी छाप छोड़ती है ये फौज पहले कम थी, पर आज बढ़ती जा रही है  जो दीन-ईमान वालों पर बहुत

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मेरे और उनके बच्चों में अंतर

9 मार्च 2022
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आज सुबह बच्चों की छुट्टी थी तो सोचा थोड़ा घूम-फिर के आ जाऊँ। थोड़ा देर से जागी थी इसलिए घर से थोड़ी दूर ही एक पार्क में टहलने लगी। वहां एक सज्जन भी टहल रहे थे। टहलते-टहलते मैंने देखा कि पार्क के एक कोन

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10 मार्च 2022
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अमीर-गरीब के अपने-अपने हिस्से

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माँ सा दूजा कोई नहीं

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लड़के क्यों लड़कियों की तरह अपने माँ-बाप की सेवा नहीं कर पाते हैं?

25 मार्च 2022
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मैं नशे में हूँ

27 मार्च 2022
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कल रात जब जब खाना खाकर मेरा बेटा बाहर सड़क पर टहल रहा था तो उसने देखा कि सड़क पर एक महिला जिसकी उम्र यही कोई ३०-३२ के आस-पास रही होगी, वह सड़क पर बैठी रो रही थी। सड़क पर आने-जाने वाले उसे देखकर भी अन

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तब हमारे बड़े-बुजुर्ग भी कम नादान नहीं थे

30 मार्च 2022
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आज सुबह की सैर करते समय हमारे गाँव के एक दादा जी रास्ते में टकरा गए। हम तो उन्हें पहचान नहीं पाए, क्योंकि कई वर्ष से उन्हें देखा नहीं था। वह तो उनके साथ उनका पोता था, जो यहीं भोपाल में रहता है, उसने प

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