जब भी माँ की तबियत ज्यादा ख़राब होती है तो वह मुझे फ़ोन लगाकर बताती हैं। माँ की गाड़ी दवाईयों के भरोसे तो जैसे-तैसे चल ही रही है, लेकिन जब भी वह कुछ उल्टा-सीधा कुछ खा लेती है तो उसे पेट सम्बन्धी तमाम बीमारियाँ एक साथ उसके सामने आ खड़ी कड़ी होती हैं। कितना भी कहो लेकिन जीभ पर लगाम नहीं लगा पाती है। आजकल मार्च क्लोजिंग के कारण ऑफिस में काम बहुत है इसलिए घर पर भी काम करना पड़ रहा है। कल रात भी ऑफिस का कुछ काम कर रही थी कि ११. ३० बजे के लगभग माँ का फ़ोन आया तो इनके साथ लेकर देखने निकल पड़ी। घर जाकर देखा तो वह पेट पकड़कर बैठी थी। पूछने पर कहने लगी कि शाम को डॉक्टर को दिखाया तो था लेकिन उनकी दवाइयों से कोई असर नहीं हो रहा है, आराम नहीं मिल रहा है,रह-रह पेट फूल रहा है। मैं किचन में गई और मैंने जीरा और अजवायन को तवे में सेका और फिर उसे बारीक पीसकर उसमें काला नमक मिलकर गरम पानी में पीने को दिया तो माँ को कुछ देर बात आराम मिला तो मुझे राहत मिली की हॉस्पिटल नहीं जाना पड़ेगा। लेकिन माँ ने कहा कि मैं उनके साथ ही रहूं तो रात को मैं वही रही। उन्हें मुझ पर पूरा भरोसा रहता है, मेरे होते हुए उन्हें कुछ नहीं होगा। मैं भी उनके इस भरोसे को कभी नहीं तोड़ती। मैं बखूबी समझती हूँ कि जब एक माँ अपने बच्चों के लिए अपना सारा जीवन अर्पण कर सकती है, तो क्या बच्चों का कोई फर्ज नहीं बनता? ये अलग बात है कि बहुत से बच्चे इस बात को नहीं समझते और वे बड़े क्या होते हैं और उनकी शादी-ब्याह क्या होती है कि वे उनकी उपेक्षा कर बैठते हैं। उन्हें अपने से अलग-थलग कर लेते हैं। सोचती ही पता नहीं क्यों बच्चे बड़े होने पर उनके साथ अच्छा व्यवहार क्यों नहीं कर पाते हैं। उन्हें जब बुढ़ापे में सहारे की जरुरत होती हैं, तब वे उनसे क्यों किनारा कर देते हैं। विशेषकर आजकल के लड़के तो माँ-बाप की सेवा करने से कोसों दूर नज़र आते हैं। वे लड़के जिन्हें वे घर का चिराग कहते हैं, वे तो दूर हो जाते हैं लेकिन वे लड़कियां जिन्हें वे पराया धन समझती हैं, वे ही उनका मरते दम तक साथ देती हैं। वह कहीं एक बेटी के रूप में अपने माँ-बाप की सेवा तो कहीं एक पत्नी के रूप में अपने पति की बुरे समय में सेवा करती नज़र आती हैं।
मुझे तब बहुत दुःख होता है जब मैं अक्सर देखती हूँ कि हॉस्पिटल में एक पत्नी अपने बीमार पति की जी जान से सेवा करती है। रात-दिन उसके साथ रहती हैं, उसे अकेला नहीं छोड़ती है, जबकि उसके बेटे एक रात भी हॉस्पिटल में रहना पसंद नहीं करते हैं। ऐसे समय में माँ का साथ यदि कोई देता है तो वह बेटियां होती हैं, वे चाहे उसी शहर में हो दूर अन्य शहर में लेकिन वे जैसे अपने माँ-बाप की बीमार या मुसीबत में होने की खबर सुनते हैं, तो वे सबकुछ छोड़कर उनका साथ देने के लिए दौड़ी चली आती हैं। सोचती हूँ क्यों लड़के उन लड़कियों की तरह अपने माँ-बाप की सेवा नहीं कर पाते हैं, जिन्हें उनसे आज भी कम आँका जाता है? आप भी अपने आस-पास निश्चित ही ऐसे दृश्य देखते होंगे, इस बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?
फिर मिलते हैं, तब तक गुनगुनाते रहिए-
हर बात को तुम भूलो भले, माँ बाप को मत भूलना,
उपकार इनके लाखों है, इस बात को मत भूलना
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