आज दोहरी ख़ुशी मिली। पहली मेरे बेटे का 10 वीं सीबीएसई बोर्ड के फर्स्ट टर्म के रिजल्ट आया, जिसमें उसने 93 प्रतिशत अंक प्राप्त किये। मैं उससे कहती कि बेटा यदि केवल पढाई पर ध्यान देता तो कम से कम 99 या फिर 100 प्रतिशत अंक आ जाते, इस पर वह कहता है कि मेरे 95 प्रतिशत आ जाय तो वही बहुत है, क्या करना है। सोचती हूँ कभी-कभी हम कुछ ज्यादा ही अपेक्षा करने लगते हैं। अब हमारे समय में तो फर्स्ट डिवीज़न यदि किसी की आ जाती थी तो वह सबकी नज़रों में विशिष्ट बन जाता था। सब कहते कि अरे देखो फलां का बच्चा फर्स्ट डिवीज़न से पास हुआ है और आज वही फर्स्ट डिवीज़न यानी 60 प्रतिशत जिसके आये लोग कहते है बस पास हुआ है कोई उसे फर्स्ट डिवीज़न मानने को तैयार ही नहीं होता।
अब मेरी बिटिया ने भी पहली बार कॉलेज जाकर ८० प्रतिशत अंक प्राप्त किये है। १२वीं में जब उसने बहुत जोर लगाया तो तब जाकर उसके ७० प्रतिशत आये। उसे हम हमेशा कहते हैं कि बेटा केवल पढाई पर ध्यान दें लेकिन उसे तो सोशल मीडिया से फुर्सत ही नहीं मिलती। बहुत डांट भी खाती हैं लेकिन चिपकी रहती है फ़ोन से। पढ़ती जरूर है लेकिन इंस्ट्राग्राम छूटता नहीं उससे। उस पर इंस्ट्राग्राम का ऐसा भूत सवार रहता है कि उसे जो कुछ भी खाने या पहनने को दो वह फटाक से उसकी पहले फोटो खीचेंगी और फिर उसे इंस्ट्राग्राम में पोस्ट करेगी तब उसे खाएगी। अभी दोनों के लिए चॉकलेट और आइसक्रीम लाई तो उसे भी इंस्ट्राग्राम में पोस्ट किया है। जब भी कोई ड्रेस लाओ तो पहले इंस्ट्राग्राम में पोस्ट करेगी फिर उसे पहनेगी।
बेटा का शौक उससे अलग है वह लैपटॉप में लगा रहेगा। या तो गेम खेलेगा या फिर कोई कार्टून देखता रहता। बीच-बीच में पेंटिंग भी करता रहता है। वह अभी कोडिंग भी सीख रहा है। उसे पेंटिंग, ड्रॉइंग और क्ले आर्ट के साथ ही लिखने का भी शौक है, इन सभी गतिविधियों को कभी-कभार मैं अपने ब्लॉग के 'बच्चों का कोना' में पोस्ट करती हूँ।
बहुत कुछ है बताने को लेकिन अभी होली है न , इसलिए थोड़ा बहुत गुजिया, नमकीन, चिप्स भी बनाना है, इसलिए होली की शुभकामनाएं सभी को।
फिर मिलती हूँ, तब तक आप मेरा यह होली गीत गुनगुनाते रहिए
सखि! घर आयो कान्हा मेरे, खुशी से होली मनाओ री।
झूमती हूँ खुशी के मारे, तुम संग-संग मेरे झूमो री।।
उछलती कूदती मचलती, कभी खुशी से झूम उठती,
भूलकर अपना बिच्छोह, पल-पल प्रिय गले लगती।
कभी प्रिय गले लगती, कभी खुशी के आसूं बहाती,
कभी झूम-झूम, घूम-घूम कर गली-गली घूम आती।।
गली-गली जाकर कहती, तुम संग मेरे झूमो री।
सखि! घर आयो कान्हा मेरे,खूब रंगोली सजाओ री।।
गए जब प्रियतम दूर मुझसे नित बैचेन रहती थी,
प्रिय मिलन की बेला को, नित आतुर रहती थी।
अब सम्मुख कान्हा मेरे, नजरें उनसे चुराती हूँ,
जताकर प्रेम उन्हीं से, गीत सुमंगल गाती हूँ।
गा रही हूँ खूब खुशी के मारे, तुम संग मेरे गाओ री।
सखि! घर आयो कान्हा मेरे, खुशी के रंग बरसाओ री।।