आज भले ही होली की छुट्टी थी लेकिन अपनी छुट्टी कहाँ? सुबह से ही बच्चों की फरमाइश कि ये बनाकर खिलाओ, वो बनाकर खिलाओ के बीच होली की उधेड़बुन में भूली-बिसरी होली के रंगों में डूब हिचकोले खाती रही। दिन में बिल्डिंग के कुछ लोगों के अनुरोध पर उनके साथ छत पर कुछ देर होली मनाने निकली तो वहां बच्चों के हाथ में बड़ी-बड़ी पिचकारी देख बचपन की यादें ताज़ी हो गई। मन में आया कि बच्चों से पिचकारी छुड़वाकर चार मंजिला बिल्डिंग की छत पर रखी पानी की उन टंकियों में रंग घोलकर हुड़दंग मचाकर सभी बिल्डिंग वालों को फुहारों से रंग दूँ, लेकिन जैसे ही उनमें झाँका तो वे बेचारी कड़कती धूप में खुद ही प्यासी नज़र आयी तो मुझे उनपर और अपने पर तरस आने लगा। मैं सोचने लगी कि ऐसे हालात में भला टंकियाँ और पिचकारियाँ किस काम की, होली खेले तो कैसे खेलें? बिना पानी बच्चों को ही नहीं हम बड़ों को भी होली खेलने का कहाँ मजा आता है? टंकियों में थोड़ा-बहुत पानी जरूर था लेकिन यह सोचकर कि कल पानी आएगा भी कि नहीं, सुनिश्चित न होने के कारण हमने 'तिलक होली' खेली, जो आज पानी बचत करने की भी सख्त आवश्यकता बनी हुई है।
आज इस विषय पर सबको गहन मंथन की आवश्यकता है कि 'जल की एक-एक बूँद कीमती है, 'जल बचाओ', जंगल बचाओ' , जल ही जीवन है' बिन पानी सब सून' - ये उक्तियाँ अब मात्र नारे नहीं बल्कि जीवन की आवश्यकता बन गई हैं। जल संसाधनों के अत्यधिक दोहन से जल-आपूर्ति आज के युग की गंभीर समस्या बन गयी है। अब वातानुकूलित कमरों की बैठकों और सेमिनार में पानी की तरह पैसा बहाते हुए मिनरल वाटर और चाय-कॉफ़ी की चुस्कियों के साथ गंभीर मुद्रा में बड़ी-बड़ी बातें, घोषणाएं और वादे करने वालों की खबर लेने के लिए सबको आगे आना होगा। बिना एकजुट होकर जागरूक न होने से इस समस्या से निजात नहीं मिल सकती है। हमें अब यह समझ लेना बहुत जरुरी है कि इस समस्या के लिए सिर्फ सरकार व उसके नुमाईंदे या कोई वर्ग विशेष ही जिम्मेदार नहीं है, बल्कि गाहे-बगाहे हम लोग भी तो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से जाने-अनजाने जिम्मेदार हैं। तालाबों, कुओं का गहरीकरण, झील, बावड़ी व पोखरों के जल को प्रदूषण मुक्त कराने हेतु हम स्वयं कितने जागरूक हैं, यह बताने की बात नहीं! गाँव व शहर से सभी लोगों को जल के स्रोत में गंदें पानी, कागज़, पोलीथिन, सड़े-गले पौधे और कूड़े-कचरे का ढेर जमा करते देख हम कितना चेत पायें हैं, यह आये दिन हमारे घरों में नल के माध्यम से आने वाले प्रदूषित जल, जो हमारे लिए अमृततुल्य है, आज प्रदूषित होकर मनुष्य तो क्या अपितु जीव-जंतुओं के लिए भी प्राणघातक बनता जा रहा है।
शायद यह समस्या आज भले ही विकराल न दिखती हो लेकिन आए दिन घर में पानी की समस्या के चलते और भीषण गर्मी में लोगों को पानी के लिए इधर-उधर मारे-मारे भटकते, लड़ने-मरने की खबर भर से रोंगटे खड़े हों उठते हैं। यह सोचकर तो और भी बुरा हाल होता है कि कहीं समय रहते यदि जल संकट के प्रति हम सचेत और दृढ संकल्पित होकर आगे नहीं आये तो वैज्ञानिक आइन्स्टीन की कही बात कहीं सच न हो जाय कि तीसरा महायुद्ध चाहे परमाणु अस्त्रों से लड़ लिया जाय पर चौथा महायुद्ध यदि होगा तो पत्थरों से लड़ा जायेगा और इससे एक कदम आगे बढ़कर नास्त्रे [Michel de Nostredame] ने भविष्यवाणी की थी कि चौथा महायुद्ध पानी के लिए लड़ा जाएगा? यदि इस भविष्यवाणी को झुठलाना है तो होली ही नहीं अपितु हर समय पानी की एक-एक बूँद बचाने के लिए सबको प्रेरित करते रहना चाहिए।
इसके लिए मैं तो तैयार हूँ, क्या आप भी तैयार हैं? सोचिए और गुनगुनाते रहिए -
पानी रे पानी तेरा रंग कैसा
जिसमें मिला दो लगे उस जैसा
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