आज दैनन्दिनी के लिए मेरी एक कविताई -
यहाँ-वहाँ, जहाँ-जहाँ देखो एक फौज ऐसी मिलती है
चोरी-चुपके सामने आकर जो अपनी छाप छोड़ती है
ये फौज पहले कम थी, पर आज बढ़ती जा रही है
जो दीन-ईमान वालों पर बहुत भारी पड़ रही है
आप कहोगे कैसी फौज? इनका निवास है कहाँ
ये फौज है उन चमचों की जिनका विचित्र जहाँ
ये वो वाले फौजी कहाँ जिनके पास रहती बंदूक
इनके पास सदा रहता चतुर-बाण-युक्त संदूक
ये बिना धनुष के जब चला देते किसी पर बाण
तब कहाँ लगा निशाना मिलता नहीं कोई प्रमाण
कठोर बाण और अचूक होता है इनका निशाना
जिस पर साध ले उसका मुश्किल होता बच पाना
खुशामत जिनकी चाकरी, नारद जैसा जिनका काम
रखते सलामत बोस और उनका कल्पवृक्ष सा धाम
सुबह घर से निकलकर ये सीधे बोस के घर जाएंगे
चाय-कॉफी की चुस्की संग दो-चार को निपटा आएंगे
रहती कृपा बोस की तो सदा ही फ़ोकट का खाते हैं
करके जी-हुज़ूरी बोस की चैन की बंसी बजाते हैं
काम निकालते वक्त ये चिड़ियों सा चहकते हैं
मौका मिला तो शेर नहीं तो बगुले भक्त रहते हैं