आज सुबह-सुबह जब घूमने निकली तो हमारा रॉकी भी मेरे साथ चल पड़ा। रॉकी हमेशा कहीं भी घर से निकलो नहीं कि वह बाहर साथ चलने को तैयार बैठा मिलता है। ऐसा लगता है जैसे उसे पहले से भी भनक लग जाती है। सुबह-सुबह तो वह हर दिन दरवाजे पर दस्तक देना कभी नहीं भूलता है। जब बच्चों को छुट्टी होती है तो तब सुबह का घूमना हो जाता है, लेकिन जब छुट्टी नहीं होती तो फिर उसे डाँट लगाना मजबूरी बन जाती है। बेचारा जानवर थोड़ी समझता है कि कब घूमने जाने है कब नहीं। उसे स्कूल और ऑफिस तो जाना नहीं पड़ता इसलिए मुँह उठाये हर समय तैयार बैठा रहता है। रास्ते में कई उसके बहुत से बिरादरी वाले मिलते हैं लेकिन वह कुछ तो घुड़क कर, कुछ को गुरा कर तो किसी को दौड़ा भी लेता है और फिर मेरे साथ हो लेता है। आज भी जब हम श्यामला हिल्स से वापस घूमकर आ रहे थे तो रास्ते में डिपो चौराहे में मेरी भाभी रहती है तो मैंने सोचा थोड़ी देर उनसे मुलाकात करती चलूँ। अभी उनकी बिल्डिंग के गेट से अंदर घुसे ही थे कि रॉकी दौड़ लगाकर वहां खड़े मोटर सायकिल और कार के नीचे कुछ सूँघने लगा। वह एक-दो कार के नीचे देखने की बाद जैसे ही अगली कार के नीचे झाँक रहा था तो उसके नीचे से एक बिल्ली गुर्राते हुए बिजली की तरह निकली और उसपर टूट पड़ी। अचानक हुए हमले से वह बुरी तरह घबरा गया। मैं भी हक्की-बक्की उसे देखते ही रह गयी। रॉकी डरकर दौड़कर मेरे सामने खड़ा हो गया। अब मेरे सामने एक तरफ बिल्ली और दूसरी तरफ बिल्ली। एक इधर से गुर्रा रहा था तो दूसरा दूसरी तरफ से। मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था। हमारा रॉकी भले ही दो-चार अच्छे खासे कुत्तों की खाट खड़ी करने में माहिर है लेकिन यहाँ एक बिल्ली के सामने उसकी हवा बंद देख मुझे आश्चर्य हुआ। उनका गुराना सुनकर भाभी-भैया आये तो उन्होंने जैसे-तैसे उन्हें अलग किया। उन्होंने मुझे बताया कि यहाँ कार के नीचे बिल्ली के दो छोटे-छोटे बच्चे रहते हैं, जो कभी-कभार उनके घर में भी घुस आते है। बिल्ली अपने बच्चों का इतना ध्यान रखती हैं कि वह खूंखार से खूंखार आवारा कुत्ते को गेट के बाहर खदेड़कर ही दम लेती है। पांच-दस मिनट बैठने के बाद जब हम जैसे-तैसे छुपते-छुपाते वहां से सकुशल निकले तो मन को शांति मिली।
घर आने तक मैं उस बिल्ली के रौद्र रूप के बारे में सोचती रही। मैं सोचने लगी हम इंसानों में अपने बच्चों की देख-रेख तो माँ-बाप दोनों करते हैं लेकिन अधिकांश जानवरों को देखिए उनके लिए केवल उनकी माँ ही उनके बड़े होने तक पूरी देख-रेख करती है। हम इंसानों की तरह वह अपने बच्चों से कोई अपेक्षा नहीं रखती है, फिर भी वे उनके लिए अपनी जान तक लड़ा देती हैं, उन पर आंच नहीं आने देती हैं। क्या आपको नहीं लगता कि कई मामलों में वह हमसे बहुत आगे की सोच रखते हैं?
फिर मिलते हैं, तब तक गुनगुनाते रहिए -
तू कितनी अच्छी है तू कितनी भोली है
प्यारी-प्यारी है ओ माँ, ओ माँ
ये जो दुनिया है ये बन है काँटों का
तू फुलवारी है ओ माँ, ओ माँ
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