आज ऑफिस में लंच के बाद जब थोड़ा टहलने के लिए दूसरी मंजिल से नीचे उतरी तो गेट के सामने हमारे एक बाबू और एक ड्राइवर के बीच जोर-शोर से
बहस चल रही थी। मैंने पहले सोचा कि पास जाकर उन दोनों को टोकूं लेकिन फिर सोचा जरा सुनूं तो आखिर माजरा है इसलिए चुपचाप इधर से उधर धीरे-धीरे उनकी बहस सुनती रही। जब काफी देर तक उन्हें सुनने के बाद भी मेरी समझ में उनकी बहस का कारण पता न चला तो मैं उनके करीब गई और जैसे ही उनसे पूछने वाली थी कि बाबू मुझे देखते ही ड्राइवर की तरह ऊँगली करते हुए बोल पड़ा, 'अरे मैडम आप ही इससे पूछो कि यह हर दिन कुत्तों के लिए बिस्कुट लाकर मेरे समझाने के बाद भी क्यों खिलाता है?" मैं ड्राइवर से पूछती इससे पहले ही वह बोला ,"मैडम क्या कुत्तों को बिस्कुट खिलाना कोई गुनाह है क्या?" उसका इस तरह मुझसे ही सवाल पूछना मुझे बड़ा अटपटा लगा, मैं बोली ,"गुनाह तो नहीं, लेकिन ... "मैं अपनी बात पूरी कर पाती कि वह बाबू को सुनाते हुआ बोला ,"देखा, सुन लिया मैडम क्या कह रही है?" बाबू बोला, " सुना लेकिन तू क्या कभी किसी को अपनी बात पूरी करने देता है क्या?" ड्राइवर तुरंत बोला,'कौन सी बात"
"यही कि मैडम आगे कहना चाह रही थी कि तू कुत्तों को बिस्कुट नहीं खिलाता जहर देता है? क्यों मैडम?" उसने कहा तो मैंने उन्हें समझाया कि हां बात तो ठीक है यदि कुत्तों को मीठे बिस्कुट की जगह रोटी खिलाई जाय तो उन्हें खुजली नहीं होगी और वे दूसरे रोगों से भी बच जाएंगे। मेरी बात सुनकर बाबू तो खुश हुआ लेकिन ड्राइवर धीमे स्वर में 'हाँ मैडम कल से ऐसा ही करूँगा' कहते हुए निकल गया। मैं भी अपने केबिन की ओर चल पड़ी। ,मैंने सोचा चलो ये भी खूब रही।
शेष फिर ..