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उफ़! ये आजकल के बच्चों के नखरे

3 मार्च 2022

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इन दिनों मेरे बेटे का १० वीं के प्री-बोर्ड के पेपर चल रहे हैं।  कल उसका आईटी का पेपर हैं।  आज बड़े सवेरे उसके पंच मित्र मण्डली में से सबसे घनिष्ठ मित्र अश्विन आ धमका।  इतनी सुबह उसे आता देखकर मैं चौंक गई। पूछने पर उसने बताया कि कल आईटी का पेपर है न, कुछ प्रॉब्लम है, इसलिए अर्जित से समझने चला आया।  मैंने उससे कहा चाय-नाश्ता बनाती हूँ, क्या खायेगा तो कहने लगा कुछ भी जो सबके लिए बनाओ वही खा लूँगा। मैंने कहा ठीक है और मैं किचन में चली गई।  दोनों लैपटॉप लेकर पढ़ाई करने बैठ गए। मैंने उन्हें चाय के लिए पूछा तो उन्होंने मना कर दिया। मैं यह सोचकर कि जब तक नाश्ता बनता है तब तक थोड़ा अंकुरित चने, मूँग की दाल, मूंगफली के दानों के साथ अनार, सेब, अँगूर और गाजर मिलाकर उन्हें दे आई, लेकिन जब एक घंटे बाद प्लेट उठाने आई तो मैंने देखा कि उन्होंने उसमें से थोड़ा बहुत ही वह भी बीन-बीन कर खा रखा था। जब मैंने डाँट लगाई तो तब उन्होंने जल्दी से उसे खाकर प्लेट मुझे दी। मैं सोचने लगी कि ये आजकल के बच्चों के खाने में नखरे, भगवान बचाये इनसे।

मैं बता दूँ कि हमारा सुबह का नाश्ता पोहा, जलेबी, ब्रेड-अंडा, उपमा, ढ़ोकला, इडली सांभर जैसा कुछ नहीं होता।  सुबह का नाश्ता और दिन का खाना एक ही रहता है। मैं और पतिदेव को ऑफिस जाना होता है तो हमें दिन में लंच के लिए रोटी और सब्जी ले जानी होती है। इसलिए रोटी और सब्जी ही जरूर बनती हैं और वही हम सबके लिए सुबह का नाश्ता है और रही बात बच्चों के दिन के भोजन की उसके लिएं सब्जी-रोटी तो रहती ही है, साथ में और दाल-चावल भी बनाकर जाती हूँ। आज भी मैंने नाश्ता के रूप में रोटी और सब्जी में भरवी भिंडी बनाई और बच्चों के लंच के लिए दाल चावल बनाया। जब मैं बेटे और उसके दोस्त के लिए रोटी और भरवी भिंडी ले गई तो उसका दोस्त थाली देखते ही मुँह बिचकाते हुए बोला,'आंटी मैं भिंडी नहीं खाता।" मैंने आश्चर्य से पूछा, " अरे बेटा, अभी कुछ देर पहले तो तूने कहा था कि मैं सबकुछ खाता हूँ, फिर क्या हुआ? " वह कुछ सकुचाते हुए बोला, "आंटी वो क्या है मैं खाता तो सबकुछ हूँ, लेकिन  ....."   वह बोलते-बोलते अटक गया और फिर कुछ याद करने लगा।  मैंने कहा,"  लेकिन क्या बेटा, बता तो?" वह थोड़ा मुस्कुराते बोला,"आंटी वो क्या है कि सब्जी तो मैं सब खा लेता हूँ, लेकिन ४ सब्जी छोड़कर- भिंडी, गोभी, करेला और लौकी। " मुझे उसकी बात सुनकर हँसी आयी,  मैंने फिर पूछा, "बेटा, अगर ये चार सब्जी तू छोड़ देता है तो फिर कौन से सब्जी  खाता है। " तो वह जोर से हँसकर बोला,"कद्दू, कद्दू मुझे बहुत पसंद है।" मुझे भी बहुत हँसी आई और मैंने हँसते-हँसते पूछा ,"दाल चावल तो खाता है न?" वह बोला ,"जी आंटी, वह तो मैं खूब खाता हूँ।" यह सुनकर मुझे बड़ी राहत मिली कि चलो दाल-चावल तो खाता है, नहीं तो बेचारे को क्या नाश्ता देती। मैंने जल्दी बेटे को सब्जी-रोटी और उसे दाल चावल दिए और फिर उन्हें हड़काते हुई ऑफिस निकलने की तैयारी करते-करते उन्हें हिदायत दी कि ,' पूरा खाना खाना, कुछ छोड़ना नहीं।  मैं ऑफिस जाकर फ़ोन लगाऊँगी तब तक खाना ख़तम हो जाना चाहिए। उन्होंने अपनी-अपनी मुंडी हिलाकर 'हाँ' में  संकेत दिया तो मैं ऑफिस के लिए रवाना हो गई। 

चलते-चलते सोच रही थी कि उफ़ ये ' आजकल के बच्चों के नखरे'    और एक हमारा जमाना था, अब पूछो मत ...........  दिल दुःखता है कहते हुए भी ................. 

तो आज इतना ही  फिर मिलते है, तब तक आप गुनगुनाते रहिए -

बच्चे मन के सच्चे
सारी जग के आँख के तारे
ये वो नन्हे फूल हैं जो
भगवान को लगते प्यारे 

.......................... 

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रचनाएँ
दैनन्दिनी : आस-पास की दुनिया
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इस पुस्तक को आप कुछ अपनी और कुछ बाहर की बातों का लेखा-जोखा समझ लीजिए।
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