आज की दैनंदिनी केवल और केवल पुस्तक लेखन प्रतियोगता में समिल्लित मेरी 'गरीबी में डॉक्टरी' कहानी संग्रह में संकलित १० कहानियों में से मुख्य कहानी 'गरीबी में डॉक्टरी' के मुख्य पात्र 'एक और मांझी- धर्मेन्द्र मांझी' के बारें में , जो कोई कोरी कपोल कल्पित कहानी का पात्र नहीं, बल्कि समाज के लिए एक जीता जागता प्रेरणा स्रोत है।
'माउंटेन मैन' दशरथ मांझी की तरह ही मेरी दृष्टि में "एक और मांझी" है- 'धर्मेन्द्र मांझी'' जिसने पहाड़ काटने जैसा कठिन शारीरिक परिश्रम तो नहीं क्या, लेकिन उसने जिस तरह बचपन से लेकर आज अपनी 32 वर्ष की आयु तक अपनी जिद्द, जुनून और दृढ़ इच्छाशक्ति के दम पर जैसा 'मानसिक श्रम' कर दिखाया, उसे किसी बहुत बड़े पहाड़ को काटकर कोई लंबी-चौड़ी सड़क बनाने से कम आँकना उचित नहीं होगा। उसने अपनी घोर विपन्नता, अधकचरी शिक्षा, रूढ़िवादी सोच, सामाजिक विडंबनाओं और तमाम सांसारिक बुराइयों को ताक में रखकर पहले माँग-माँगकर और फिर शासन-प्रशासन तंत्र के व्यूह रचना को भेद कर जिस तरह अपने बचपन से देखते आ रहे 'डॉक्टर बनने के सपने' को अपने कठोर परिश्रम, निरंतर अभ्यास और सहनशील प्रवृत्ति के साथ ही सर्वथा विकट परिस्थितियों में अदम्य साहस व दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर साकार कर एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया, वह उन सैकड़ों-लाखों परिवार के बच्चों के लिए प्रेरणा का एक ऐसा श्रोत है, जो घोर गरीबी के चलते अपने भविष्य के सुनहरे सपनों की तिलांजलि देने की सोच रखते हैं। "
तो देर किस बात की? इससे पहले कि कोई आपको "एक और मांझी" 'धर्मेन्द्र मांझी'' के बारे में बताए, क्या आप ऐसे 'जिद्द, जुनून और धुन के पक्के मांझी' से एक बार नहीं मिलाना चाहेंगे? जो उन हज़ारों-लाखों तमाम गरीब और कमजोर बच्चों के लिए 'एक प्रेरणा स्रोत' है, जो अपनी मंजिल तक पहुँचने से पहले ही अपनी गरीबी, कमजोरी, धैर्य, साहस, दृढ़ इच्छाशक्ति और लगन की कमी का कारण बनकर कुछ कदम चलने के बाद ही वहीँ ठहर कर रह जाते हैं।
तो आज मैं मिलाती हूँ आपको 'एक और मांझी' से जो आपसे महज एक क्लिक की दूरी पर है। जानिए कैसे उसने अपनी घोर गरीबी के बीच एक छोटे से गांव से भागते हुए भोपाल पहुंचकर फटे पुराने कपड़े पहन और नंगे पाँव चल-चल कर अपनी 'डॉक्टर बनने के जिद्द' के चलते लोगों से पहले माँग-माँग कर और फिर शासन-प्रशासन तंत्र की अभेद व्यूह रचना को भेदकर अपनी २७ वर्ष की तपस्या के बल पर अपने बचपन से देखते आये 'डॉक्टर बनने के सपने' को साकार कर समाज के सामने एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया है।
आज और अभी मिलिए हमारे पुत्र सदृश गुदड़ी के लाल "एक और मांझी" 'धर्मेन्द्र मांझी'' से, जो आपसे मिलने के लिए "गरीबी में डॉक्टरी" में तैयार बैठा है। समीक्षा में अपने विचार व्यक्त करना न भूलें।