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गरीबी में डॉक्टरी के बारे में

4 मार्च 2022

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आज की दैनंदिनी केवल और केवल पुस्तक लेखन प्रतियोगता में समिल्लित मेरी 'गरीबी में डॉक्टरी'  कहानी संग्रह में संकलित १० कहानियों में से मुख्य कहानी 'गरीबी में डॉक्टरी' के मुख्य पात्र 'एक और मांझी- धर्मेन्द्र मांझी'  के बारें में , जो कोई कोरी कपोल कल्पित कहानी का पात्र नहीं, बल्कि समाज के लिए एक जीता जागता प्रेरणा स्रोत है।

'माउंटेन मैन' दशरथ मांझी की तरह ही मेरी दृष्टि में  "एक और मांझी"  है- 'धर्मेन्द्र मांझी'' जिसने पहाड़ काटने जैसा कठिन शारीरिक परिश्रम तो नहीं क्या, लेकिन उसने जिस तरह बचपन से लेकर आज अपनी 32 वर्ष की आयु तक अपनी जिद्द, जुनून और दृढ़ इच्छाशक्ति के दम पर जैसा 'मानसिक श्रम' कर दिखाया, उसे किसी बहुत बड़े पहाड़ को काटकर कोई लंबी-चौड़ी सड़क बनाने से कम आँकना उचित नहीं होगा। उसने अपनी घोर विपन्नता, अधकचरी शिक्षा, रूढ़िवादी सोच, सामाजिक विडंबनाओं और तमाम सांसारिक बुराइयों को ताक में रखकर पहले माँग-माँगकर और फिर शासन-प्रशासन तंत्र के व्यूह रचना को भेद कर जिस तरह अपने बचपन से देखते आ रहे 'डॉक्टर बनने के सपने'  को अपने कठोर परिश्रम, निरंतर अभ्यास और सहनशील प्रवृत्ति के साथ ही सर्वथा विकट परिस्थितियों में अदम्य साहस व दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर साकार कर एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया, वह उन सैकड़ों-लाखों परिवार के बच्चों के लिए प्रेरणा का एक ऐसा श्रोत है, जो घोर गरीबी के चलते अपने भविष्य के सुनहरे सपनों की तिलांजलि देने की सोच रखते हैं। "

तो देर किस बात की? इससे पहले कि कोई आपको   "एक और मांझी" 'धर्मेन्द्र मांझी''   के बारे में बताए, क्या आप ऐसे 'जिद्द, जुनून और धुन के पक्के मांझी' से एक बार नहीं मिलाना चाहेंगे? जो उन हज़ारों-लाखों तमाम गरीब और कमजोर बच्चों के लिए 'एक प्रेरणा स्रोत' है, जो अपनी मंजिल तक पहुँचने से पहले ही अपनी गरीबी, कमजोरी, धैर्य, साहस, दृढ़ इच्छाशक्ति और लगन की कमी का कारण बनकर कुछ कदम चलने के बाद ही वहीँ ठहर कर रह जाते हैं।

तो आज मैं मिलाती हूँ आपको 'एक और मांझी' से जो आपसे महज एक  क्लिक की दूरी पर है। जानिए कैसे उसने अपनी घोर गरीबी के बीच एक छोटे से गांव से भागते हुए भोपाल पहुंचकर फटे पुराने कपड़े पहन और नंगे पाँव चल-चल कर अपनी  'डॉक्टर बनने के जिद्द' के चलते लोगों से पहले माँग-माँग कर और फिर शासन-प्रशासन तंत्र की अभेद व्यूह रचना को भेदकर अपनी २७ वर्ष की तपस्या के बल पर अपने बचपन से देखते आये 'डॉक्टर बनने के सपने' को साकार कर समाज के सामने एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया है।

आज और अभी मिलिए हमारे पुत्र सदृश गुदड़ी के लाल  "एक और मांझी" 'धर्मेन्द्र मांझी''   से, जो आपसे मिलने के लिए  "गरीबी में डॉक्टरी"   में तैयार बैठा है। समीक्षा में अपने विचार व्यक्त करना न भूलें।

https://shabd.in/books/10082107 

सादर निवेदन-कविता रावत    

SHAILENDRA SINGH NEGI

SHAILENDRA SINGH NEGI

बहुत सराहनीय पुस्तक है ज्यादा ज्यादा से पढ़े

9 मार्च 2022

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रचनाएँ
दैनन्दिनी : आस-पास की दुनिया
5.0
इस पुस्तक को आप कुछ अपनी और कुछ बाहर की बातों का लेखा-जोखा समझ लीजिए।
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शिव-पार्वती की बारात में

1 मार्च 2022
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आज महाशिवरात्रि है और मैं बचपन से ही उपवास रखकर भोलेशंकर की पूजा आराधना करती आ रही हूँ। आज सुबह छुट्टी का दिन था और मेरे लिए यह देर तक सोते रहने का दिन होता है। इसलिए जब-जब सरकारी छुट्टी रहती हैं,

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ऑफिस वाला जन्मदिन

2 मार्च 2022
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कल शिव बारात में चटक धूप भरी दुपहरी में साबू दाने की खीर और खिचड़ी के साथ ठंडाई के सहारे रास्ते भर ढोल-नगाड़े और डीजे पर बड़े जोर-शोर से बजने वाले शिव भक्ति गीतों में झूमते-झामते मन तरंगित हुआ तो आज

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उफ़! ये आजकल के बच्चों के नखरे

3 मार्च 2022
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इन दिनों मेरे बेटे का १० वीं के प्री-बोर्ड के पेपर चल रहे हैं।  कल उसका आईटी का पेपर हैं।  आज बड़े सवेरे उसके पंच मित्र मण्डली में से सबसे घनिष्ठ मित्र अश्विन आ धमका।  इतनी सुबह उसे आता देखकर मैं च

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गरीबी में डॉक्टरी के बारे में

4 मार्च 2022
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आज की दैनंदिनी केवल और केवल पुस्तक लेखन प्रतियोगता में समिल्लित मेरी 'गरीबी में डॉक्टरी'  कहानी संग्रह में संकलित १० कहानियों में से मुख्य कहानी 'गरीबी में डॉक्टरी' के मुख्य पात्र 'एक और मांझी- धर

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बगुले भक्तों की फौज

6 मार्च 2022
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आज दैनन्दिनी के लिए मेरी एक कविताई -   यहाँ-वहाँ, जहाँ-जहाँ देखो एक फौज ऐसी मिलती है  चोरी-चुपके सामने आकर जो अपनी छाप छोड़ती है ये फौज पहले कम थी, पर आज बढ़ती जा रही है  जो दीन-ईमान वालों पर बहुत

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मेरे और उनके बच्चों में अंतर

9 मार्च 2022
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आज सुबह बच्चों की छुट्टी थी तो सोचा थोड़ा घूम-फिर के आ जाऊँ। थोड़ा देर से जागी थी इसलिए घर से थोड़ी दूर ही एक पार्क में टहलने लगी। वहां एक सज्जन भी टहल रहे थे। टहलते-टहलते मैंने देखा कि पार्क के एक कोन

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सुबह-सवेरे की दौड़-भाग

10 मार्च 2022
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कल रात पहले घर के सभी सदस्यों के लिए उनकी पसंद का खाना बनाने, खिलाने और फिर ऑफिस का कुछ काम निपटाने में बहुत समय लगा तो काफी देर रात सो पाई तो आज सुबह जरा देर से आँख खुली। मेरे मिस्टर तो जाने कब जल्दी

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ये भी खूब रही

11 मार्च 2022
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आज ऑफिस में लंच के बाद जब थोड़ा टहलने के लिए दूसरी मंजिल से नीचे उतरी तो गेट के सामने हमारे एक बाबू और एक ड्राइवर के बीच जोर-शोर से   बहस चल रही थी। मैंने पहले सोचा कि पास जाकर उन दोनों को टोकूं लेकिन

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अमीर-गरीब के अपने-अपने हिस्से

14 मार्च 2022
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आज सुबह ऑफिस जाते समय जब विशिष्ट प्रतिष्ठित गणमान्य कहलाने वाले नागरिकों के क्षेत्र से गुजर रही थी तो अचानक एक नाले की चमक-दमक देख मेरी अँखियाँ चौंधिया के रह गई। जहाँ एक ओर भीड़-भाड़ वाली बस्तियों म

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बच्चों के संग होली के रंग

17 मार्च 2022
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आज दोहरी ख़ुशी मिली। पहली मेरे बेटे का 10 वीं सीबीएसई बोर्ड के फर्स्ट टर्म के रिजल्ट आया, जिसमें उसने 93 प्रतिशत अंक प्राप्त किये। मैं उससे कहती कि बेटा यदि केवल पढाई पर ध्यान देता तो कम से कम 99 या फ

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होली और पानी बचाने की आवश्यकता

18 मार्च 2022
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आज भले ही होली की छुट्टी थी लेकिन अपनी छुट्टी कहाँ? सुबह से ही बच्चों की फरमाइश कि ये बनाकर खिलाओ, वो बनाकर खिलाओ के बीच होली की उधेड़बुन में भूली-बिसरी होली के रंगों में डूब हिचकोले खाती रही। दिन मे

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माँ सा दूजा कोई नहीं

23 मार्च 2022
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आज सुबह-सुबह जब घूमने निकली तो हमारा रॉकी भी मेरे साथ चल पड़ा। रॉकी हमेशा कहीं भी घर से निकलो नहीं कि वह बाहर साथ चलने को तैयार बैठा मिलता है। ऐसा लगता है जैसे उसे पहले से भी भनक लग जाती है। सुबह-सु

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लड़के क्यों लड़कियों की तरह अपने माँ-बाप की सेवा नहीं कर पाते हैं?

25 मार्च 2022
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जब भी माँ की तबियत ज्यादा ख़राब होती है तो वह मुझे फ़ोन लगाकर बताती हैं। माँ की गाड़ी दवाईयों के भरोसे तो जैसे-तैसे चल ही रही है, लेकिन जब भी वह कुछ उल्टा-सीधा कुछ खा लेती है तो उसे पेट सम्बन्धी तमाम बीम

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मैं नशे में हूँ

27 मार्च 2022
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कल रात जब जब खाना खाकर मेरा बेटा बाहर सड़क पर टहल रहा था तो उसने देखा कि सड़क पर एक महिला जिसकी उम्र यही कोई ३०-३२ के आस-पास रही होगी, वह सड़क पर बैठी रो रही थी। सड़क पर आने-जाने वाले उसे देखकर भी अन

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तब हमारे बड़े-बुजुर्ग भी कम नादान नहीं थे

30 मार्च 2022
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आज सुबह की सैर करते समय हमारे गाँव के एक दादा जी रास्ते में टकरा गए। हम तो उन्हें पहचान नहीं पाए, क्योंकि कई वर्ष से उन्हें देखा नहीं था। वह तो उनके साथ उनका पोता था, जो यहीं भोपाल में रहता है, उसने प

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