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संघर्ष {भाग~1}

11 नवम्बर 2021

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हे भगवान! आज फिर से लेट हो गया  हाथ मे बंधी घडी को देखती है जो 11बजे का समय बता रही है और फिर अपने आप मे ही बडबडाने लगती है। लगता है मेरा करियर शुरू होने से पहले ही खत्म हो जायेगा। पर यह बात मेरे घर वालो को कौन समझाए? उनको सारे काम मुझसे ही करवाने है घर की सदस्य कम नौकरानी ज्यादा लगती हुं।
ऊपर से यह बॉस पता नही इनको भी क्या सुझी है कि एक बुढिया का इंटरव्यू लेना है। सोचा था रेडियो जॉकी बनकर वरुण धवन, रणबीर सिंह जैसे हैंडसम, डेशिंग हीरो के इंटरव्यू लुंगी पर नही बॉस ने इन तीन महिनो मे पहली बार मुझे किसी का इंटरव्यू लेने की जिम्मेदारी दी है वो भी एक बुढिया का। कान्हा जी अब तो आप ही यह इंटरव्यू ठीक से करवा दो ताकि अगली बार मुझे वरुण धवन का इंटरव्यू लेने का मौका मिल सके।

वो अपने आप मे ही बडबडाती हुई तेजी चली जा रही है। चौराहे पर आकर वो रिक्शा का इंतजार करने लगती है। तभी सामने से एक अॉटो रिक्शा आती है वो जोर से चिल्लाती है रिक्शा रिक्शा...। रिक्शा उसके पास से गुजरती है लेकिन रिक्शावाला ना मे गर्दन हिलाता है और आगे की ओर बढ जाता है। ऐसा ही दो- तीन रिक्शे वाले करते है।

लडकी- जब जरुरत नही होती तब ये रिक्शे वाले बिन बुलाये मेहमान की तरह चले आते है और पुछने लगते है- दीदी! कहां जाएगी? और जब जरुरत होती है तो रिश्तेदारो की तरह मुंह छिपाकर भाग जाते है। जब फ्री होंगी तब इन सबके खिलाफ कंप्लेंट करुंगी। समझते क्या है अपने आपको?

तभी सामने से एक रिक्शा आती है और वो रिक्शा के लगभग सामने ही खडी हो जाती है। रिक्शा वाला एकदम से ब्रेक लगाता है।

रिक्शावाला- क्या बहन जी मरना ही है तो ट्रेन के नीचे आकर मरो। मेरे रिक्शे के नीचे मरकर मेरा धंधे मे क्यो खोटी कर रही हो? (रिक्शावाला रिक्शे से बाहर निकलते हुए बोलता है।)

लडकी- शुभ शुभ बोलो मै क्यो मरुं? मरे मेरे दुश्मन। अभी तो मुझे किसी की किस्मत भी फोडनी है।(कहकर शर्माते हुए अपना दुपट्टा मुंह मे लेकर चबाने लगती है।)

रिक्शेवाला- ठीक है बहन जी जिसकी किस्मत फोडनी हो फोडो पर पहले मेरे रिक्शा के सामने से हटो।

लडकी- ऐसे कैसे हटुं? मुझे सिविल लाइन्स जाना है वहां चलोगे? ना कि तो सोच लेना अभी पुलिस को कॉल लगाती हुं। ( अपना मोबाईल उसके सामने करते ही और लगभग उसे आदेश देती हुयी कहती है।)

रिक्शावाला- अरे...! बहन जी ना क्यूं कहेंगे। हम तो खुद सुबह से सवारी ही ढुंढ रहे है। (नरम एवं खुशी के भाव से बोलता है।)

लडकी- वाह यह तो बहुत अच्छी बात है। चलो फिर सिविल लाइन्स।( रिक्शा के सामने से हटते हुए कहती है।)

रिक्शावाला- हम्म पर बहन जी यहां से सिविल लाइन्स का 150 रुपया किराया लगेगा पहले ही बता दे रहे है बाद मे हमे कोई झिकझिक नही चाहिए।

लडकी- क्या कहा 150.....! रुपया तुम्हारा रिक्शा है या हवाईजहाज इतना महंगा किराया।

रिक्शावाला- बहन जी बिल्कुल वाजिब पैसे बताये है। आप चाहो तो किसी और से पुछ लो।

लडकी- फिर भी भईया सिविल लाइन्स के 150 रुपये कौन लेता है? ठीक- ठीक 80 रुपये लगा लो।

रिक्शावाला- बहन जी आपको रिक्शा मे सवारी करनी है सब्जी नही खरीदनी जो आप अपनी मनमर्जी से भाव- तोल कर रही हो। हम तो क्या पुरे जयपुर मे कोई भी रिक्शेवाला आपको 80 रुपये मे यहां से सिविल लांइस नही लेकर जायेगा।

लडकी- अच्छा सबने मिलकर संगठन बना रखा है जनता को लुटने के लिए।

रिक्शावाला- बहन जी सुबह- सुबह मेरा धंधा खोटी मत करो। मेरी मां मुझे माफ कर दो कहकर रिक्शा लेकर तेजी से निकल जाता है।

लडकी- सुनो! सुनो! कहकर चुप हो जाती है।

दो- तीन रिक्शावाले और आते है पर कोई भी सिविल लांइस के 150 रुपये से कम पैसे लेने को तैयार नही होता आखिर थकहार कर वो निश्चित करती है अब जो रिक्शा आयेगी उसमे ही बैठ जायेगी। तभी एक रिक्शा आती है वो एकदम से चलती ही रिक्शा मे बैठ जाती है।

रिक्शावाला- दीदी हम सवारी नही लेंगे आप उतर जाओ।

लडकी- मैने तुम से कुछ पुछा?

रिक्शावाला- नही दीदी।

लडकी- तो चुपचाप सिविल लाइंस चलिए।

रिक्शावाला- दीदी पर हमारी बात तो सुनिए।

लडकी- बात- वात बाद मे पहले चलिए।

रिक्शावाला- दीदी हम नही जायेंगे।

लडकी- ठीक है आप नही जायेंगे तो सामने वो ट्रेफिक पुलिस वाले को देख रहे है ना आप मै उनको जाकर बोल देती हुं कि आप बिना लाइसेंस के रिक्शा चला रहे है।

रिक्शावाला घबरा जाता है वो एक नजर से पुलिस वाले को देखता है फिर वापस मुडकर मायुसी से पुछता है- दीदी आपको कैसे पता कि आज हम अपना लाइसेंस घर भुल आये है।

लडकी-वो मुस्कुराती है और सामने स्टैंड पर लगे मोबाईल की ओर इशारा करके कहती है कुछ सेंकेड पहले आपके व्हाट्सप्प पर आपकी बेटी का मैसेज हाईलाईट हो रहा था। जिसमे लिखा है की आप अपना लाइसेंस घर भुल गये है। अब चलिए जल्दी वरना पुलिस को बुलाऊं?

रिक्शावाला निराशा से रिक्शा स्टार्ट करता है और चलने लगता है अभी रिक्शा चलते हुए पांच मिनट ही हुए थे कि रिक्शा एकदम से रुक जाती है।

लडकी- क्या हुआ भईया रिक्शा क्यो रोक दी?

रिक्शावाला- दीदी रोकी नही अपने आप रुक गई है दरअसल इसमे पेट्रोल खत्म हो गया है। हम पेट्रोल भरवाने ही जा रहे थे कि बीच मे आपने रोक लिया।

लडकी- क्या आपको पहले बताना चाहिए था ना कि रिक्शा मे पेट्रोल नही है?

रिक्शावाला- दीदी हम कब से बताने की कोशिश कर रहे है पर आप हमारी सुनो तब ना ऊपर से पुलिस की धमकी और दे डाली। अब आप ही बताओ मरता क्या नही करता।

लडकी को अपनी गलती का अहसास होता है वो कहने लगती है- माफी चाहुंगी भईया मुझे सिविल लाइन्स जाने की जल्दी है और कोई रिक्शा मिल नही रहा था सो मै आपके रिक्शा मे बैठ गयी। धमकी देने के पीछे मेरा मकसद आपको परेशान करने का नही था।

रिक्शावाला- कोई बात नही दीदी होता है कभी- कभी पर आपको यहां तो कोई रिक्शा मिलेगी नही और रिक्शा स्टैंड पर जाने के लिए आपको वापस वही जाना पडेगा। (चिंतित स्वर मे कहा।)

लडकी- हम्म कोई बात नही मै चली जाऊंगी आप रिक्शा मे पेट्रोल भरवाईये और घर जाकर लाइसेंस ले लीजिए। बिना लाइसेंस वाहन चलना कानुनी अपराध है।

रिक्शावाला- जी दीदी हम भी कभी बिना लाइसेंस के गाडी नही चलाते पर आज गलती से घर भुल आए। आप बुरा नही माने तो मै अपने दोस्त को फोन कर दुं वो भी यही रिक्शा चलाता है आपको जल्दी पहुंचा देगा।

लडकी- हम्म ट्राय करके देखिए।

रिक्शावाला फोन पर किसी से बात करता है कॉल कट करके कहने लगता है दीदी वो यही है बस पांच मिनिट मे आ जायेगा यहां तब तक मै रुकता हुं यहां।

लडकी- शुक्रिया भईया पर आप जाये मै इंतजार कर लुंगी उनका।

रिक्शावाला- नही दीदी आने दीजिए उसको बस पांच मिनिट की ही तो बात है।

लडकी- ओके कहकर उससे उसके बारे मे पुछने लगती है लगभग पांच से छह मिनिट मे एक रिक्शा आकर उनके पास रुकती है। वो उस रिक्शावाले के दोस्त की ही रिक्शा होती है वो लडकी दुसरे रिक्शा मे बैठती है और पहले वाले रिक्शावाले का शुक्रिया अदा करके उसे कुछ पैसे देती है पर रिक्शावाला लेने से मना कर देता है। वो काफी कोशिश करती है पर रिक्शावाला नही मानता है अंत मै वो हार मान जाती है और रिक्शावाले को पैसे की जगह उपहार मे दुआंऐ देती है। रिक्शा चल पडती है सिविल लाइन्स की ओर।

वो घडी मे वापस समय देखती है अब 12.15 बज चुके है। उसे एकबार फिर लेट होने का डर सता रहा है। वो मन ही मन कहने लगती है कितनी बार कहा है पापा से की उसे एक स्कुटी दिलवा दो ताकि रोज रोज ये रिक्शा ढुंढने के झंझट से तो बच जाए पर नही पापा को तो मुझे जीवन मे सिर्फ एक ही फॉरविलर कार देनी है वो भी मेरी शादी के दहेज मे। अजीब है मिडिल क्लास फैमिली के रीति रिवाज भी जिस लडकी को मांगने पर पचास रुपये भी नही देते उसी की शादी मे पचास लाख का दहेज दे देते है।

वो बाहर से बिल्कुल शांत है पर अंदर ही अंदर अपने शोर मे सामाजिक कुरीतियो के विरुद्ध लड रही है। ठीक वैसे ही जैसे रिक्शा खाली सुनसान सडक का सन्नाटा चिरते हुए आगे बढी जा रही है अपनी मंजिल की ओर।

रिक्शा सिविल लाइन्स मे आती है। रिक्शावाला- मैडम आ गया सिविल लाइन्स कहां उतरना है आपको?

लडकी उसे एड्रेस समझाती है और रिक्शा आकर एक घर के बाहर रुकता है। वो उसे पैसे देती है रिक्शावाला पैसे लेकर चला जाता है और वो एक नजर आसपास बने मंहगे बांग्लो पर डालती है। जो तरह- तरह के बेश्किमती पत्थरो से सजाये गये है एक से बढकर एक डिजाईन और आसामान को छुती बहुमंजिला इमारते है। फिर खाली पडी सुनसान सडको को देखती है जहां दुर- दुर तक देखने पर ही इंसान नही नजर आता। आमतौर पर अमीर रिहाशिय इलाको मे इंसानो का कम और पैसे का रुतबा ज्यादा नजर आता है इसके विपरीत मिडिल क्लास रिहाशिय इलाको मे भले ही पैसे कम हो पर सडको पर हंसते- खिलखिलाते बच्चो के चेहरे जरुर नजर आ जाते है वहां आज भी पैसे से ज्यादा इंसान का रौब है।

वो सोचती हुई घर की ओर आती है घर की बाहरी दिवारो पर पांरपरिक शेखावटी चित्रकला के चित्र बने हुए है। वहां उसकी नजर एक बहुत ही सुंदर सी नेमप्लेट पर पडती है जिसे देखकर लगता है किसी ने अपने हाथो से बनाई है उस पर लिखा है "नया सवेरा"

आमतौर पर लोग नेमप्लेट पर अपने परिवार के मुखिया का नाम, परिवार मे बडे ओहदे पर कार्यरत सदस्य का विवरण या अपने ईष्ट देव का जिक्र करते है पर यह नेमप्लेट बहुत ही अलग है और इस लिखा नया सवेरा भी। अपने सवालो मे उलझी हुई वो पास मे लगी डोरवेल जो कि किसी मंदिर की घंटी की तरह दिखाई पडती है को बजाती है पर उसमे बजाने के लिए आधुनिक स्विच लगा हुआ है।

डोरवेल मे राजस्थानी लोकगीत "केसरिया बलम आवोनी पधारो म्हारे देश रे" बजने लगता है।

उसे यह सुनकर आश्चर्य होने लगता है कि इतनी मॉडर्न सोसायटी मे रहकर भी कोई हर छोटी से छोटी चीज मे अपनी पांरपरिक संस्कृति को कैसे जींवत रख सकता है। अब उस घर के बारे मे वहां रहने वाले लोगो के बारे मे जानने के लिए उसकी उत्सुकता बढने लगी।

तभी एक व्यक्ति दरवाजा खोलता है। उसकी लम्बाई तकरीबन छह फुट है देखने मे एकदम हष्टपुष्ट उसने सफेद शेरवानी पहन रखी है। उसकी शेरवानी पर पीतल के बटन लगे हुए है जो सोने की तरह चमक रहे है। कमर मे लाल रंग का कपडा कमरबंध की तरह बांध रखा है। सिर पर लाल रंग का साफा बडे ही सलिके से बांध रखा है।
वो अपने दोनो हाथो को जोडकर कहता है- खम्माघणी हुकुम! पधारिये! स्वागत है आपरो नया सवेरा मांये। (उसकी आवाज काफी रौबदार है।)

वो भी अपने दोनो हाथो को जोडकर उसके अभिवादन को स्वीकार करती है और घर के अंदर आती है।
वो व्यक्ति उसे दरवाजे के पास बने जुताघर मे चप्पल उतारने को कहता है।
वो चप्पल उतराती है वही पास मे लगे नल से अपने हाथ धोती है। फिर वो दोनो एक छोटे से गलियारे से होकर एक बडे चौक मे आते है। चौक के बीचो- बीच तुलसी का खुब सुंदर और बहुत ही घना तुलसी का बिडला बना हुआ है। चौक के एक और कृष्ण जी का विशाल मंदिर बना हुआ है तो दुसरी और गार्डन जहां कुछ बच्चे बैठे चित्रकारी कर रहे है।

वो आदमी उसे सामने बने हुए कमरे की ओर ले जाता है। अंदर से कमरा काफी बडा है हॉल की तरह उसमे बैठने के लिए सोफे लगे हुए वो वहां उसे बैठने का इशारा करता है।

वो वहां लगे हुए सोफे पर बैठ जाती है। वो एक नौकर को बुलाता है और चाय नाश्ते का इंतजाम करने को कहता है।

आदमी- राम राम हुकुम म्हारो नाम भवानी सिंह है। बताइए हुकुम यहां कैसे पधारना हुआ? हम आपकी क्या सेवा कर सकते है?

लडकी- जी मेरा नाम स्वाति है। मै सिटी एफएम पर  रेडियो जॉकी के पद पर कार्यरत हुं। मै यहां गायत्री देवी जी का इंटरव्यू लेने आयी हुं। क्या आप उन्हे बुला देंगे।

भवानी सिंह- जे तो थाने घणी चोखी बात सुनायी इंटरव्यु आली। माहांकी मासा ने अपणे जीवन मांय घणा संघर्ष किया से। लोगा ने पतो लगनुं सायें बांके बारां मे।

स्वाति- जी हम भी यही चाहते है कि लोग गायत्री जी के संघर्ष के बारे मे जाने और उनसे प्रेरणा लेकर उनकी तरह कार्य करे।

भवानी सिंह पास मे रखे टेलिफोन को उठाता है फिर किसी से कुछ बात करने लग जाता है। तब तक एक दास चाय नाश्ता लेकर आता है।

भवानी सिहं कहता है- हुकुम आप ये लिजिए चाय नाश्ता करने का इशारा करता है। मासा अबार आवे से। स्वाति पहले मना करती है पर भवानी सिंह के फोर्स करने पर चाय उठा के पीने लगती है।

[क्रमशः]


Jyoti

Jyoti

बढ़िया

31 दिसम्बर 2021

Priya

Priya

बेहतरीन

11 नवम्बर 2021

1
रचनाएँ
संघर्ष
5.0
साहित्य में स्त्री विमर्श एक ऐसा शब्द है जिस पर विचार मंथन हर काल में किया गया है। स्त्री समाज का ऐसा हिस्सा है जिसने अपने जीवन के हर कदम मे अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिए संघर्ष किया है। पितृसत्तामक समाज मे स्त्री को रीति रिवाज की बेडियो मे जकड रखा है। भले ही आज हम इक्कीसवीं सदी मे जी रहे है पर आज भी स्त्री को संघर्ष करना पड रहा है। आज भी कई क्षेत्र ऐसे है जहां महिलाओ को सम्मान, पढने का अवसर, घर से बाहर जाने नही दिया जाता। पर इन सब बंदिशो को तोडकर महिलाओ ने अपने दम पर अपनी पहचान बनायी है और दुनिया को बताया है कि एक स्त्री किसी से कम नही। बस एक ऐसी ही महिला की कहानी है "संघर्ष" जिसने अपनी जिंदगी के हर कदम पर संघर्ष किया। अपने जीवन मे आने वाली चुनौतियो का डटकर सामना किया और एक सशक्त महिला के रुप मे समाज के लिए प्रेरणा बनी। आशा करती हुं आपको यह उपन्यास पसंद आयेगा। उपन्यास पढते समय और पुरा पढने के बाद अपनी प्रतिक्रिया या समीक्षा जरुर व्यक्त किजिएगा।

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