तुमने प्रेम को सौन्दर्य कहा, आकर्षण मात्र... मैंने कहा प्रेम नहीं सिर्फ़ स्पर्श, वह है अनुभूति.. वही जहां देह अपनत्व का भाव चाहती है, जैसे नदी के किनारे के पत्थर का साथ भावनात्मक हाथ.... तुमने प्रेम को शब्द दिए, अनचाही सोच के साथ यूं ही, तुमने कहा कि, प्रेम अब हो चुका, मानसिक रूप से अनाथ..! अविनाश राज और अनुभूति