आज फिर गांव याद आ रहा है
शहर की खुबियां बताने वाला हर शख्स
लौट के फिर अपने गांव जा रहा है
तब ये यादें कहां थी गांव की बातें कहां थी
शहर की खुबियां गांव में बड़े चाव से सुनाते थे
जब भी लौट के शहर से अपने गांव को आते थे
तब तुम बड़े फख्र से खुदको शहरी ही बतलाते थे
गांव में जो भी था सब बेच के शहर खरीदने जाते थे
आज जो मुश्किल वक्त है आया गांव में छुपने आते हो
गांव की टूटी हुई छप्पर के नीचे ही सुख पाते हो
भय का जो माहौल है फैला गांव में ही बच पाते हो
इसीलिए पुरुखों ने कहा है जड़ से कभी न तोड़ो रिस्ता
अपनी मिट्टी कभी न छोड़ो इससे रखना सदा जुड़ाव
आगे किस्मत कब ले पलटी कहां है जीवन का ठहराव
लौट परींदे यही आयेगा जहां पीपल की ठंडी छांव
सबकुछ भूलो सबकुछ पालो याद रहे बस अपना गांव....