शीर्षक--जातिवाद और धर्म की जंजीर
इंसानियत का फैला दो पैगाम,
दुनिया में होगा इसका अच्छा परिणाम,
जातिवाद और धर्म के भेदभाव को,
भूल कर खुद को दे दो इनाम।
न हवाओं पर लिखा है जाति और धर्म,
न खून पे लिखा है जाति और धर्म,
न पानी पे लिखा है जाति और धर्म,
तो फिर क्यों उलझ जाते हैं,
इंसानियत को छोड़कर।
जातिवाद और धर्म के जंजीरों में,
खोल दो ये झूठ का पिंजरा,
तोड़ दो ये झूठी जंजीरे,
सब आजाद हो कर जियो।
इंसानियत का फैला दो पैगाम।.
जातिवाद और धर्म का,
न आपस में करो भेदभाव,
सब पर पड़ता है इसका प्रभाव,
बस लिखने पढ़ने से कुछ नही होगा,
सब खुद में भर लो मानवता का भाव।
इंसानियत का फैला दो पैगाम।
जमाने में फैला ये खतरा,
आजतक न समझ आया ये अंतरा।
आजाद हो के भी आज भी उलझे हैं,
जातिवाद और धर्म के भूलभूलया में।
इंसानियत से बड़ा न कोई जाति,
इंसानियत से बड़ा न कोई धर्म है,
फिर भूल कर इस खासियत को,
उलझ पड़ते हैं।
जातिवाद और धर्म के जंजीरों में,
फैला दो इंसानियत का पैगाम,
अपनी मानसिकता को करो सलाम,
मत उलझो आपस में,
मानवता का हाथ बस थाम लो।
इंसानियत का फैला दो पैगाम
दुनिया में होगा इसका अच्छा परिणाम।।