एक बेटी अपने पापा की परी होती है।
तो एक बेटा भी अपनी माँ का जिगर होता है।
फिर क्यों एक बेटी का दर्द दीखता है ज़माने में
फिर क्यों नही दीखता है एक बेटे की ख़ामोशी
और दर्द अपने ही घर और ज़माने में।
क्या बस तकलीफ बेटियों को ही होता है,
ससुराल में, और इस दुनिया में।
क्या एक बेटे को भी तकलीफ होता है अपने,
ही घर में और इस ज़माने में।
लेकिन न कोई समझता है न ये तकलीफ वो किसी
को भी नही बता पाता है चाह कर भी।
आखिर क्यों ऐसा होता है।
बेटी का दर्द दीखता है बेटे का दर्द नही,
दीखता है।।