चलो बचपन जीते है
फिर मिलकर हँसते है
फिक्र की कोई बात नही
उस कल को फिर जीते है
नादानी हो जहाँ
बेफिक्र हो कर जीते है
चलो बचपन जीते है
न कुछ पाने की इच्छा
न कुछ खोने का डर
बोलते थे झूठ
लेकिन लगते सच्चे थे
सब कहते थे
हम बहुत अच्छे थे
छोटी-छोटी बातों के लिए
लड़ लेते थे
फिर भी खुश रहते थे
चलो आज फिर बचपन जीते है
फिर मिलकर हँसते है
चलो फिर बचपन जीते है...
-अश्विनी कुमार मिश्रा